चेन्नई. रविवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने किलपाक में शांतिलाल मनोजकुमार मूथा के निवास पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में कभी अप्रतिकूलताएं आए तो परेशान न हो। परेशान होंगे तो आर्तध्यान शुरू हो जाएगा और धर्मध्यान छूट जाएगा। आसन छोड़ सकते हैं लेकिन धर्म ध्यान छूटना नहीं चाहिए। हर व्यक्ति चाहता कि उनका रिश्ता सर्वसमर्थ प्रभु के साथ जुड़ें।
लेकिन वे प्रयास नहीं कर पाते हैं और जुड़ नहीं पाते हैं। परमात्मा ने उत्तराध्यन में कहा है कि यह संसार इंद्रियों से देखा, सुना, लिया और छोड़ा जा सकता है इसलिए यह सरल लगता है। लेकिन परमात्मा ऐसे नहीं हैं, इसलिए उनसे जुडऩा व्यक्ति को सरल नहीं लगता है। जैसे-जैसे साधना में बढ़ेंगे वैसे-वैसे अनुभव होगा कि संसार दिखता सभी को है लेकिन मिलता किसी को नहीं। धर्म किसी को दिखता नहीं है लेकिन मिलने के लिए चलोगे तो अवश्य मिलता है। अनादिकाल का सभी का अनुभव है कि जो दिखता है, उसके पीछे हम दौड़ते रहते हैं।
अनादीकाल से कषायों में ही अपनी सारी ऊर्जा लगी हुई है। सभी को संसार रूपी सर्प का दंश लगा हुआ है, जिससे कषाय मीठा और प्रवचन कड़वा लगता है। जहां एनर्जी लगी होगी उसी में आपको आनन्द मिलता है। यह जीव सत्ता हाथ से छूट रही है, सांस टूटने वाली है लेकिन फिर भी परमात्मा में रस ले नहीं पाता है।
परमात्मा से जुडऩे के लिए जो दिखता नहीं वह देखना पड़ता है। भगवान महावीर विराजमान हैं लेकिन गोशालक को भगवान नहीं बल्कि अपना प्रतियोगी दिखते हैं और इंद्रभूति को परमात्मा की चेतना दिखती है। भगवान की चेतना को जो देख लेता है वह परमात्मा से जुड़ पाता है।
जो दिखता है उसकी व्यर्थता और अनर्थता समस्याएं खड़ी करता है। जो मैं जी रहा हंू वह जिन्दगी को जलाकर बनी हुई राख है, यह जिसे महसूस हो जाए वही नया रास्ता खोज पाता है और जिसे न हो वह प्रभु की तरफ नजर उठाकर ही नहीं देखता है।
इस शरीर में जब तक चैतन्य देव है यह तन परमात्मा का मंदिर है। जब चेतना निकल जए तो यही तन गंदा हो जाएगा। औदारिक शरीर की एक ही गति है कि चेतना निकल जाए तो असंख्य जीव उत्पन्न होकर सडऩे लग जाता है। इससे पहले इसे संभाल लें, आगे की यात्रा कर लें। यह मल और पंक से बने शरीर से अपना उद्धार कर लो, दिव्य शरीर प्राप्त कर लो या शरीर से मुक्त हो जाओ। यह तभी होगा जब, जो दिखता है वह मिलता नहीं है, इस सत्य को स्वीकार कर पाओ।
इस संसार के रिश्तों में वफादारी खोजना रेगिस्तान में पानी खोजने के समान है। वफादारी की कीमत तो मात्र देव, गुरु और धर्म में ही मिल सकती है। जो इनसे वफादारी नहीं रख सकता उसका इस संसार में आना ही व्यर्थ है।
तन और मन को स्वस्थ रखना हो तो अपने अन्दर के चैतन्य की कीमत करो। तभी प्रभु के साथ जुड़ पाओगे। लोग प्रभु के साथ भी संसार के लिए जुड़ते हैं। उनके पास जाकर भी उनका ज्ञान, दर्शन, चरित्र और धर्म नहीं चाहते हैं, बल्कि तुच्छ सांसारिक इच्छाओं की कामना करते हैं। इससे बढ़कर कोई गुनाह नहीं हो सकता।
प्रभु की पारसमणि मिलने के बाद आत्मा को सोना बनाना चाहिए, न कि सत्ता, संपत्ति और संसार का चक्र बढऩा चाहिए। परमात्मा ने कहा है कि धर्म आराधना करके संसार मत मांगना। धर्म, ध्यान, तप से संसार नहीं मांगना, यह नियाना है, उसे धर्मात्मा नहीं कहा जा सकता। संसार की वस्तु संसार से मांगें, धर्म से नहीं। प्रसिद्धि के चक्कर में कभी अपना धर्म न छोड़ें।
परमात्मा कहते हैं कि संसार के सारे सुख बादल की छांव जैसा है जिसका पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है। नियंत्रण आपका स्वयं और धर्म पर हो सकता है, उस मार्ग पर बढ़ें। तीर्थेशऋषि महाराज ने भक्तिगीत सुनाया और उड़ान टीम को स्फटिक माला भेंट कर उनका उत्साह बढ़ाया। अनेकों श्रद्धालुओं प्रवचन श्रवण का लाभ लिया।