चेन्नई. बुधवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रेक्टिल लाइफ सत्र में युवाओं को अपने अन्तर की शक्ति को जागृत करने के प्रयोग बताए। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति चाहता है कि उसका जीवन परिपूर्ण रहे। पति-पत्नी दोनों ही चाहते हैं कि उन्हें पूर्ण आज्ञाकारी और सर्वगुण संपन्न जीवनसाथी ही मिले। उसमें कोई कमी न हो, हर सांसारिक जीव की यही भावना है कि वह शत प्रतिशत सही होना चािहए। आचारांग सूत्र कहता है कि परिपूर्ण और संपूर्ण जीवन जीने की कामना और उसके वशीभूत होकर व्यक्ति विपरीतता को प्राप्त करता है। यदि ऐसा हो जाए तो व्यक्ति मोक्ष की कामना ही नहीं करता। हर जीव पूर्ण सुख चाहता है लेकिन यह मिलता किसी को नहीं है। जब ऐसा सुख चक्रवर्ती, वासुदेव और बलदेव को भी नहीं मिला तो इस स्थिति में वह अज्ञानी जीव हताश, निराश हो जाते हैं और दूसरों को परेशान करते हैं। इस सत्य को स्वीकार करें कि ऐसा कभी नहीं होता है। संसार कभी भी पूर्ण नहीं होता है।
इस संसार में सारा सुख नहीं है, कहीं पर भी परिपूर्ण सुख नहीं है लेकिन तमन्ना संपूर्ण की है। जो इस शाश्वत सत्य के मार्ग पर चलते हैं, वे संसार का पूरा सुख नहीं चाहते हैं। ऐसी कामना जरूर होती है लेकिन किसी को परिपूर्ण सुख नहीं मिलता। वह परेशान हो जाता है।
संसार का स्वभाव है ही पूर्णता नहीं और धर्म का स्वभाव पूर्णता है। वासनाएं कभी पूरी नहीं हो सकती। पेट भर सकता है लेकिन मन नहीं भरता, यह संसार खाली का खाली है। जो इसे जानते हैं जो ध्रुव या शाश्वत सत्य को जानते हैं, उसी पर चलते हैं।
जन्म और मरण को जानना चाहिए, जीना नहीं चाहिए। जिस संयम पर दृढ़ हैं उस पर चलना चाहिए। जन्म ही मरण है, यह जान लें। जन्म का समय तो तय करते हैं लेकिन मरण का समय कोई तय नहीं कर सकता। किस समय मृत्यु आएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है, किसी भी पल आ सकती है। पैसे गिनते हुए भी मौत आ सकती है और माला गिनते-गिनते भी आ सकती है। तिर्यंच गति के जीव भी सुधर सकते हैं लेकिन मनुष्य गति के जीव सुधर जाएं तो लक्ष्य प्राप्त हो जाए।
डॉक्टर केवल शरीर स्वस्थ है या नहीं। यह बता सकता, आत्मा के बारे में नहीं, कब तक जीएंगे और मौत कब आएगी उसे पता नहीं है। इसलिए हर पल मृत्यु की तैयारी करनी चाहिए। हम जन्म, सगाई, शादी, दुकान सभी की पूर्व तैयारी करते हैं लेकिन मौत की कोई भी पूर्व तैयारी नहीं करता है। इसे जानें और सचेत हो जाएं तो जीव का कल्याण हो जाए।
श्रेणिक चरित्र में बताया कि अपने नरक गति की अनिवार्यता जान श्रेणिक ने तड़पना छोड़ प्रयास किया कि जो धर्मकार्य मैं नहीं कर सकता वह दूसरों से कराउंगा। उसे समकित का ऐसा उजाला हो गया कि मैं नवकारसी, संयम, तप नहीं कर सकता। कोई भी भौतिक कारण से दीक्षा लेने से रुके नहीं। उसका रास्ता खुला हो जाए। उसने तीन घोषणाएं कराई कि मेरे राज्य में मांसाहार का सेवन नहीं होगा। किसी प्रकार का दुराचार पर कोई दुराचार के रास्ते पर नहीं चलेगा नहीं तो दंड मिलेगा। जो कोई परमात्मा से दीक्षा लेना चाहे उसकी सारी जिम्मेदारी मैं निभाउंगा और उसका उत्सव भी मैं मनाउंंगा।
उसकी घोषणा से सबसे पहले उसके घर से ही शुरुआत हो गई। उसकी रानियां, बेटे, बहुएं दीक्षा लेने को लिए तैयार हो गए। उसने किसी को भी दीक्षा लेने से नहीं रोका। अभयकुमार ने आज्ञा मांगी तो श्रेणिक ने उसे नहीं दी। उसने कहा कि मैं जिस दिन तुम्हें कहंू कि यहां से चला जा तब दीक्षा ले लेना। एक बार चेलना ने सोते समय कार्योत्सग किए साधु के कष्ट का स्मरण निद्रा में होने से ‘वो कैसे होगा’ शब्द मुख से निकल जाने पर श्रेणिक को सुनाई देता है और वह उससे पूछता है चेलना के नहीं बताने पर सह शंका करते हुए अभयकुमार को उसके महल को तुरंत जला देने का कहता है और स्वयं परमात्मा के पास जाता है। अभयकुमार कुछ सोचकर रुक जाता है और महल को जलाता नहीं है। श्रेणिक परमात्मा के मुख से चेलना की महिमा गाते हैं कि रानी चेलना जैसी सती नहीं है।
राजा को भूल का अहसास होता है और वह पछताने लगता है कि मैंने जल्दी में निर्णय लिया। हम लोग धर्म क निर्णय तो सोच-समझकर लेते हैं और बाकी सारे निर्णय जल्दबाजी में लेते हैं। तभी सामने से अभयकुमार आता है, श्रेणिक चेलना के बारे में पूछता है और अभयकुमार कहता है कि आपकी आज्ञा थी तो महल को जला दिया है। तभी श्रेणिक के मुख से अनायास ही निकल जाता है कि ‘निकल जा यहां से।’ अभयकुमार तो यह शब्द ही सुनना चाहता था और वह दीक्षा लेने चल पड़ा, राजा श्रेणिक उसे बहुत रोकते हैं लेकिन वह रुकता नहीं और जाते-जाते कह जाता है कि माता चेलना सुरक्षित है। इससे पहले कि बुढ़ापा और मौत आपकी आत्मा को कहे कि आप निकल जाओ यहां से उससे पहले आप इस मोह, माया के संसार से निकल जाएं। मृत्यु का भय अपने मन से निकाल दें उसे जीत लें।
१६ अक्टूबर से आयंबिल ओली की आराधना और पू. सुमतिप्रकाश महाराज की जन्मजयंती मनाई जाएगी। १८ अक्टूबर को ८ बजे प्रात: उत्तराध्ययन सूत्र का भव्य वरघोड़ा निकाला जाएगा सी.यू.शाह भवन से एएमकेएम ट्रस्ट में पहुंचेगा।