क्रमांक – 43
. *तत्त्व – दर्शन*
*🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*
*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*
*🔅 आश्रव*
*यहां आश्रव के बीस भेदों का विवेचन किया जा रहा है :*
*✨5. योग आश्रव*
*👉 योग का अर्थ है प्रवृत्ति। इसे परिभाषित करते हुए कहा गया है ‘कायवाङ्मनो व्यापारो योगः’ अर्थात् शरीर, वाणी एवं मन के व्यापार को योग कहा गया है। जब तक इनके व्यापार चलते रहते हैं तब तक बन्धन बना रहता है। इनके व्यापार दो प्रकार के होते हैं- शुभ एवं अशुभ (शुभोऽशुभश्च)। इसी कारण से योग के शुभयोग एवं अशुभयोग के रूप में दो भेद होते हैं।*
*शुभ योग से निर्जरा होती है। इस अपेक्षा से वह शुभ योग आश्रव नहीं है किंतु वह शुभ कर्म (पुण्य) के बंध का कारण भी है, इसलिये वह शुभ योग आश्रव है। शुभ योग से पुण्य का और अशुभ योग से पाप का बंध होता है। योग का सर्वथा निरोध होने से अयोग संवर अथवा शैलेशी अवस्था प्राप्त होती है।*
*मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय आश्रव बाह्य प्रवृत्ति रूप न होकर आभ्यंतर परिणाम रूप हैं। इनसे आत्मप्रदेशों में स्पंदन-प्रकंपन नहीं होता, वह केवल योग आश्रव से होता है।*
*क्रमशः ………..*
*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*
विकास जैन।