ज्ञान वाणी

सांसारिक व्यवहारों में राग द्वेष से मत जुडो कर्तव्य भाव से ही जुडो

*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*   *🪷प्रवचन प्रवाहक:🪷* *युग प्रभावक कृपाप्राप्त* मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.   *☀️प्रवचन वैभव☀️* 🌧️ 7️⃣4️⃣ 💫 366) सांसारिक व्यवहारों में राग द्वेष से मत जुडो.. कर्तव्य भाव से ही जुडो.! 367) कषाय हो ऐसे निमित्तो को Wide ball समझकर जाने दो, उससे टकराओ मत.! 368) विभाव से दूर रहना महान तप हैं.! 369) दूसरे किनारे पहुंचना है तो एक किनारा छोड़ना पड़ता है, वैसे ही आत्मबोध पाना है तो परभाव छोड़ना पड़ता है.! 370) अंतिम समय में जैसी भावना रहेगी वैसा ही अगला जन्म मिलेगा.!  

अधैर्य अन्याय का कारण है

*विंशत्यधिकं शतम्* *📚💎📚श्रुतप्रसादम्* 🪔 *तत्त्वचिंतन:* *मार्गस्थ कृपानिधि* *सूरि जयन्तसेन चरणरज* मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.   7️⃣3️⃣ 🪷 तारक त्रिपदी: धैर्य, समता,गंभीरता १) बिना प्रमाणिक प्रमाण के बिना किसी पर आक्षेप न करें अर्थात *धैर्यपूर्वक* कार्य करें, *अधैर्य अन्याय का कारण है..!* २) कारण हो या कारण न हो किसी भी संजोग में किसी पर भी आक्रोश न करें अर्थात *समत्वपूर्वक* निर्णय करें, आक्रोश में हित अहित का भान नही रहता.!   ३) किसी की राज की बात प्रगट नही करनी, अतः गुप्त बातो को *गंभीरतापूर्वक* ह्रदय में रखें, चंचल हृदय में रहस्य नही टिकते.! 🙏 *सज्जन इन गुणों से* *युक्त होते है.!* *📒उपदेश रत्नमाला कुलक*   *🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*  

युग प्रभावक कृपाप्राप्त मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.

*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*   *🪷प्रवचन प्रवाहक:🪷* *युग प्रभावक कृपाप्राप्त* मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.   *☀️प्रवचन वैभव☀️* 🌧️ 7️⃣3️⃣ ✨ 361) विचारों का परिग्रह पदार्थ त्याग को निष्फल बना देता हैं.! 362) लोभ लालच से धर्म स्वीकार करना जघन्य आशातना है.! 363) अनंत जन्मों से कर्तृत्व का व्यापार किया हाथ में फिर भी कुछ न आया.! 364) जीवन का प्रमुख कर्तव्य है आत्म स्वभावमें स्थिरता.! 365) स्वभाव स्थिरता से षट्काय के जीवो को अभयदान मिलता हैं.!  

अंतर शत्रु बाह्य शत्रु अंदर में रहे हुए दोष यह हमारे अंतर शत्रु है

वितराग परमात्मा जिन्हों ने अंदर में रहे हुए अध्यात्म शत्रुओं का विनाश कर परम स्वतंत्रता परम स्वाधीनता और परम सुख की प्राप्ति की शत्रु तो बहुत है पर भगवान ने उसके भेद बताएं अंतर शत्रु बाह्य शत्रु अंदर में रहे हुए दोष यह हमारे अंतर शत्रु हैl शत्रु होते हुए भी मित्रता का दावा करते हैं कि मैं तुम्हारे साथ ही रहूं दोस्त तीन प्रकार के बताए हैंl आधिदैविक दोष यानी भाग्य की कमजोरी कोई नहीं था शांति से बैठे थे अचानक पानी आ गया भूकंप आ गया व्यक्ति अभी था अभी नहीं ऐसा हो जाता है यह आधिदैविक दोष है। आदि भौतिक दोष व्यापार चालू किया बहुत बड़ी आशा रखी पर ऐसी खोट आयी की की सब कुछ खत्म हो गया करोड़पति का रोड़पति हो गयl समय के साथ भिन्न-भिन्न हो गया यह है आदि भौतिक दोष। आध्यात्मिक दोष अंदर से गुस्सा आता अहंकार ईर्ष्या लालसा यह सभी आध्यात्मिक दोष है वीर का शासन मिला यह अमूल्य हैl बस साधना में जीवन को जोड़ना ह...

सात अच्छे गुणो की पालना कर अपना जीवन सफल बनाइये: पंडितरत्न पु. ज्ञानमुनीजी म.सा.

सात अच्छे गुणो की पालना कर अपना जीवन सफल बनाइये !-पंडितरत्न पु. ज्ञानमुनीजी म.सा. दिनकी शुरवात तीन सकारात्मक बातोसे करे- साध्वी मुक्ता श्री जी आकुर्डी- निगडी- प्राधिकरण श्री संघ का विश्वस्त मंडल एवं महिला मंडल गुरुभगवंतोके एवं साध्वी मंडल के दर्शन हेतु पहुँचा खैरताबाद एवं अमिरपेठ ( हैदराबाद) ! प्रखर वक्ता पंडीत रत्न ज्ञानमुनीजीम. सा. ने सात अच्छे गुणोकी पालना करनेका एहलान किया ! लिया हुआ कर्जा तुरंत लौटाना, दान मे घोषित रक्कम तुरंत देनाl घर मे लडकी हो तो शादी समयपर करना कही आग लग जाये तुरंत बुझा देना, शरीर में कुछ बिमारी हो तुरंत इलाज करना शुभ काममे देरी नहीं करना, जैसे की प्रवचन मे जाना हो समय के पूर्व जाना ! डॉ. पुनित ज्योतिजी म.सा. आदि ठाणा 7 के दर्शन दरम्यान साध्वी मुक्ता श्री जी ने दिनकी शुरुवात करते समय तीन बातें नित्य रुपसे स्मरण करनेका संदेश दिया ! सुबह उठते ही अपने हात खोलकर देखना...

जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष

क्रमांक – 13 . *तत्त्व – दर्शन*  *🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार* *👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।* *🔅 अजीव तत्त्व* *जीव का प्रतिपक्षी तत्त्व अजीव है। न जीव अर्थात् जो जीव नहीं है वह अजीव है । जिसमें चेतना है वह जीव है और जिसमें चेतना नहीं है वह अजीव है। जो उपयोगवान है वह जीव है और जो अनुपयोगवान है वह अजीव है। जिसमें बोध क्रिया है वह जीव है, जिसमें बोध क्रिया नहीं है वह अजीव है। जैनदर्शन जीव के साथ-साथ अजीव को भी नित्य, शाश्वत एवं उत्पत्ति विनाश से रहित सत्ता मानता है। इसीलिए जैनदर्शन को द्वैतवादी भी कहते हैं। सांख्य भी द्वैतवादी है। सांख्य प्रकृति एवं पुरुष की सत्ता को मानता है। पुरुष जीव है तो प्रकृति अजीव है। दोनों के संयोग से ही संसार का उद्भव होता है तो दोनों के वियोग से मोक्ष संभव बनता है। यही स...

मन में कलुषित परिणाम न हो

*विंशत्यधिकं शतम्* *📚💎📚श्रुतप्रसादम्* 🪔 *तत्त्वचिंतन:* *मार्गस्थ कृपानिधि* *सूरि जयन्तसेन चरणरज* मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.   7️⃣2️⃣ 🪔 *_💥शुभ💥_* राग जिसका प्रशस्त हो, अंतरमें अनुकंपा की वृत्ति हो, मन में कलुषित परिणाम न हो, *उसे पुण्य का आश्रव होता हैं,*   *_💥अशुभ💥_* विषयों की लोलुपता हो, जीवनशैली प्रमादमय हो, मलिन मनोवृत्ति का विकार हो, परपीड़ा एवं परनिंदा से *पापकर्म का आगमन होता हैं.!*   *_💥शुद्ध💥_* किसी के प्रति न राग हो,न द्वेष हो, न मोहासक्ति का बंधन हो, *सुख दुख में समवृत्ति हो* *उसे न पुण्य का* *न पाप का आश्रव होता है.!* *📚श्री पंचास्तिकाय ग्रंथ📚*   *🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*  

जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं

क्रमांक – 12 . *तत्त्व – दर्शन*  *🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार* *👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।* *🔅 जीव तत्त्व* *जैन दर्शन के अनुसार जीव अनादि-निधन है। न इनकी आदि है और न ही इनका अन्त है। ये अक्षय और अविनाशी हैं। आत्मा अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द और अनन्त शक्ति सम्पन्न है। द्रव्य दृष्टि से इसका स्वरूप तीनों कालों में एक जैसा रहता है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। अतः द्रव्य दृष्टि से आत्मा नित्य है। पर्याय दृष्टि से वह भिन्न-भिन्न रूपों में परिणत होता रहता है अतः पर्याय दृष्टि से वह अनित्य भी है। संसारी अवस्था में आत्मा और शरीर का संबंध दूध में मिले पानी, तिल में स्थित तेल की भांति एक प्रतीत होता है किन्तु जिस प्रकार दूध से पानी, तिल से तेल अलग है, उसी प्रकार आत्मा शरीर से अलग है। कर्मों ...

मानव भव के क्षण सुहावने मिले हैं

मानव भव के क्षण सुहावने मिले हैं आज अपने ऊपर भगवान का अनुग्रह है कृपा है अपने पुण्य का उदय है अब बाकी है करना पुरुषार्थ हम एल आय सी ऑफिस में जाते हैंl वहां बोर्ड पर लिखा हुआ होता है योग क्षेम वहाम्यहं योग यानी अप्राप्त की प्राप्ति नहीं मिला तो मिलाना क्षेम यानी प्राप्त हुए की रक्षा करनाl जो नहीं मिला उसको मिलना मिले हुए को संचित करना हमको मनुष्य को मिल गया पर अब क्या करना सारी दुनिया को बदलने की अपने में ताकत नहीं पर स्वयं को बदलने की ताकत हैl धर्म की नई है मैत्री है सड़क तू तेरे अंतर में रहे हुए राकेश को निकाल दे दूसरे के प्रति द्वेष को तू निकाल दl तेरी दृष्टि गुना पर ही रख कांटों पर नहीं जो गुना पर दृष्टि रखता है वह अंतर से जाग जाता हैl अहिंसा संयंम की आराधना में लग जाता है शब्द का ज्ञान याद कर लिया पर वह हृदयस्थ बनता नहींl आगे जाकर आत्मस्थ भी रहता नहीं कुछ पाने की इच्छा रखने वाला आगे बढ...

साधना के बिना शुद्धि नही होती

श्री हीराबाग जैन स्थानक सेपिंग्स रोड बेंगलुरु में साध्वी श्री आगम श्री जी म सा ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी ने स्वयं आत्म शुद्धि की साधना की थी। क्योंकि साधना के बिना शुद्धि नही होती। धर्म की शुरुवात मानव जीवन से होती हैं। सारी दुनिया को बदलने की शक्ति हमारे में नहीं परंतु स्वयं को बदलने की शक्ति हमारे में हे। धर्म की नीव मैत्री है। बदलना है बदला नहीं लेना। गुणसागर के लग्न मंडप में होने पर भी उनका ध्यान धर्म और गुरु चरणों में था। चिंतन करते करते लग्न मंडप में मुक्ति पाई। शादी करने आए रामदास स्वामी और सावधान सावधान सुनते सुनते जल गए। वहां से भाग कर अपनी आत्मा का कल्याण कर लिया। श्री धैर्या श्री जी म सा ने बताया नवतत्वों समयग् रूप से जानना हे। तत्वभूत पदार्थ के वास्तविक रूप को स्वीकार करना सम्यक्तव कहलाता है। जो भगवान ने फरमाया है वही सत्य है। वह जीव अपनी साधना करते करते आगे बढ़ता है तब क...

सभी भौतिकवादी चीजें सच्ची खुशी नहीं दे सकतीं

वीरपत्ता की पावन भूमि आमेट के जैन स्थानक में साध्वी विनित रूप प्रज्ञा ने संसार भावना को समझाते हुए कहा संसार भावना’ का तात्पर्य चार गतियों – मनुष्य, तिर्यंच (पशु, पक्षी आदि), नारकी (नारकीय प्राणी) और देवता (स्वर्गीय प्राणी) में आत्मा के इस दुःखपूर्ण आवागमन का चिंतन करना है और प्रमुख विषय पर आगे विचार करना है – “मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्र से कब मुक्त होऊंगा; मुझे सच्चा सुख और आनंद कब मिलेगा?” ‘संसार भावना’ पर चिंतन करने से साधक को स्वयं का ब्रह्मांड के साथ संबंध समझने में मदद मिलती है और यह एहसास होता है कि धन, शक्ति, कामुक सुख और अन्य सभी भौतिकवादी चीजें सच्ची खुशी नहीं दे सकतीं। सच्ची खुशी भौतिक दुनिया से लगाव से नहीं, बल्कि वैराग्य से आती है। इस भावना का निरंतर चिंतन करने से हमें यह विचार करने की प्रेरणा मिलती है कि क्या हम संसार में हैं या सं...

जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष

क्रमांक – 11 . *तत्त्व – दर्शन*  *🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार* *👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।* *🔅 जीव तत्त्व* *जीव तत्त्व के मुख्यतः दो भेद किये गए हैं – संसारी और मुक्त। इस तथ्य को तत्त्वार्थ सूत्र में ‘संसारिणो मुक्ताश्च’ सूत्र के द्वारा समझाया गया हैं। जो जीव कर्मबंधन से युक्त है वह संसारौ है और जो कर्मफल से पूर्णतः रहित हो गये हैं वे मुक्त हैं। जीव की परमविशुद्ध दशा ही मोक्ष है। संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं – त्रस और स्थावर। जो जीव गतिमान होते हैं, उन्हें त्रस और जो स्थिर होते हैं उन्हें स्थापर कहते हैं। स्थापर जीव सबसे अपूर्ण-अविकसित होता है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु, वनस्पति के जीव स्थावर जीव कहलाते हैं। इसमें केवल स्पर्शेन्द्रिय होता है अतः इन्हें केवल स्पर्श का भा...

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