ज्ञान वाणी

धन-दौलत नहीं, प्रभु भक्ति ही जाएगी साथ: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

सुशील धाम में विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में जीवन के मूल तत्वों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संसार में संचित की गई धन-दौलत, पद, प्रतिष्ठा और भौतिक साधन मनुष्य के साथ नहीं जाते, परंतु प्रभु भक्ति से विकसित हुई आत्मिक शक्ति, सद्गुण और पुण्य ही जीव का वास्तविक सहारा बनते हैं। महाराजश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है और इसका सर्वोत्तम उपयोग तभी है जब हम अपने कर्मों को पवित्र करें, मन को निर्मल बनाएं और प्रभु के चरणों में स्थिर भक्ति स्थापित करें। उन्होंने कहा कि—“धन जीवन को सुविधा दे सकता है, परंतु भक्ति आत्मा को शांति, स्थिरता और मोक्ष का मार्ग प्रदान करती है। ”उन्होंने आगे कहा कि संसार में देखा जाता है कि लोग संपत्ति और संग्रह में तो बहुत समय व्यतीत करते हैं, किंतु आत्मा के कल्याण की ओर ध्यान नहीं देते। जबकि ...

प्रभु भक्ति से मिलता है जीवन का सच्चा प्रकाश: डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज

भक्तामर की महिमा और प्रभु भक्ति का संदेश नाकोड़ा अपार्टमेंट में गुजराती जैन संघ के महामंत्री श्री चेतन जी अजमेरा के निवास स्थान पर ओजस्वी प्रवचनकार भारत गौरव डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि भक्ति, पूजा और साधना भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में भगवान की पूजा, गुरु का सम्मान और अतिथि का आदर—ये तीनों हमारी सभ्यता के अद्भुत स्तंभ हैं। अतिथि को देवतुल्य मानना भारतीय संस्कृति की दिव्य और नैतिक विशेषता है। मुनि श्री ने प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की स्तुति का उल्लेख करते हुए आचार्य मानतुंग द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र की दिव्य, चमत्कारी और कल्याणकारी महिमा का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने कहा—“भक्तामर स्तोत्र केवल श्लोक नहीं, बल्कि भक्त की अखण्ड श्रद्धा का ऊर्जा–स्रोत है, जो आज भी प्रत्येक साधक परिवार के जीवन में प्रकाश...

सत्संग और साधना से होती है मन की शुद्धि : भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी

राजाजी नगर जैन स्थानक में आयोजित धर्मसभा में प्रवचन करते हुए भारत गौरव डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचनों में कहा कि “धर्म स्थान का वास्तविक भाव यह है कि मन में धर्म का निवास हो। धन, विद्या, संपत्ति, रूप और पदवी — इन सब से बढ़कर धर्म श्रेष्ठ है।” उन्होंने कहा कि क्षमा और सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। आगे मुनि श्री ने धर्मप्रेमी बहनों-भाइयों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि धर्म भवन को भोजनशाला का रूप नहीं देना चाहिए, बल्कि उसे साधना और शुभ चिंतन का केंद्र बनाना चाहिए। मुनि श्री ने समझाते हुए कहा कि सत्संग और साधना से मन की शुद्धि होती है। धर्म केवल धर्म-स्थानों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। यदि मनुष्य सत्संग में समय लगाए तो उसका जीवन कल्याणमय बन जाता है; परंतु यदि जीवन विषय-विकारों, मौज-मस्ती और कुसंगति में व्यतीत हो, तो वह जीवन व...

अन्नदान ही सच्ची प्रभु सेवा — भूखे को भोजन कराना ही प्रभु की सर्वोत्तम भक्ति

“सुख प्राप्ति का प्रथम सोपान है अन्नदानम्। नर सेवा ही नारायण सेवा है और जन सेवा ही जिनेंद्र भगवान की सच्ची सेवा है।” — ऐसे मंगल विचार भारत गौरव परम पूज्य डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने राजाजीनगर जैन स्थानक में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।उन्होंने अपने प्रेरणादायी प्रवचन में कहा कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुख पाना चाहता है और प्रभु महावीर ने सुख प्राप्ति के नौ उपाय बताए हैं, जिनमें प्रथम उपाय अन्न का दान है। लोग मंदिरों में जल, फल, नैवेद्य, छप्पन भोग आदि चढ़ाते हैं, जो श्रद्धा का विषय है; किंतु यदि कोई भूखे को भोजन तथा प्यासे को जल पिलाता है, तो यह भेंट निश्चय ही प्रभु तक अवश्य पहुँचती है।महाराज श्री ने समाज में व्याप्त प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालते हुए कहा — “हम देखते हैं कि विवाह, धार्मिक समारोहों और मृत्यु भोजों में बड़े-बड़े भंडारे और प्रसादी के आयोजन किए जाते हैं, प...

ध्यान में है मुक्ति का द्वार! भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मास के पावन अवसर पर विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने गहन और प्रेरणादायक प्रवचन में श्रद्धालुओं को ध्यान की शक्ति और आत्मशुद्धि के महत्व पर प्रेरक उपदेश दिए।मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा — “ध्यान वह साधना है जो आत्मा को उसके मूल स्वरूप से जोड़ती है। जब मन की तरंगें शांत होती हैं, तब भीतर का दिव्य प्रकाश स्वयं प्रकट होता है।” उन्होंने समझाया कि बाह्य सुख क्षणिक हैं, किंतु आंतरिक शांति केवल ध्यान की गहराई में ही प्राप्त होती है।गुरुवर ने कहा कि “मुक्ति का द्वार कहीं बाहर नहीं, बल्कि प्रत्येक जीव के अंतर्मन में विद्यमान है। जो व्यक्ति अपने भीतर उतरने का साहस करता है, वह परमात्मा के साक्षात्कार का अनुभव कर सकता है।” उन्होंने यह भी प्रेरणा दी कि ध्यान कोई पलायन नहीं, बल्कि यह तो जीवन को जागरूकता और करुणा से भरने का माध्यम है। साधक ...

विचारों की शुद्धि ही आत्मा की सिद्धि है: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी 3 नवंबर 2025

चातुर्मास के पावन अवसर पर भारत गौरव डॉक्टर वरुण मुनि जी महाराज ने अपने आज के प्रेरणादायी प्रवचनों में कहा कि “विचारों की शुद्धि ही आत्मा की सिद्धि का प्रथम सोपान है।” उन्होंने कहा कि मनुष्य के समस्त कर्म, उसकी वाणी और व्यवहार, उसके विचारों की ही प्रतिच्छाया हैं। यदि हमारे विचार निर्मल, सात्त्विक और करुणामय होंगे तो जीवन स्वयं ही पवित्रता और शांति से भर जाएगा। मुनि श्री ने समझाया कि आत्मा की सिद्धि कोई बाहरी उपलब्धि नहीं, बल्कि अंतर की निर्मलता का परिणाम है। उन्होंने कहा — “मनुष्य जब अपने भीतर उठते विकारों, ईर्ष्या, क्रोध, और अहंकार को पहचानकर उन्हें साधना से रूपांतरित करता है, तभी वह आत्मबोध की दिशा में अग्रसर होता है।”प्रवचन के दौरान मुनि श्री ने यह भी बताया कि आज की भौतिक युग की प्रतिस्पर्धा में मनुष्य बाहर की उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जबकि वास्तविक प्रगति विचारों की पवित्र...

मौन में ही मिलता है ईश्वर का साक्षात्कार: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मास के पावन अवसर पर विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने गहन और प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“ईश्वर को शब्दों से नहीं, मौन से पाया जा सकता है। जब मन शांत होता है, तब आत्मा ईश्वर के स्पर्श को अनुभव करती है।”गुरुदेव ने बताया कि संसार में मनुष्य अनेक ध्वनियों, विचारों और इच्छाओं से घिरा रहता है। जब तक भीतर का शोर शांत नहीं होता, तब तक सत्य की अनुभूति संभव नहीं। उन्होंने कहा कि मौन कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल का प्रतीक है। मौन के माध्यम से मनुष्य स्वयं को सुनना सीखता है, और यही सुनना उसे परमात्मा तक पहुंचाता है।डॉ. वरुण मुनि जी ने आगे कहा —“जो व्यक्ति मौन की साधना करता है, उसके भीतर का अहंकार गल जाता है, भाव निर्मल हो जाते हैं, और आत्मा परमात्मा से एकाकार होने लगती है।”उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे झील का पानी शांत होता है त...

देव उठनी का सच्चा अर्थ — आत्मा का जागरण और धर्ममय जीवन की पुनः शुरुआत: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

देव उठनी का सच्चा अर्थ — आत्मा का जागरण और धर्ममय जीवन की पुनः शुरुआत: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मास के पावन अवसर पर विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज द्वारा प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“देव उठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है*। उन्होंने कहा कि आज केवल देव नहीं,बल्कि हमें अपने भीतर सोई हुई चेतना को भी जाग्रत करना है। जब मनुष्य अपनी आत्मा के प्रति सजग होता है, तभी सच्चे अर्थों में ‘देव उठनी’ होती है।” मुनिश्री ने फरमाया कि यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण का उत्सव है। उन्होंने कहा —“जीवन में कर्म और भक्ति, दोनों के बीच संतुलन आवश्यक है। केवल पूजा से नहीं, बल्कि शुद्ध आचरण और सच्चे संकल्पों से ही ईश्वर का साक्षात्कार संभव है।” उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु का यह जागरण ...

गोपाष्टमी — करुणा, सेवा और संरक्षण का दिव्य संदेश: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलुरु में विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने गोपाष्टमी के दिन अपनी अमृत वाणी से समाज को अद्भुत प्रेरणा प्रदान की। महाराज श्री ने अपने गूढ़ और हृदयस्पर्शी प्रवचनों में कहा कि “गोपाष्टमी केवल गौपूजन का पर्व नहीं, यह संवेदना, सह-अस्तित्व और अहिंसा का उत्सव है। गौ माता हमारी संस्कृति, कृषि और आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला हैं। उनका संरक्षण और सेवा हमारे जीवन का परम कर्तव्य होना चाहिए।” उन्होंने कहा कि आज का मानव भौतिक सुखों की खोज में इतना व्यस्त है कि करुणा और सेवा के सच्चे अर्थ को भूलता जा रहा है। गोपाष्टमी हमें यह स्मरण कराती है कि जब तक हम प्रत्येक प्राणी में आत्मा का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक सच्चे धर्म की स्थापना संभव नहीं।“गौ माता केवल एक पशु नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि की पालनहार शक्ति हैं। उनका दूध, उनका स्नेह और उनका ...

सत्संग: दुखों की औषधि और आत्मा की शांति का मार्ग: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“मनुष्य के जीवन के सारे दुखों का अंत केवल सत्संग और सत्य मार्ग की साधना से ही संभव है।”गुरुदेव ने कहा कि जब मनुष्य सच्चे संतों की वाणी सुनता है, तब उसका अंतर्मन शुद्ध होता है, विचारों में स्पष्टता आती है और जीवन की दिशा बदल जाती है। संसार के भोग-विलास, मोह-माया, और अस्थायी सुख मन को क्षणिक तृप्ति देते हैं, परंतु सत्संग आत्मा को स्थायी शांति प्रदान करता है। महाराज श्री ने आगे कहा —“सत्संग केवल शब्द नहीं, यह आत्मा का स्नान है। जब हम संतों के वचन सुनते हैं, तो भीतर के अंधकार मिटने लगते हैं और दुख अपने आप दूर हो जाते हैं।”उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे सूर्य का प्रकाश अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही संत वचन जीवन के तम को हर लेते हैं। स...

परमात्मा के नाम के बिना धन-दौलत का कोई अर्थ नहीं —भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मास के अंतर्गत भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने आज के प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, और भौतिक सुख — ये सब तभी सार्थक हैं जब उनमें परमात्मा का नाम, भक्ति और सद्भाव जुड़ा हो। अन्यथा यह सब जीवन को केवल बाहरी चमक देता है, आंतरिक शांति नहीं।” मुनि श्री ने कहा कि संसार में मनुष्य धन अर्जित करने में तो निरंतर प्रयासरत है, परंतु ईश्वर-स्मरण और आत्म-ज्ञान को अक्सर पीछे छोड़ देता है। उन्होंने स्पष्ट कहा —“धन से सुख खरीदा जा सकता है, लेकिन शांति नहीं; संपत्ति से मान पाया जा सकता है, लेकिन मोक्ष नहीं।” मुनि श्री ने जीवन का सच्चा उद्देश्य बताते हुए कहा कि जब मनुष्य अपने धन और सामर्थ्य का उपयोग सेवा, सदाचार और सत्कर्म में करता है, तभी वह वास्तव में धन्य कहलाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे दीपक का प्रकाश तभी उप...

धर्म से ही जीवन में दिशा और दृष्टि मिलती है: डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज

“धर्म रहित जीवन — दीप बिना ज्योति समान” चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में विराजमान भारत गौरव डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज ने आज के प्रभावशाली प्रवचन में धर्म के महत्व पर गहन प्रकाश डालते हुए कहा — “धर्म रहित जीवन ऐसा है जैसे दीप बिना ज्योति — न स्वयं प्रकाशित हो सकता है, न दूसरों को प्रकाश दे सकता है।”मुनि श्री ने समझाया कि जीवन में धर्म केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन का मूल आधार है। धर्म वह शक्ति है जो अंधकारमय जीवन को उज्जवल बनाती है और मनुष्य को उसकी आत्मा के वास्तविक स्वरूप से परिचित कराती है। धर्म से ही जीवन में स्थिरता, शांति, करुणा और संयम जैसे गुण विकसित होते हैं, जो सच्चे सुख का आधार हैं।उन्होंने कहा कि धर्म मनुष्य को बाहरी वैभव नहीं, बल्कि आंतरिक आलोक प्रदान करता है। आज के भौतिकवादी युग में जहां जीवन की गति तेज़ है, वहाँ धर्म ही वह साधन है ज...

Skip to toolbar