कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि मित्रता जरूरी नहीं पाप से बचना जरूरी है। पशु सेवा अवश्य करनी चाहिए। द्वार पर आए गरीब को दान अवश्य दें। दान न दे सको तो मीठे शब्द अवश्य कहें अपशब्द नहीं। छोटे छोटे पुण्य के कार्य करके जीवन सफल बना सकते हो।
ये सत्य है कि एक फूल से इत्र नहीं निकाला जा सकता। असंख्य फूल से निकाला जा सकता। इसी तरह छोटे छोटे सत्य कार्य करते रहो एक दिन वह महान अवसर बन आ जाएगा। जो छोटे छोटे पाप कार्य से बचते हैं एक दिन महान कार्य संपन्न करते हैं। छोटा धर्म कार्य भी बड़ा ही होता है और महान सत्कार्यो का उपवन बन महकता है। गांधी इसके उदाहरण हैं। यह स्वतंत्रता उन जैसे महान आत्माओं द्वारा दिया गया पुरस्कार है।
आग की एक छोटी सी चिंगारी को छोटा मत समझना उससे पूरा वन जल सकता है। ऋण को छोटा मत समझना कभी भी दिवाला निकालवा सकता है। घाव को छोटा मत समझना कभी भी कैंसर बन सकता है। ऐसे ही पाप को छोटा मत समझना कभी भी वह वृक्ष बन सकता है।
यदि उसे नजरंदाज किया तो वह सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल सकता है। जहां कहीं संगति में छोटे छोटे पाप होते हैं वहां कभी शामिल मत होना। यदि संस्कारित होने का स्वाभिमान हो तो उन मित्रों को रोकना और रोक न सको तो वहां से हट जाना।