Share This Post

Featured News / Khabar / Main Slider

अनवरत जारी है ‘सम्बोधि’ ग्रन्थ प्रवचनमाला

अनवरत जारी है ‘सम्बोधि’ ग्रन्थ प्रवचनमाला

कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले, अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी, परम साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र परिसर में बने भव्य ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित चारित्रात्माओं सहित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा विरचित संस्कृत भाषा के ग्रन्थ ‘सम्बोधि’ के माध्यम से साधना करने वाले के लिए आहार संयम के महत्त्व को वर्णित किया तथा चारित्रात्माओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए वर्ष में उनके द्वारा हुए प्रतिसेवना की आलोयणा लेने और उसे पूरी कर अपनी आत्मशुद्धि करने को उत्प्रेरित किया। 

आचार्यश्री के इस चातुर्मासिक प्रवास के कारण प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी महानगर की मानों आबोहवा ही बदली हुई-सी है। अब तो आध्यात्मिकता की बयार बह रही है, आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से अमृत की वर्षा हो रही है जो लोगों के हृदय को अभिसिंचन प्रदान कर रही है तथा विकारों की गर्मी को शांत कर उन्हें आध्यात्मिक शीतलता का अहसास भी करा रही है।

ऐसे महापतपस्वी, परम साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को चतुर्दशी के संदर्भ में श्रद्धालुओं संग उपस्थित चारित्रात्माओं को विशेष पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि ‘सम्बोधि’ में भोजन और साधना का संबंध बताया गया है। साधना करने वाले व्यक्ति को भोजन का ध्यान देना चाहिए। जो साधक होता है, कोई साधना करता है तो उसे सर्व प्रथम खाद्य का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। एक साधक का आहार संयमित होना चाहिए।

साधु के लिए तो आहार संयम बहुत हितकारी होता है। आहार का संयम है तो साधु की साधना अच्छी हो सकती है, उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रह सकता है और कभी आहार की कमी भी हो जाए तो अल्पता की स्थिति में भी अपना काम चला सकता है। वर्ष में अनेक कार्य साधु से ऐसे हो सकते हैं, जिनके कारण उन्हें आलोयणा लेनी होती है। साधु को चाहिए कि आलोयणा प्राप्त करे और उस वर्ष की आलोयणा की पूर्ति भी उसी वर्ष अथवा चतुर्मास के दौरान पूर्ण कर ले तो चित्त की निर्मलता और शांति बनी रह सकती है। 

आचार्यश्री ने पांच विगय वर्जन की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि विगयों के वर्जन से संयम की शुद्धि हो सकती है। प्रतिसेवना की आलोयणा उतर जाए तो वर्ष भर का हिसाब पूरा हो सकता है। साधु अपनी गलतियों को स्वीकरण करे और उसकी आलोयणा भी पूर्ण कर ले तो आत्मा की निर्मलता बनी रह सकती है। आलोयणा के लिए किया जाने वाला खाद्य संयम से साधना भी पुष्ट बन सकती है।

आचार्यश्री ने साधुओं को स्वाध्याय में रत रहने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु को तो स्वाध्याय में रत रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु प्रवचन, सेवा, तप और जप में अपना समय नियोजित करे तो उसके लिए हितकारी साबित हो सकता है। खाद्य संयम, स्वाध्याय, जप और तप से कर्मों की निर्जरा होती है, चारित्र की निर्मलता बढ़ती है तथा कर्मों की निर्जरा भी हो सकती है। 

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन उपरान्त हाजरी पत्र का वाचन करते हुए समय-समय चारित्रात्माओं को उत्प्रेरित किया। सर्व प्रथम बालमुनि शुभमकुमारजी तथा मुनि ऋषिकुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। तत्पश्चात् समस्त चारित्रात्माओं ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने पांच महाव्रतों, पांच समितियों और तीन गुप्तियों की अखंड आराधना करते हुए परस्पर सौहार्द, मैत्री का भाव रखने का प्रतिबोध प्रदान किया।

तत्पश्चात् साध्वीप्रमुखाजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त कर अपने भटके हुए मन को स्थिर करने की प्रेरणा प्रदान की। अंत में आचार्यश्री ने ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान’ गीत का आंशिक संगान किया तो आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने भी इस गीत का संगान किया। 

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar