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प्रतिक्रमण क्रिया नहीं, भाव को स्पर्श करने की कोशिश: आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर

प्रतिक्रमण क्रिया नहीं, भाव को स्पर्श करने की कोशिश: आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर ने प्रतिक्रमण की महिमा बताते हुए कहा परमात्मा ने आत्मा की निर्मलता के लिए छह आवश्यक क्रियाएं सामायिक, पौषध, वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, पच्चखाण बताई है। प्रतिक्रमण एक क्रिया नहीं है, भाव को स्पर्श करने की कोशिश है जो आत्मा को आकर्षित करे।

उन्होंने कहा आपकी परिस्थिति का मूल कारण है अतिक्रमण और इसका उपाय है प्रतिक्रमण। साधु साध्वी को 45 आगम में एक आगम का स्वाध्याय सुबह और शाम करना ही पड़ता है और वह है आवश्यक सूत्र, न करने पर उन्हें पश्चाताप लेना पड़ता है। आवश्यक सूत्रों से नम्रता व विनय गुणों का विकास होता है। प्रतिक्रमण सूत्र भी आवश्यक सूत्र का स्वाध्याय है। प्रतिक्रमण सूत्र गणधरों द्वारा रचित है।

प्रतिक्रमण का तात्पर्य है पापों से पीछे हटना। इसके दो रूप होते हैं नकारात्मक और सकारात्मक। नकारात्मक यानी पाप होने के बाद पश्चाताप करना और सकारात्मक यानी राग, द्वेष, काम और क्रोध से मुक्त रहकर प्रतिक्रमण करना। शास्त्रों में सकारात्मक प्रतिक्रमण को उत्सर्ग प्रतिक्रमण बताया है। प्रतिक्रमण की दूसरी व्याख्या है प्रमाद भाव से आत्म भाव में प्रवेश करना।

हमें पांच आचारों का पालन करना चाहिए-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार। उन्होंने कहा आज भी पंचाचार का पालन करने वाली आत्मा जिन शासन में मौजूद है। प्रतिक्रमण की शुरुआत सामायिक यानी चारित्र का संकल्प से होती है, फिर चैत्यवंदन यानी दर्शनाचार की शुद्धि। तीसरा आवश्यक गुरु वंदन, जिससे ज्ञानाचार की शुद्धि होती है। चौथी आवश्यक क्रिया पांचों प्रकार के आचार की शुद्धि और पांचवां कायोत्सर्ग में खड़े खड़े क्रिया करने से वीर्याचार की शुद्धि होती है।

उन्होंने कहा प्रतिक्रमण जैसी विशुद्ध आराधना गुरु भगवंत की साक्षी में की जानी चाहिए इसीलिए स्थापनाचार्य की स्थापना की जाती है। पांचिदिय सूत्र गुरु की प्राण प्रतिष्ठा है, गुरु प्रमाद से हमारी रक्षा करते हैं। उन्होंने कहा जहां तक संभव हो सके उपाश्रय या साधना स्थल पर जाकर प्रतिक्रमण करना चाहिए। इससे शुद्ध वातावरण और पॉजीटिव वाइब्रेशन मिलेंगे।

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