अणुव्रत का अर्थ है – छोटे छोटे व्रत, संकल्प, नियम| सब बड़े नियमों को स्वीकार कर लें, यह कठिन है| महाव्रतों में बड़े बड़े व्रतों की संयोजना है। पूर्ण अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह की परिपालना हैं, महाव्रत| पर यह यदि न हो सके तो हम ऐसे ही क्यों रहें? क्यों न छोटे-छोटे व्रतों को स्वीकार करके अपने पर अपना अनुशासन कर लें, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस के आयोजन के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि व्यक्ति अपने जीवन विकास के लिए अणुव्रत के नियमों को अपनाए, संकल्प करें, जैसे मैं किसी निरपराध प्राणी की हत्या नहीं करूंगा| शराब, गुटका, सिगरेट आदि का परिहार करके बड़ा झूठ, धोखाधड़ी व मिलावट नहीं करूंगा|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों में भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर हुए| उन्होंने बताया था कि जो आत्मा मोक्ष में चली जाती हैं, वह वापिस नहीं आती व आत्मिक सुखों में ज्योतित बन जाती है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि अणुव्रत आन्दोलन के प्रर्वतक आचार्य तुलसी ने बतलाया कि कोई भी किसी सम्प्रदाय, ग्रंथ, पंथ या संत को मानने वाला अणुव्रती बन सकता है| यहाँ तक कि नास्तिक भी अणुव्रती बने तो कोई भी बाधा नहीं| आचरण अच्छे रहें, सबके प्रति सद्भावना रहे व मानव अच्छा मानव बने| अणुव्रत का मार्ग संयम की प्रेरणा का मार्ग है|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि हमारा जीवन सादा और विचार उच्च रहे, तो यह जीवन का श्रृंगार बन सकता हैं| अगर व्यक्ति अपने जीवन में इंसान पहले इंसान, फिर हिन्दू या मुसलमान, तथा सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा उन पर चले तो इससे अच्छे राष्ट्र, विश्व व समाज का निर्माण हो सकता हैं| सबके साथ मैत्री हो, किसी के साथ भी वैर-भाव नहीं रहे|

*भारत के विभिन्न धर्मों के लोग आपस में सौहार्द से रहे
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि भारत के विभिन्न धर्मों के लोग आपस में सौहार्द रखें। *संत, महंत अपने अपने हो सकते हैं, पर आत्मा सबके लिए एक है।सबमें सौहार्द बना रहे, यदि मतभेद हो तो भी मन भेद न हो।*
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि अभी जो हम यात्रा कर रहे हैं, वह अहिँसा यात्रा है। इसमें तीन बातों पर बल दिया जाता है – सद्भावना, नैतिकता व नशा मुक्ति। *व्यक्ति-व्यक्ति, जाति-जाति व सभी प्राणियों के साथ हमारी सद्भावना बनी रहे। हमारे आचरण में नैतिकता रहे, चाहे प्रसंग लेन-देन का हो, व्यापार में तोल माप का या फिर असली व नकली का। हम नशे की आदत से दूर रहें, न शराब, न बीड़ी- सिगरेट व न गुटका आदि का सेवन करें।*
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि *आज विभिन्न धर्म सम्प्रदाय को मानने वाले लोग हमारे बीच आये हुए है। सबने अपनी प्रस्तुतियां भी दी, सब अपने अपने शिष्यों को संयम व त्याग की प्रेरणा दें।
कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य श्री के नमस्कार महामंत्र के मंगल स्मरण के साथ हुआ| आगुंतकों का स्वागत अणुव्रत समिति चेन्नई के अध्यक्ष श्री सुरेश जी बोहरा ने किया|
आज के इस पावन अवसर पर सम्मिलित जैन मूर्तिपूजक के मुनि श्री संयमरत्नविजय जी म.सा ने कहा कि सम+प्रदाय अर्थात समानता प्रदान करे वह है सम्प्रदाय| हम मेरा मेरा को छोड़कर तेरा तेरा का क्रम प्रारम्भ करें| निलिमा बहन (ब्रह्मकुमारी) ने कहा कि मन्त्र की तरह उच्चारित शब्द जब तक जीवन में नहीं उतरता, लक्ष्य पूरा नहीं होता| हाय शब्द का प्रयोग जीवन को निराशा व गिरावट की ओर ले जाता है।

बहाई सम्प्रदाय से निलिमा पुनिथन, अहमदिया मुस्लिम जमात से मौलवी रफिक अहमद साहिब, ईसाई सम्प्रदाय से रेव. फादर मारिया अरूल राजा, सिख सम्प्रदाय से ज्ञानी प्रतिपाल सिंह आदि ने अणुव्रत सौहार्द दिवस पर विश्व भर में जन जन के प्रति शांति और अमन का संदेश देते हुए आपसी भाई चारे एवं मजहबी प्रेम पथ पर अपने अनमोल विचार रखे|
कार्यक्रम में अणुव्रत समिति चेन्नई के उपाध्यक्ष श्री करण छल्लानी , श्री मंगल डूंगरवाल, मंत्री श्री जितेन्द्र समदड़िया, सहमंत्री श्री नरेंद्र भंडारी, श्री अरिहंत बोथरा, कोषाध्यक्ष श्री पंकज चोपड़ा, निवर्तमान अध्यक्षा श्रीमती माला बाई कातरेला, श्री ललित जी आँचलिया, श्री अशोक जी छल्लानी, श्रीमती गुणवंती खटेड, समेत कार्यक्रम के संयोजक श्री उमराव जी सेठिया आदि उपस्थित थे| सभी अतिथियों का आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति एवं अणुव्रत समिति द्वारा सम्मान किया गया|

*दो दिवसीय जैन संस्कार विधि संस्कारक निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यशाला का हुआ शुभारंभ
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के तत्वावधान एंव तेरापंथ युवक परिषद्, चेन्नई की आयोजना में दो दिवसीय जैन संस्कार विधि संस्कारक निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यशाला परम् पूज्य आचार्य प्रवर के मंगल पाठ श्रवण के साथ शुभारंभ हुई|
अभातेयुप के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि श्री योगेशकुमार ने फरमाया कि जैन संस्कार विधि जैन समाज के लिए ही नहीं अपितु सकल समाज के लिए वरदान साबित हो रही हैं| यह विधि संस्कार के संवर्धन में बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है| हम बहुत बहुत कृतज्ञ हैं गणाधिपती पूज्य गुरूदेव तुलसी के कि जिन्होंने इसका व्यवस्थित रूप समाज के सामने प्रस्तुत किया| आपने कहा कि अभातेयुप के तत्वावधान में प्रशिक्षण के आधार पर तीन श्रेणियाँ होगी 1. श्री, 2. ह्री और धी श्रेणी|

अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विमल कटारिया ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए *जैन संस्कार विधि के संवर्धन के लिए तीन संरक्षक एवं सम्पूर्ण भारत में एक रूपता एवं प्रशिक्षण के लिए श्री डालमचन्द नौलखा के निर्देशन में तेरह विशेषज्ञ संस्कारकों की टीम घोषणा की|
तेयुप चेन्नई के अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा, जैन संस्कार विधि के राष्ट्रीय सहप्रभारी श्री मुकेश ने अपने विचार व्यक्त किये| मुख्य प्रशिक्षक श्री डालमचन्द नौलखा ने श्रावक निष्ठा पत्र के वाचन के साथ जैन संस्कार विधि के प्रयोग के समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए उसके बारे में बताते हुए कहा कि मंत्रों के उच्चारण की शुद्धि होनी चाहिए| प्रशिक्षण श्री बजरंग जैन ने मंगल भावना पत्रक के बारे में जानकारी देते हुए प्रश्नों के उत्तर दिये| श्री महेन्द्र सेठिया ने तिथि पत्रक के बारे में बताया|
अभातेयुप पदाधिकारीयों द्वारा मुनिश्री को कीट निवेदित किया गया| लक्ष्य गीत का संगान
श्री नवीन बोहरा, श्री स्वरूप चन्द दाँती, श्री पुखराज पारख ने किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन कार्यशाला संयोजक श्री गजेन्द्र खांटेड ने किया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति