*तमिलनाडु उपमुख्यमंत्री श्री ओ पन्निरसेल्वम ने दर्शन कर पाया पाथेय
*श्री अरविन्द संचेती बने जैन विश्व भारती के नये अध्यक्ष
जैन विश्व भारती तेरापंथ समाज की एक केंद्रीय गरिमापूर्ण संस्था है| यहां पर परम् पूज्य गुरुदेव तुलसी ने कई चातुर्मास किये हैं| जहां पर संतो के गुरुओं का लंबा प्रवास हुआ है, वह भूमि तपोभूमि हैं| दूसरी ओर मुमुक्षु बाईयां, समणीयाँ, साधु साध्वीयों का लंबा विराजना रहता हैं, इस माईने में यह साधना भूमि है| जैन विश्व भारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय मैं ज्ञान की सारस्वत साधना होती हैं| जहां ज्ञान की अराधना होती है, तो वह स्थान एक दृष्टि से गरिमापूर्ण बन जाता है, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में जैन विश्व भारती के 47वें वार्षिक अधिवेशन में मुख्य प्रवचन के अवसर पर श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहे|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि जैन विश्व भारती के तुलसी अध्यात्म नीडम़ में प्रेक्षाध्यान की साधना चलती हैं| साहित्य का यहां अपूर्व भंडार हैं, हस्तलिखित एवं प्रिंटिंग साहित्य वहां पर उपलब्ध हैं| जैन विश्व भारती में साधु साध्वीयों को स्वास्थ्य लाभ के रूप में आयुर्वेदिक दवाई उपलब्ध कराती हैं, वह भी एक सेवा का मानो कार्य हैं| *एक दृष्टि से तेरापंथ समाज का भाग्य है, कि जैन विश्व भारती संस्था इस समाज के द्वारा संचालित हो रही हैं, विभिन्न रुपों की सेवा का काम हो रहा है* और कितने कितने कार्यकर्ताओं का परिश्रम, गुरूदेव तुलसी का पथदर्शन, आशीर्वाद दृष्टि तो मिली, मिल रही हैं, पर समाज के भी कितने कितने गृहस्थों का परिश्रम, कितना समय, कितनी शक्ति उसमें लगी हैं, लग रही हैं, तो यह एक ऐसी कामधेनु जिसे कहा गया है, यह एक ऐसा जय कून्जन, एक ऐसा हाथी है| जैसे हाथी को अच्छा खाना पीना मिलता हैं, तो उसी तरह संस्था को भी अच्छा पोषण मिलता रहे सार संभाल होती रहे|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि *किसी भी संस्था मैं एक टीम आती है, एक समय के बाद वह चली जाती हैं, परिवर्तन होता रहता हैं| लेकिन जाने वाले के मन में आत्मतोष हो, कि मैंने अच्छा काम किया और आने वाला उस उत्साह के साथ आए कि मैं और ज्यादा अच्छा काम करूं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जैन विश्व भारती द्वारा आज डॉ श्री शिवकुमार सरीन साहब (नई दिल्ली) को प्रज्ञा फुस्कार दिया जा रहा है| आचार्य श्री ने कहा कि डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं, मरीज यह चाहते हैं कि डॉक्टर मुझे बचा लें, डॉ भी कितना प्रयास करते हैं, मरीज को स्वास्थ लाभ देने का और उच्च कोटि के जो डॉक्टर होते हैं वह बड़े स्तर के आदमी होते हैं|
*अच्छा चिकित्सक बनना गौरव की बात
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि डॉक्टर में भी मुझे लगता है एक साधना होती हैं| अच्छी साधना के बिना अच्छा डॉक्टर बनना भी मुश्किल होता है, वह एक अपने जीवन में अच्छी साधना करता है और कहीं-कहीं मुझे लगता है वो पिछले जन्म की साधना लेकर के आते हैं और यहां भी कुछ साधना करते हैं, तब वे अच्छे चिकित्सक बनते हैं| तो अच्छा चिकित्सक भी बनना गौरव की बात हैं, होती हैं|
जिनके जीवन में करूणा हैं, निर्मलता हैं, पवित्रता हैं और जिन्होंने सारस्वत साधना की हैं, स्वास्थ्य शास्त्र की गहराई में गए हैं, अनुभव प्राप्त किये हैं और अपने अनुभव से अपनी कुशलता से कितने मरीजों को अभय बना लेते हैंं, अस्वस्थ को स्वस्थ बना लेते हैं तो डॉक्टर भी जो उच्च कोटि के होते हैं उनमें कुछ अंश में साधना होती है संतता होती है, तब वे अच्छे डॉक्टर बन सकते हैं|
*श्रेष्ठ व्यक्तित्व से पुरस्कार भी होता सम्मानित
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि कई बार तो पुरुस्कार, सम्मान से आदमी सम्मानित होता है और कहीं कहीं वह आदमी से पुरुस्कार भी सम्मानित हो जाता हैं| मानो पुरुस्कार का भी भाग्य होता है उसको अच्छे आदमी के पास जाने का मौका मिलता है, तो डॉक्टर साहब खूब अच्छी साधना करें, जीवन में आध्यात्मिकता का विकास होता रहे, करुणा, निर्मलता, अनुकंपा जिंदगी में बनी रहे और मरीज को भी खूब सांत्वना मिलती रहे, मरीज की चित समाधि प्राप्त होती रहे|
पदम् भूषण डॉ शिवकुमार सरीन ने कहा कि एक डॉक्टर के लिए बड़ा सौभाग्य का दिन है कि ऐसे ऐतिहासिक दिन जैन विश्व भारती के 50वें वर्ष में और इतने पवित्र वातावरण में मुझे आने का मौका मिला और यह इसके लिए भी जरूरी है कि यह एक जीवन का उद्देश्य है| डॉ सरीन ने दृश्यों के माध्यम से शरीर के अभिन्न अंग *लीवर* के बारे में बताते हुए,उसे किस तरह स्वस्थ रखा जा सकता हैं, उसके बारे में जानकारी दी| शरीर में फेट आता है तो लीवर खराब हो सकता है, उससे ब्लेड प्रेशर, डायबिटीज, ह्राटअटेक, शूगर, कैंसर जैसी बिमारीयाँ हो सकती हैं| क्या खाए और कब खाएं के बारे में बताते हुए कहा कि हमारा खाना शाकाहारी होना चाहिए| शराब इत्यादि नशे का सेवन नहीं होना चाहिए| अच्छे देशी घी को उचित मात्रा में उपयोग में लेना चाहिए| सुबह 6 बजे से ज्यादा से ज्यादा रात्रि 8 बजे तक खाना होना चाहिए|
*आध्यात्मिक विकिरणों से उत्पन्न वातावरण में मिलती शान्ति : साध्वी प्रमुखाश्री
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने कहा कि जैन विश्व भारती आचार्य श्री तुलसी का एक महान अवदान हैं समाज को| यहां शिक्षा, साधना, सेवा, शोध, साहित्य, समन्वय और संस्कृति इन सात सकारों के माध्यम से रचनात्मक उपक्रम चल रहे हैं| वहां आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी, आचार्य श्री महाश्रमणजी, तीन तीन महान् आचार्यों के आध्यात्मिक विकिरणों से उस स्थान के वाइब्रेशन इतने शुद्ध हो गए हैं कि वहां जाने मात्र से शांति मिलती हैं, वहां रहने वाले स्वस्थता का अनुभव करते हैं|
*धर्म के संदर्भ में मनुष्य से श्रेष्ठ कोई नहीं
ठाणं सूत्र के दूसरे अध्याय के 454वें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने फरमाया कि बारह देवलोक में प्रथम सौधर्म कल्प और दूसरे ईशान कल्प (देवलोक) में पुरूष देवों के अलावा स्त्री देवियां होती हैं, उससे आगे के कल्पों में देवियां नहीं होती, देवता ही पैदा होते हैं| चार गतियों में रिद्धि, समृद्धि, वैभव की दृष्टि से देव गति सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जा सकती हैं|
नारक कष्ट युक्त जीवन जीने वाले होते हैं, तिर्यंच गति बहुत साधारण होती हैं और मनुष्य गति अच्छी गति है, जहां से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती हैं| देव गति भौतिक वैभवता की दृष्टि से सर्वोत्तम प्रतीत होती है, परन्तु साधना की दृष्टि से देखी जाए तो मनुष्य गति सर्वोत्तम हैं|84 लाख जीवा योनि (चार गतियों) में एक अपेक्षा से मनुष्य गति सर्वाधिक, सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं, इसका कारण है कि एक संज्ञी मनुष्य ही छठे गुणस्थान में आ सकता है, उससे ऊपर चौवदहवें तक रह सकता हैं|बाकी कोई भी प्राणी पांचवें गुणस्थान से ऊपर नहीं जा सकता, पांचवें में भी मात्र संज्ञी तिर्यंच हो सकते हैं| बाकी नारक और देव गति के जीव चौथे गुणस्थान को भी पार नहीं कर सकते हैं, तो चौवदह के चौवदह सारे गुणस्थानों में एक मात्र संज्ञी मनुष्य जीव ही रह सकता हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो साधना करके मोक्ष जा सकता हैं और संसार का कोई भी प्राणी मोक्ष में नहीं जा सकता, इसलिए इस आधार पर, इस अपेक्षा से मनुष्य गति को सर्वश्रेष्ठ कहां जा सकता| मनुष्य से श्रेष्ठ धर्म के संदर्भ में और कोई हो नहीं सकता|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि अब महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य को जीवन कैसा जीना चाहिए? क्योंकि मनुष्य मर कर के सातवीं नरक तक जा सकता है| एक सिद्धांत और है कि स्त्री मनुष्य जितना पाप नहीं कर सकती, एक निष्कर्ष यह है कि पाप कि दृष्टि से देखा जाएं तो पुरुष ज्यादा पापी हो सकता है, महिला उतनी नहीं हो सकती|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि नहीं हो सकती का आधारभूत तत्व यह है कि स्त्री मरकर के सातवीं नरक में कभी नहीं जा सकती, ज्यादा से ज्यादा जाएगी तो वह छठी नारकी तक जा सकती हैं, यह एक प्राकृतिक सिद्धांत हैं| दूसरा पहलू यह भी है कि कुछ कुछ साधना पुरुष कर सकता हैं, वो साध्वी नहीं कर सकती, महिला नहीं कर सकती|
*धर्म के क्षेत्र में तीर्थकर सर्वोच्च व्यक्ति
आचार्य श्री ने आगे कहा कि इतिहास बताता है कि धर्म के क्षेत्र में तीर्थकर सर्वोच्च व्यक्ति होते हैं और सामान्यतया तीर्थकर पुरुष बनते हैं, 19वें तीर्थकर को छोड़ कर बाकी 23 तीर्थकर पुरुष ही हुए हैं| तीर्थकर अचेलता (वस्त्र विहीन) की साधना करते हैं और अचेलता की साधना पुरुष ही करते हैं, स्त्री को अचेलता की साधना नहीं करनी चाहिए| विधि सम्मत भी नहीं और करनी भी नहीं चाहिए| उसी तरह पाप के क्षेत्र में भी पुरुष जितना पाप कर सकता हैं, सातवीं नारकी तक जा सकता हैं, स्त्री उतना पाप नहीं कर सकती|
*मनुष्य जीवन दुर्लभ
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि मनुष्य में जब वह क्षमता है, वह विशेष साधना कर सकता हैं, तो मनुष्य जीवन हमें एक बार मिल गया है, अब बाद में कब मिलेगा? कईयों को तो फिर मिल सकता हैं, लेकिन जो पाप ज्यादा करे तो वह इतना नीचे गिर सकता हैं कि वापस मनुष्य जन्म मिलना दुर्लभ हो जाता है| शास्त्र में दुर्लभ चार चीजों में पहली चीज मनुष्य जीवन को बताया गया हैं| अब दुर्लभ मनुष्य जीवन को जिसने प्राप्त किया है, पहले तो कईयों को यह ज्ञान भी प्राप्त नहीं होता कि मैने मनुष्य जन्म रूपी दुर्लभ चीज प्राप्त की है, मनुष्य बना हूँ और वह पाप में, प्रमाद में, व्यसन में, हिंसा आदि में अपने जीवन का बहुत सा समय गंवा देता है| एक प्रश्न यह हो जा सकता हैं, हो सकता है कि आगे का किसने देखा है, क्यों आगे की चिन्ता क्यों करे, क्या पता आगे कुछ है या नहीं? पुनर्जन्म होगा, इसका क्या पता हैं? यह पुनर्जन्म का विषय कही-कहीं संदेहास्पद रहता हैं, कि हमने तो देखा नही पिछले जन्म में क्या थे, आगे क्या बनेंगे, बनेंगे या नहीं बनेंगे? तो पुनर्जन्म है अथवा नहीं, तो वर्तमान में जो भोग प्राप्त है, उसको क्यों छोड़े, आराम करे|
*अशुभ काम, गलत काम, खराब काम से बचे
आचार्य श्री ने आगे कहा कि पुनर्जन्म है या नहीं, संदेहास्पद पर एक संस्कृत श्लोक में कहा गया है कि परलोक के विषय में संदेह होने पर भी आदमी को अशुभ काम, गलत काम, खराब काम छोड़ देने चाहिए और आदमी को अच्छे काम करने चाहिए, क्योंकि अगर परलोक नहीं भी है, तुमने बढ़िया काम किये, क्या घाटा? अच्छी बात है बढ़िया काम करके जा रहे हो, जीवन छोड़ रहे हो| अगर परलोक हैं, तुमने खराब काम नहीं किये, अच्छे काम किये तो आशा करों आगे अच्छी गति मिल सकती हैं| तो परलोक हैं तो ठीक, नहीं है तो ठीक, आदमी को जीवन अच्छा जीना चाहिए, *जीवन गुण सम्पन्न जीना चाहिए|
*अहिंसा परम् धर्म
आचार्य श्री ने आगे कहा कि गुण सम्पन्न जीवन की दृष्टि से आदमी में ईमानदारी होनी चाहिए, नैतिकता होनी चाहिए, मनुष्य को धोखा नहीं करना चाहिए, ठगी नहीं करनी चाहिए, झूठ-कपट से जितना हो सके, बचना चाहिए| जीवन में *ईमानदारी का भाव रहेगा, तो कुछ अंशो में हमारी आत्मा निर्मल रह सकेगी|* दूसरी बात है आदमी के जीवन में अहिंसा की भावना रहनी चाहिए| *अहिंसा परम् धर्म हैं,* कि मेरे द्वारा बिना मतलब किसी को कष्ट ना पहुँचें, मेरे द्वारा बेकार प्राणियों की हिंसा न हो पाये, एक चींटी भी बेकार में क्यों मरे मेरे पैर से| *सौ दो सौ मीटर चलते समय भी ध्यान देकर चले कि कोई जीव जन्तु नहीं मरे, तो सहज में अहिंसा की साधना हो गई|* स्नान करते समय कम पानी के उपयोग से अपकाय के जीवों की हिंसा से भी बचाव हो सकता है| लसण, प्याज आदि जमीकन्द की चीजों के नहीं खाने से, त्याग करने से, जीवन चल सकता हैं| *जीवन चल सकता हैं तो लसण, प्याज, गाजर, शकरकन्द जो अनन्त कायिक चीजे है, उतनी हिंसा क्यूं करू, हिंसा का अल्पीकरण करू| काम चलता हो तो सूर्यास्त से पूर्व खाना चाहिए, मान लो विवशता हैं, जरूरी है, दुकान – ऑफिस से आने में देरी हो जाती हैं, ठीक है नौ – दस बजे के बाद खाना नहीं खाऊ, एक सीमा हो गई, कि दस बजे के बाद तो मुझे खाना खाना ही नहीं, तो संयम हो गया, साथ में अहिंसा की साधना भी हो गई| तो हमारी जीवन शैली में ईमानदारी हो, अहिंसा हो|
*नशामुक्त जीवन जीये
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि आदमी शराब, बीड़ी, सिगरेट, गूटका, खैनी इत्यादि नशीली, धूम्रपान की चीजों से भी बच कर रहे, उपयोग में नहीं ले, त्याग करे|शराब आदमी के दिमाग को खराब कर देती हैं, अत: आदमी को नशामुक्त जीवन जीना चाहिए|
*मानव जीवन का करे सदुपयोग
आचार्य श्री ने आगे कहा कि तो *गृहस्थों की ईमानदारी युक्त, अहिंसा प्रधान, नशामुक्त जीवन शैली हो| ऐसी जीवन शैली है और साथ में धर्म की साधना, तपस्या, त्याग, सामायिक आदि आदि की साधना हैं, ऐसा अच्छा जीवन हैं, तो मानना चाहिए, मानव जीवन का हमने सदुपयोग किया है, अच्छा जीवन जीया हैं और मानव जीवन अच्छा जीया है, तो आगे की गति भी, अगर है, तो वो गति भी अच्छी हो सकेगी| अगर जीवन में पाप करेंगे, हिंसा, बेईमानी, दुराचार, अत्याचार करेंगे तो मरने के बाद परलोक हैं, तो दुर्गति भी हो सकती हैं|
जैन विश्व भारती द्वारा पद्म भूषण डॉ श्री शिवकुमार सरीन को प्रजा पुरस्कार से सम्मानित किया गया| जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि श्री किर्तीकुमार ने अपने विचार व्यक्त किये| अध्यक्ष श्री रमेश बोहरा ने जैन विश्व भारती की गतिविधियां निवेदित करते हुए पूज्य प्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए अपने दो वर्षीय कार्यकाल में ज्ञात अज्ञात सभी से मिले सहयोग के लिए धन्यवाद दिया| मंत्री श्री राजेश कोठारी ने डॉ शिवकुमार सरीन का परिचय प्रस्तुत किया| पुरस्कार वितरण कार्यक्रम का संचालन श्री ललित दुगड़ ने किया| जैन विश्व भारती द्वारा सभी दानदाताओं का सम्मान किया गया| श्रीमती मधु सेठिया ने 28 दिन एवं अन्य तपस्वीयों ने आचार्य प्रवर के श्रीमुख से प्रत्याख्यान किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया|
*✳ तमिलनाडु के उप मुख्यमंत्री ने किये दर्शन, पाया पाथेय
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता महातपस्वी, शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमणजी के दर्शनार्थ तमिलनाडु के उप मुख्यमंत्री श्री थिरू ओ पन्निरसेल्वम आये| उन्होंने दर्शन, सेवा कर आशीर्वाद प्राप्त किया|
आचार्य प्रवर ने अहिंसा यात्रा के त्रिसूत्रीय आयामों की जानकारी दी| *उप मुख्यमंत्री ने मानवता के इस महनीय कार्य की सराहना करते हुए इसके प्रचार प्रसार में हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया|*
*✳ श्री अरविन्द संचेती बने जैन विश्व भारती के नये अध्यक्ष*
जैन विश्व भारती के 47वे वार्षिक अधिवेशन में सत्र 2018-2020 के लिए श्री अरविन्द संचेती (अहमदाबाद) को अध्यक्ष एवं श्री श्री मनोज लूणिया – (शिलोंग) को मुख्य न्यासी मनोनीत किये गये|
परम् पूज्य आचार्य प्रवर, साध्वी प्रमुखाश्री, मुख्य मुनिश्री से न्यासी और पंचमण्डल के साथ दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*