ज्ञान वाणी

नए साल पर  वृक्षारोपण एवं पौधे वितरण

राजस्थान पत्रिका एवं एक्ष्नोरा इंटरनेशनल के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे हरित प्रदेश अभियान द्वारा नए साल के पहले दिन चारि स्ट्रीट कॉरपोरेशन पार्क टी नगर में वृक्षारोपण एवं पौधे वितरण का आयोजन किया गयाl इस मौके पर मुख्य अतिथि डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरनमेंट, क्लाइमेट चेंज के ऑफिसर डॉ मुथुकुमार थेl उन्होने क्लाइमेट चेंज की विशेष जानकारी दी, एवं पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए लोगों को जागरूक कराए जाने वाले प्रयासों के लिए राजस्थान पत्रिका एवं एक्ष्नोरा इंटरनेशनल की सराहना की। पर्यावरण संरक्षण के लिए हर कोई आगे नहीं आता आप मिलकर कई सालों से हज़ारों पेड़ लगा कर उनकी देख रेख की जिम्मेदारी निभा रहे हैंl डिपार्टमेंट की तरफ से कोई भी काम एवं सहयोग के लिए पूरा आश्वासन दियाl पार्क में वृक्षारोपण किए एवं पार्क में आने वाले करीबन 100 व्यक्तियों को तुलसी एवं आयुर्वेदिक पौधे वितरण कर के उनकी देख रेख करने क...

विपत्ति एक कसौटी है : देवेंद्रसागरसूरि

श्री संभवनाथ जैन मंदिर व्यापारी जैन संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने प्रवचन देते हुए कहा कि संघर्ष जीवन की एक कसौटी है जो अंत में विजय का द्वार खोलती है और समस्या का समाधान करती है। संघर्ष का जीवन जीना है तो भूल को भूलना सीखना होगा। प्रतिशोध के कटु परिणाम ही आते हैं। इसलिए क्षमा सहज-सरल जीवनशैली का मूल मंत्र है। जीवन में परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। अगर एक जैसी परिस्थितियां बार-बार हो रही हों तो कभी यह नहीं समझना चाहिए कि अब जीवन में सब कुछ समाप्त हो गया है। मेरे लिए कुछ नहीं बचा है। संघर्षशील व्यक्ति को एक बार पुन: उसी जोश व उत्साह के साथ नए सिरे से प्रयास में जुट जाना चाहिए। प्रयास सफलता की कुंजी होती है। संघर्ष काल में यह बात हमेशा ध्यान में रहनी चाहिए कि व्यक्ति के स्वयं के हाथ में कुछ नहीं है। व्यक्ति पुरुषार्थ कर सकता है, लेकिन परमार्थ का फल समय से पूर्व प्राप्त नहीं कर सक...

पाप तीन कारणों से होते है: विजयराज जी म.सा.

पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया की शिष्य ने पूछा गुरुदेव से श्रावक की क्या पहचान है? श्रावक की *दो पहचान है* पहली है *पापभीरु ओर दूसरी है व्यवहार कुशलता* 🔻 *पाप* होते है तीन कारणों से- मन से होते है वो मानसिक, काय से होते हे वो कायिक पाप है। काया से पाप होते है वे कायिक पाप है । लोग *पुण्य व धर्म* कम करते है पाप ज्यादा करते है क्योंकि *आकर्षण होता है* परिणाम दुखदायी होती है। प्रवर्तिया पापमयी है, ज्ञानियों की दृष्टि में दुःखदायी है।  किमपाक फल जहरीला होता है गंध अच्छी, रूप सुन्दर ,,स्थाद अच्छा होता है, वर्ण सुन्दर गंध अच्छी, फल देखकर मनुष्य आकर्षित होता है। भूल से भी किंपाक फल को खा उसका परिणाम मारक होता है, फल खाने के बाद ज्यादा नही रह सकता है। *पाप* भी दिखने में अच्छे, करने में अच्छे लगते है पाप का फल दुखी दाई, नरक में ले जाता है। उत्तराध्ययन सूत्र:- *अपतथं अमबगं बुजझा* वह राजा...

पापों में मनवा घुम रहा, माला फिराये तो क्या हुआ: विजयराज जी म.सा.

पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया की साफ न किया अगर दिल को गंगा नहाये तो क्या हुआ,, पापों में मनवा घुम रहा, माला फिराये तो क्या हुआ,,   साफ किया न मगर दिल को गंगा नहाये तो क्या हुआ….. भगवद गीता, रामामण, निस दिन सुनता रहता है,, अमल किया इन पर कुछ भी, , नर तन मिला तो क्या हुआ,, मुख से राम-राम करता है और मन में हेरा फेरी है, जाकर मंदिर मस्जिद में सीस झुकाये तो क्या हुआ….. झूठी माया के खातिर तु पाप बटोरता रहता है,  दीन दुःखी की बात न पुछे -२ ब्राह्मण जीमाये तो क्या हुआ तर्ज : रहने दो इन आँखों को आत्मीय बंधुको माता बहनो,,, शिष्य ने पुछा गुरुदेव श्रावक की क्या पहचान है? पहली पहचान श्रावक *पापभीरु* होता है, जो पाप से डरता है, जो पाप से डरते है नही वे साधक श्रावके नहीं हो सकता है। *पाप* क्या है? *में और मेंरा यही हे पाप का घेरा।*  में में जीते हो के नहीं? हर व्यक्ति ‘...

जो पाप से डरता है श्रावक है: विजयराज जी म.सा.

पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया की तिस धममे नीचे सासाइये, सिझ्झी सिझम चाणेणं, सिझी संति तहावरे (तर्फ: दिल के मरमान) साधना का है समय सोना नहीं , मनुज जन्म हमको खोना नहीं, भाग्य से जीन देव का शासन मिला … भुलकर के भी कभी रोना नहीं, मनुज तन हमको मिला खोना नही.. साधना का हे समय—- 🔻किसी ने पुंछा गुरु देव श्रावक की क्या पहचान है? ①श्रावक पापभीरू होता है – जो पाप से डरता, भयभीत होता है वह श्रावक है,, हम अपना चिंतन करे हम पाप से डरते हे क्या?? हम पाप से नहीं *पापी से डरते है।* पाप *पाप* ही रहने वाला हे वह पाप कमी धर्म, नहीं बनेगा। *तिरस्कार* पाप का करना चाहिए *पापी का नहीं।* पापी से घृणा, अपेक्षा, अवहेलना करते है। पापी तो कभी भी *धर्मी* बन सकता है। अर्जुनमाली प्रतिदिन 6 पुरुष 1 महीला की हत्या 6 महीने तक करता रहा। वह कितना पापी । भगवान ने अर्जुनमाली की उपेक्षा नहीं की,, व...

अहंकार भी पतन का एक कारण है : देवेंद्रसागरसूरि

श्री वासुपूज्यस्वामी जैन संघ मैलापुर के आराधना भवन में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने प्रवचन देते हुए कहा कि छह विकारों में मद अर्थात् अहंकार पतन का चौथा कारण द्वार है। यह मनुष्य का स्वयं अर्जित किया हुआ मनोरोग है। रोग का अर्थ होता है शरीर की प्रक्रिया को विकृत कर देना। जिस प्रकार भला-चंगा हाथी मदांध हो जाता है तो वह विवेक खो देता है और गलत आचरण करने लगता है उसी प्रकार मनुष्य जब मदांध हो जाता है तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है। विवेक के बगैर मनुष्य पशु से भी बदतर हो जाता है। पशु का अर्थ होता है जो पाश में बंधा हो। पशु को इसलिए बांधा जाता हैं कि वह अविवेकी प्राणी है। कभी-कभी मदांध व्यक्ति को भी पाश में बांधा जाता है ताकि वह गलत आचरण न करे। ऐसा इसलिए, क्योंकि, पशुता केवल पशु का ही धर्म नहीं है, कुछ मनुष्य भी पशु तुल्य बन जाते हैं, जब उनका अपना सब कुछ नष्ट हो जाता है और वे गलत आवरण ओढ़ लेते ...

आचार्य महाश्रमण तेरापंथ जैन पब्लिक स्कूल सम्मानित हुई राष्ट्रीय स्तर पर

◆ एजुकेशन टुडे ने सीबीएसई बोर्ड में समग्र शिक्षा के अन्तर्गत किया सम्मानित ◆ बंगलुरू में आयोजित समारोह में प्राप्त हुआ पुरस्कार  Sagevaani.com /Chennai : परम श्रद्धेय गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमणजी के वर्ष 2018 के चेन्नै चातुर्मास स्थल पर जैन तेरापंथ वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा संचालित आचार्य महाश्रमण तेरापंथ जैन पब्लिक स्कूल, माधावरम को शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित ‘एजुकेशन टुडे’ द्वारा किये गए एक सर्वे में सीबीएसई स्कूल पेरामीटर मापदंडों के आधार पर समग्र शिक्षा Holistic Education में सम्पूर्ण भारत में प्रथम स्थान के गौरवशाली सम्मान से सम्मानित किया गया।  एजुकेशन टुडे द्वारा सर्वे में देश भर में सम्मिलित कुल 1860 विद्यालयों मे से अगले स्तर पर चयनित 400 विद्यालयों के अंतिम चरण में आचार्य महाश्रमण तेरापंथ जैन पब्लिक स्कूल को यह सम्मान प्राप्त हुआ है। बंगलुरू में सोमवार को पांच सितारा होटल ‘...

विनाश का प्रमुख कारण अहंकार ही हैं : देवेंद्रसागरसूरि

राजा, रंक किसी के लिए अहंकार फलदायी नहीं है। विनाश का प्रमुख कारण अहंकार ही हैं। धन, संपदा, यश, वैभव, कीर्ति, ताकत किसी भी चीज का घमंड मनुष्य में नहीं होना चाहिए और यदि ऐसा है तो एक समय यह सभी तत्व साथ छोड़ देते हैं। अहंकार हमें पतन की ओर ले जाता है। हमारे शास्त्रों में इसका स्पष्ट उल्लेख भी हैं। उपरोक्त बातें आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने मैलापुर के श्री वासुपूज्यस्वामी जैन संघ में प्रवचन देते हुए कही, उन्होंने आगे कहा कि नम्रता, विनम्रता और सहिष्णुता व्यक्ति को सदैव शिखर पर ले जाती है। सहृदयी व्यक्ति का आदर और सम्मान हर जगह हैं। पद, प्रतिष्ठा गुरुदेवों की विशेष कृपा पर प्राप्त होती हैं। इसका सुख भोगने वाले अक्सर अहंकार में आ जाते हैं। उन्हें लगता है कि अब उनके मुकाबले कोई नहीं हैं। यही अहंकार उन्हें एक दिन घुटन में डाल देता है। व्यक्ति के जीवन के दुखों का कारण अहंकार ही होता है व्यक्त...

पाप से डरना चाहिए: विजयराज जी म.सा.

पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया की शिष्य ने पुछा गुरुदेव श्रावक की – क्या पहचान हे? 1 पाप भीरुता – गुरु ने बताई पाप से डरते है श्रावक होते हैं। साधु या श्रावक पहली पहचान पाप से डरना चाहिए, पाप से डरते नही पर आप साधु या श्रावक नहीं है। श्रावक वह जिसके जीवन में पाप से डर है पापो का सीरमोर कौन है? *मोह* पापों का सिरमौर है दो मानव है संसार में *एक मोह को जीतने वाले साधक*, *दूसरे मोह में जीने वाले संसारी है।* जो मोह में जीते है वह संसारी जो मोह को जीतते हे वह साधक है। धर्म स्थान पर उपस्थित हुए इससे प्रमाणिक होता है कुछ अंशों में मोह को जीता है इसलिए आये है। गर्मागर्म चर्चाओ को छोडकर यहाँ प्रवचन सुनने के लिये आये हो • इससे साबित होता है थोड़ा थोड़ा मोह को जीता है। 1,,मोह में जीने वाले से घर, दुकान, माया का मोह नहीं छुतटा,,, office जाकर मोह की पूर्ति कर रहे है। नगर में संत जात...

दूसरों के प्रति करूणा का भाव मन में सेवा का भाव उत्पन्न करता है : देवेंद्रसागरसूरि

आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी एवं मुनि श्री महापद्मसागरजी का सोमवार को मैलापुर के श्री वासुपूज्यस्वामी जैन संघ में पदार्पण हुआ, हर्षोल्लास के साथ आचार्य श्री का संघ जनों ने स्वागत किया, पश्चात धर्म सभा का आयोजन हुआ, आचार्य श्री ने कहा कि हमारे शास्त्रों में विभिन्न रसों के रूप में शृंगार, करूणा, हास्य, वीर, अद्भुत, रौद्र, भय, वीभत्स और शांत के रूप में किया गया है। जिस प्रकार रक्त का प्रवाह मनुष्य को जीवित रखता है, उसी प्रकार इन रसों का संचरण हमारे चित्त को प्रसन्न, सुखी या दुखमय बनाता है। हमारा जीवन जब तक अनेक रसों से सराबोर रहता है तब तक हमें उनका आनंद मिलता है। सबसे श्रेष्ठ कहे गए रस शृंगार में सुंदरता की झलक तन और मन को प्रफुल्लित बनाए रखती है लेकिन जब इसका अभिमान हो जाए तो नतीजा कुरुपता में भी निकल सकता है। जीवन में जब तक अपने और दूसरों के प्रति करूणा का भाव रहता है तब तक मन में सेवा ...

कट जायेगी चौरासी, तु प्रभु का भजन कर ले

 पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि.., एक बार भजन करते, मुक्ति का जतन कर ले, कट जायेगी चौरासी, तु प्रभु का भजन कर ले ।। एक बार गुरु और शिष्य का संवाद चल रहा था शिस्य ने पुछा श्रावक की पहचान क्या है? पहचान से पता चलता है कौन कैसा होता है! श्रावक की क्या पहचान है? लोगों की भीड़ में कौन आपकी पहचान कर सके। पहचान के दो रुप है… 🔻एक पहचान पहनावे (वेशभुषा ) से होती है। बाह्य पहचान होती है। यह सही व गलत भी हो सकती है,,  दो पहचान है श्रावक की- ① *श्रावक पाप भीरू होता है* पाप से डरता है वह श्रावक होता है। जन्म लेने मात्र से श्रावक नहीं बनता। वकील या डॉ के घर जन्म लेने से नही.. पुरुषार्थ से बनता है। पाप के पति डर नही वह श्रावक नहीं होता है,, आप पाप करते है तो डर पैदा होता है, संकोच होता है, में इस पाप की सजा नहीं भोग नहीं सकता, पाप की अनिच्छा है तो आप श्रावक है। श्रावक पाप कर रहे हे , भ...

श्रावक पाप भीरू होता है: आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि.., एक बार भजन करते, मुक्ति का जतन कर ले, कट जायेगी चौरासी, तु प्रभु का भजन कर ले ।। एक बार गुरु और शिष्य का संवाद चल रहा था शिस्य ने पुछा श्रावक की पहचान क्या है? पहचान से पता चलता है कौन कैसा होता है! श्रावक की क्या पहचान है? लोगों की भीड़ में कौन आपकी पहचान कर सके। पहचान के दो रुप है… 🔻एक पहचान पहनावे (वेशभुषा ) से होती है। बाह्य पहचान होती है। यह सही व गलत भी हो सकती है,, दो पहचान है श्रावक की- ① *श्रावक पाप भीरू होता है* पाप से डरता है वह श्रावक होता है। जन्म लेने मात्र से श्रावक नहीं बनता। वकील या डॉ के घर जन्म लेने से नही.. पुरुषार्थ से बनता है। पाप के पति डर नही वह श्रावक नहीं होता है,, आप पाप करते है तो डर पैदा होता है, संकोच होता है, में इस पाप की सजा नहीं भोग नहीं सकता, पाप की अनिच्छा है तो आप श्रावक है। श्रावक पाप कर रहे हे , भगव...

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