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ईश्वर के दरबार में मिलता है न्याय,अदालतों में सिर्फ फैसले सुुनाये जातेे हैं: साध्वी नूतन प्रभा श्री

ईश्वर के दरबार में मिलता है न्याय,अदालतों में सिर्फ फैसले सुुनाये जातेे हैं: साध्वी नूतन प्रभा श्री

साध्वी जी ने बताया कि पापी सुुखी मिलेे तो धर्म पर अविश्वास से पहले समझ लेें कर्म की थ्योरी

Sagevaani.com @शिवपुरी। मेेरे दाता के दरबार में सब लोगों का खाता है,जो जैसी करनी करता वैसा फल पाता है। उक्त भजन का गायन कर साध्वी नूतन प्रभा श्री जी ने कमला भवन में आयोजित धर्म सभा में कहा कि इस संसार में न्याय करने वाला सिर्फ ईश्वर है क्योंकि वह सब कुछ जानता है। उसे न तो सबूत और न ही गवाह की जरूरत है।

उसकी लाठी में आवाज भी नहीं होती। साध्वी बंदना श्री जी ने बताया कि संसार में जिसने परमात्मा की शरण स्वीकार कर ली उसे औेर किसी शरण तथा सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ती। धर्मसभा में इंदौर से पधारे श्रावकों ने गुरूणी मैया के दर्शन और बंदन कर उनसे आशीर्वाद लिया।

धर्म सभा में साध्वी नूतन प्रभा श्री जी ने बताया कि अक्सर लोग सवाल करते हैं कि संसार में जो बुरा काम कर रहा है, घोर पापी है, सारे नम्बर दो के काम कर रहा है वह सुखी है तथा भला इंसान है वह दुख भोग रहा है। इस मान्यता को आधार बनाकर लोग धर्म पर अविश्वास करते है।

साध्वी जी नेे कहा कि इसका अर्थ है हमें कर्म की थ्योरी पता ही नहीं है। हम जो भी कर्म करते हैं उसका फल मिलता है। उन्होंने कहा कि लेकिन जो कर्म पहले करते है उसका फल पहलेे और जो कर्म बाद में करते हैंं उसका फल बाद में मिलता है। कर्म के फल से चक्र्रवर्ती सम्राट, तीर्थंकर और भगवान भी नहीं बच पातेे। यदि कोई बुरा व्यक्ति सुख भोग रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके सुख का कारण बुरे कर्म हैं। वह अपने पूर्व के अच्छे कर्मों का फल भोग रहा है।

उन्होंने कहा कि आपने देखा होगा कि जिस दिन पुण्य की पूंजी समाप्त हो जाती है उस दिन व्यक्ति को मिटने में एक मिनट की देरी भी नहीं लगती। अच्छे अच्छे राजा रंक हो जाते हैं। इससे साफ है कि बुरे कर्मों का फल भीभोगना पड़ता है। इसलिए हमेंं धर्म पर अविश्वास नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें ऐसी कोशिश करना चाहिए कि कर्म हमारी आत्मा पर न चिपकें, कर्मों का आत्मा पर बंध न हो। साध्वी जी नेे कहा कि सिद्ध अवस्था प्राप्त करने के लिए कर्मों की निर्जरा (क्षय) हमें करना चाहिए। उन्होंनेे बताया कि कर्मों क ी निर्जरा 12 प्रकार के तपों के जरिये होती है।

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