साध्वी महाप्रज्ञा जी म.सा.

साध्वी महाप्रज्ञा जी म.सा. जन्म माता श्रीमती कमलाबाई श्रीमान बाबूलालजी के घर आंगन में 14 दिसम्बर 1967 में मध्यप्रदेश के
राजगढ़ में हुआ। एस.एन.डी.टी.मुम्बई से एम.ए. की शिक्षा पूरी करने वाली साध्वी महाप्रज्ञा जी म.सा. की रुचि भजन गाने में है। 8 मार्च
1986 को जावरा में दीक्षा हुई। इन्होंने महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, गुजरात, कनार्टक का विचरण किया। साथ ही उत्तराध्ययन सूत्र,
दशवैकालिक सूत्र, नंदी सूत्र, साता सूत्र, आचारांगसूत्र, सुखविपाक सूत्र, निग्रंर्थसूत्र, ज्ञाता सूत्र आदि का पठन। उनका एक ही उद्देश्य है कि समाज की ये बगियां फलती फूलती रहे। मानव संगठन की डोर से बंधा रहे। आज हमारा समाज नैतिक पंरपराओं से हटकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रहा है। इससे मानवीय मूल्य घर रहे हैं। संस्कृति सुरक्षा का सबसे पहला दायित्व है, हम जिस देश में, जिस परंपरा में रहते हैं उनका पालन करना हमारा फर्ज है। यहां हमारे संतों ने मानव को पतन की राह से दूर कर उत्थान की ओर बढ़ने का संदेश दिया। राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर की इस धरती पर अहिंसा की खेती हो हम गुमराह न हो। हम अपने मूल्यों की पहचान करें एवं समाज को पतित होने से बचायें यही शुभेच्छा। संसार की असारता व नश्वरता को देखकर उन्हें संसार विष के समान लगने लगा। प्रेरक पूज्य पिताजी श्री बाबूलालजी सा.जिनके अनंत उपकार हैं उन पर, वे ऋणी हैं उनकी जिन्होंने हलाहल विष से दूर कर संयम का अमृत पिलाया। एक बार अपने गांव में बहुत सारे साधुओं को देखा था, उनके चारों ओर लोगों का तांता लगा हुआ था। तब साधु बनने का सकल्प लिया। जिनेश्वर भगवान का धर्म स्वीकार करने का संकल्प। धर्म मंच द्वारा विचारों को समाज को दे रही हैं। सारे विश्व में अहिंसा, सत्य, अचोर्य, ब्रहम्चर्य और अपरिग्रह का बाजार हमेशा गर्म रहे। मानव मात्र महावीर के उपदेश को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। वैसे भी आज वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता है। एक बार फिर से आ जाओ महावीर हमारा कल्याण हो जाएगा। आपके 5 कल्याण हुए हमारा एक बार कर दो यही प्रार्थना। धर्म क्या है, वस्तु का स्वभाव ही धर्म है, अग्नि का स्वभाव है जलना, पानी का स्वभाव है ठंडा रहना। धर्म वही जो आत्मा को पतन से बचा ले। जो दुर्गति में जाने से बचा ले। धर्म तो सलील की तरह है जो हमेशा प्रवाहित होता रहता है। धर्म एक ऐसा हमसफर है जो आत्मा का जन्मोजन्म तक साथ देता है। आत्मा का साथी एक ही है और वह है धर्म। जीवन में पग पग पर धर्म की आवश्यकता है। यह भटकते हुए इंसान के लिए साहिल के समान है। धर्म एक कल्पवृक्ष के समान है। रिद्धि सिद्धि शांति और प्रसन्नता आध्यात्मिक वैभव प्रदान करता है।
इसलिए जीवन को पवित्र बनाने के लिए धर्म नितांत आवश्यक है, ये पीड़ाहारी धर्म है। जन्मों जन्मों की मैली आत्मा को उज्जवल बनाने वाले
ऐसे धर्म की सदा जय हो।

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