कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज शनिवार तारीख 22 अक्तूबर को प.पू. सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में मृदभाषी श्री साधना जी मसा ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया!
सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया कि परमात्मा कौशांबी नगरी में अपने बारहरवें वर्षावास में तेरह अभिग्रह धारण करके विचरण कर रहे थे! परमात्मा को, अभिग्रह पूर्ति के बिना कहीं भी आहार नहीं मिल रहा था! उस नगरी में श्राविका नन्दा एवं महारानी मृगावती को जब ज्ञात होता हैं और उनकी खुद की कोशिश, महाराजा की कोशिश नाकाम सिद्ध होती है तो वे अत्यंत दुखी हो जाते हैं! परमात्मा सबके मन की बात जानते थे लेकिन परमात्मा के मन की बात जानना किसी के भी वश में नहीं था! उधर चंपा नगरी में 64 कलाओं में निपुण राजकुमारी वसुमती, (चंदनबाला) अपने पिता दधिवाहन एवं माता धारिणी के संरक्षण में बहुत सुखी थी!
पड़ोसी राजा के राज्य विस्तार की नीति के तहत अचानक हमले को दधिवाहन सम्भाल नही पाते और प्राणों की रक्षा हेतु भाग जाते हैं! अचानक युद्ध से बेखबर वसुमति एवं उसकी माता धारिणी को उनका सारथी सच बतलाता है और मना लेता है कि प्राणों की रक्षा के लिए राजमहल छोड़ दें! सारथी का कहना मान कर मां बेटी उसके साथ चल पड़ते हैं और रास्ते में सारथी की मंशा खराब हो जाती है जिसकी वजह से माता धारिणी मृत्यु को प्राप्त कर लेती है! राजकुमारी वसुमति पहली बार अपने आप को बिना माता और पिता के असहाय महसूस करती है वह भी जान देने के लिए तैयार हो जाती है!
कल्पना से परे दृश्य को देखकर, सारथी के मन की कायापलट हो जाती है और राजकुमारी वसुमति को अपनी बेटी के समान भरोसा दिला कर अपने घर ले जाता है! पत्नी के कहने पर मजबूर सारथी राजकुमारी को बेचने के लिए मोहल्ले में खड़ी कर देता है! उसके मोल भाव के चलते उधर से धन्ना सेठ का आना होता है, जो एक झलक में को अदृश्य अनहोनी घटना को समझ जाता है! वह उसे अपनी बेटी जैसे पवित्र भावना से उसे दुगुने दाम पर खरीद लेते हैं!
धन्ना सेठ उसका नाम चंदन बाला रख देते हैं! इधर धन्ना सेठ की पत्नी मूला के कान भरती है उसकी दासी रत्ना! मूला सोचती है बेटी जैसी है, लेकिन बेटी तो नहीं है! संयोग से उसी समय धन्ना सेठ बाहर से आते हैं और उनके पैर धूलाते समय चंदन बाला के घने केशों को एक बाप की हैसियत से धन्ना सेठ संभालते हैं, जिसे मूला देख लेती है!
धन्ना सेठ का 3 दिन के लिए बाहर जाना होता है और क्रुद्ध मूला, साजिश के तहत उसी समय चंदनबाला का सिर मुंडवा कर बेड़ी, हथकड़ी पहनाकर, काल कोठरी में धकेल कर अपने मायके चली जाती है! 3 दिन के बाद धन्ना सेठ का वापस आना होता है और सच जानकर बहुत दुखी सेठ 3 दिन की भूखी बेटी को वहां पर पड़े उड़द के बाकले की थाली हाथ में पकड़ा कर बेड़ियां तुड़वाने के लिए लुहार की खोज में निकल जाते हैं! 3 दिन की तेले की तपस्यार्थी चंदनबाला के मन में उच्च कोटि के भाव आते हैं कि किसी साधु साध्वी को बेहराकर पारणा करें!
उसी समय परमात्मा का आगमन होता है! चंदनबाला खुश होती है! तेरह अभिग्रह में से 12 की पूर्ति होते हुए भी परमात्मा मुंह फेर लेते हैं! परमात्मा को वापस जाते देख कर चंदनबाला के आंखों से आंसू आ जाते हैं और वह दुखी मन से प्रभू को पुकारती है! चंदन बाला के आंखों में आंसू देखकर परमात्मा का 5 महीने और 25 दिन के बाद का अभिग्रह पूरा होता है और पारणा होता है! इसके साथ ही गगनभेदी आकाश से सोना बरसता है, पूरे नगर में उल्लास और खुशी छा जाती है! चंदनबाला अपने मूल रूप में सुंदर राजकुमारी बन जाती है! मूला लौट आती है और वहां की महारानी जो चंदनबाला की मौसी है वह उसे अपने राजमहल में ले जाती है!
*क्रमशः*