साध्वी पद्मकीर्ति जी म. सा.

युवा पीढ़ी धर्म से जोडऩे के लिए काम कर रही साध्वी पद्मकीर्ति ने बी.काम, डी.टी.एल तथा एम.ए की शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, रिछा (मध्यप्रदेश) की यात्रा की है। उन्हें हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी, राजस्थानी एवं गुजराती भाषा की अच्छी जानकारी है। युवकों से उनका कहना है कि समय आ गया है समाज को बदलो, समय आ गया है रिवाज को बदलो। इन्हें बदलने का काम युवक ही करेंगे कल को बदलने के लिए आज को बदलो। युवा पीढ़ी के माध्यम से समाज के लिए ऐसे रचनात्मक कार्य करना, जिससे स पूर्ण मानव जाति का भला हो। युवकों को व्यसनमुक्त करके एक स्वस्थ समाज की संरचना करना। धर्म परार्थ को बढ़ाता है। जहां परार्थ है वही परमात्मा है, सच्चिदानंद है और वही परम सुख है। वही सच्चा धर्म है, जो व्यक्ति में चरित्र विकास के साथ नैतिकता का भी विकास करे। धर्म करने की चीज नहीं है, धर्म तो जीने की चीज है। साध्वी पद्मकीर्ति जी के बारे में और जानने के लिए यहाँ क्लिक करें. (Click here)

कर्मबंध में अध्यवसायों की भूमिका

*क्रमांक — 466*   . *कर्म-दर्शन*   🚥🔹🚥🔹🚥🔹🚥 🔹🚥🔹🚥🔹🚥   *🔹कर्मबंध में अध्यवसायों की भूमिका*   *👉 अध्यवसाय अत्यन्त सूक्ष्म एवं आंतरिक होते हैं। हम इन्हें चेतना की प्रारंभिक हलचल की पर्याय कह सकते हैं। जबकि योग चेतना की स्थूल हलचल है। अध्यवसाय का अर्थ ही है- सूक्ष्म चैतन्य का स्पन्दन। कषाय या अतिसूक्ष्म शरीर में केवल स्पन्दन और तरंगें होती हैं, भाव नहीं। चेतना एवं कषाय के स्पन्दन एवं तरंगें जब बाहर आते हैं तब वे तरंगें अध्यवसाय तक पहुँचती हैं। अध्यवसाय को अतिसूक्ष्म इसलिए कहा गया है क्योंकि शरीर में उसका कोई केन्द्र विशेष नहीं है।*   *अध्यवसाय इतने सूक्ष्म होते हैं कि इनमें क्रोध की तरंगें तो होती हैं लेकिन क्रोध का भाव नहीं होता है। जब ये तरंगें सघन होकर भाव का रूप ले लेती हैं तब वे लेश्या बन जाती हैं। इस प्रकार वह शक्ति, ऊर्जा- पदार्थ में बदल जाती है। तरंग का सघन...

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