चेन्नई. यदि हमारे किसी कार्य से किसी को शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचता हो तो वह कार्य नहीं करना चाहिए। किसी भी कार्य को करने के बाद यदि हमें खुशी और संतुष्टि मिल रही हो तो समझना हम सही मायने में सफल हो रहे हैं।
साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने कहा जिंदगी का असली मतलब हमारी सांसों का चलना है। सांस खत्म होते ही हमारी जिंदगी खत्म हो जाती है, इसलिए हमारी जिंदगी का उद्देश्य भी ‘जीओ और जीने दो’ होना चाहिए। यदि हमारे कार्य से किसी को क्षति नहीं पहुंच रही है, तो हमें किसी की भी परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए।
किसी कार्य को करते समय उस कार्य के प्रति संपूर्ण प्रयास करते रहना ही जीतने की निशानी है। जिस समय हम अपने कार्य में पूरा समय नहीं दे पा रहे हैं तो समझना हमारे कदम हार की ओर बढ़ रहे हैं।
मुनि ने कहा हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण यह है कि हम आज यानी वर्तमान में नहीं जीते। भविष्य एवं भूतकाल की चिंता में डूबकर उपलब्ध सुख का आनंद हम नहीं ले पाते। हमें अपने बीते कल से सबक लेकर आज को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हम खुश रहकर कार्य करें।
जिस तरह हम अपनी सांस व दिल की धडक़न को नहीं रोक सकते, वैसे ही हम अपने मन को भी नहीं रोक सकते। ध्यान का मतलब यही है कि हम अपने मन को नियंत्रित करके उसे सही दिशा की ओर ले जाएं। यदि हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक-विध्वंशात्मक है तो हम सुख के वातावरण में भी दु:खी हो जाएंगे और यदि हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक-सृजनात्मक है तो दुख में भी हम सुखी हो जाएंगे।
वृक्ष की शाखा हिलने पर पंछी डरता नहीं, क्योंकि उसे अपने पंखों पर विश्वास होता है, उसी तरह विपरीत परिस्थिति आने पर साहसी डरता नहीं, क्योंकि उसे अपने साहस पर भरोसा होता है। पुरानी गाड़ी, फर्नीचर, कपड़े, बर्तन नहीं बदलेंगे तो कोई नुकसान नहीं होगा, किंतु गलत आहार, गलत आदत नहीं छोड़ी तो जीवन बर्बाद हो जाएगा। गलत रास्ता जैसे हमें भटका देता है, वैसे ही गलत सोच, दृष्टिकोण हमें जीवनभर दुखी बना देता है।