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धर्म मे मानसिक पुरुषार्थ चाहिए: प्रकाश मुनि जी

धर्म मे मानसिक पुरुषार्थ चाहिए: प्रकाश मुनि जी

आज के दिन महावीर स्वामी जी को याद करते है भगवान ने एक मास 20 रात्रि के बाद पर्युषणा पर्व की स्थापना कीl यह बात पूज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी ने फरमाते हुए कहा कि आज के देवता भी 8 दिन का महोत्सव मानते हैl देव गति में क्रियात्मक धर्म नही, भावात्मक धर्म करते हैl

वीतराग का धर्म कर्म प्रधान है कर्म का दूसरा रूप पुरुषार्थ हैl परमात्मा का जीवन पुरुषार्थ वाला था प्रेरणा हमें भी दी है उन्हें गर्भ से ज्ञान थाl अंग संचालन रोक दिया क्षायिक समकित आत्मा सब जानते हैl शुद्ध निर्मल ज्ञान था उनका जीवन चरित्र बताता है संयम की आराधना की, आत्मा की आराधना की, साधना की तन का मोह छोड़ दिया ।

भगवान ने इतनी वेदना कैसे सहन की क्योकि उनका शरीर वज्रसहनन वाला थाl सहनन ठोस होता है 1000 मन की गाड़ी उनके ऊपर से निकल जाय तो चींटी जा रही हो ऐसा लगता हैl परमात्मा आत्मा में डूब जाते है शुक्ल ध्यान चलता है, प्रथक, वितर्क सुविचार का चिंतन चलता हैl दिमाग एकाग्र हो सकता है अविचार होता नहीl श्रमण निर्देश करते है पुरुषार्थ के बिना भौतिक आध्यात्मिक वस्तु नही मिलेगी, धर्म मे मानसिक पुरुषार्थ चाहिएl

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🔻🖋️ *विरेन्द्र मांडोत खाचरोद*🔻

🙏जिन आज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा हो तो मिच्छमी दुक्कडम🙏

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