चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्रसूरीश्वर ने कहा कि सज्जन लोगों के गुणों की प्रशंसा करने से पांच फायदे होते हैं इससे सद्भाव पैदा होता है, हमारी दृृष्टि सकारात्मक बनती है, नई सोच पैदा होती है, अहंकार नष्ट होता है और हमारे गुण स्थिर बनते हैं। यदि खुद की आत्मा में विवेक नहीं है तो दूसरों से उम्मीद नहीं कर सकते।
जब हमें सम्यक दर्शन को टिकाए रखना है तो दूसरों के गुणों की प्रशंसा करना चाहिए, चाहे वह अपना है या पराया। सारे जगत में धर्म की प्रशंसा तो सब करते हैं लेकिन धर्म के मर्म को कोई नहीं समझता। धर्म के मर्म को जाने बिना शास्त्रों का अध्ययन संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कोई भी बयान देने की जल्दी मत करो। पहले यह चैक कर लो कि आपको बयान देने का अधिकार या योग्यता है कि नहीं। यह ध्यान रखें कि शास्त्र के विरुद्ध कोई कार्य नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा ज्ञान का अभ्यास करने के लिए अंदर से आग होनी चाहिए। सीखने की कोई उम्र नहीं होती।
कुमारपाल महाराजा ने सत्तर वर्ष की उम्र में संस्कृत के व्याकरण का अभ्यास किया था। हृदय की भावना शुद्ध व सकारात्मक होनी चाहिए। वस्तुपाल ने प्रभु भक्ति की याचना की थी, प्रभु की भक्ति कोई भी तरीके से की जा सकती है। सज्जन व्यक्तियों के साथ से आपका व्यक्तित्व का पता चलता है।
इस संसार में सबसे सरल कार्य दूसरों की खामियों को निकालना है और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। सज्जन व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा करने से हृदय को प्रसन्नता मिलती है। हमें दूसरों के प्रति सद्भाव पैदा करना है और उनकी खूबियों की अनुमोदना करनी है।