चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वीश्री सुमित्रा म.सा. ने रविवार को अपने चातुर्मासिक प्रवचन में कहा जिस व्यक्ति को मां, महात्मा और परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त होता है उसके जीवन में कभी समस्या नहीं आती। बचपन मां संभालती है जवानी महात्मा और बुढापे का सहारा परमात्मा होते हैं।
बचपन में मां से बच्चा संस्कारों का अर्जन करता है। मां ही बच्चे के जीवन निर्माण की पहली सीढी होती है। जवानी की अवस्था में अगर मनुष्य अगर गलत राह पर चलने लगता है तो उसे संतं-गुरु के पास भेजा जाता है। गुरु चरणों मेंं जाने पर भक्त की नैया पार लग जाती है।
जैसे दीपक प्रज्वलित करने के लिए माचिस और घड़ी को चलाने के लिए बैटरी की जरूरत होती है उसी प्रकार जीवन को आगे बढाने के लिए गुरु की परम जरूरत होती है। गुरु ही पथ भटके शिष्यों को सही मार्ग दिखाते हैं। यदि शिष्य गुरु के दिखाए मार्ग का सच्चे मन से अनुसरण करता है तो उसका कल्याण संभव है।
साध्वीश्री ने कहा पावर हाउस में पर्याप्त बिजली होने के बाद भी अगर कोई बल्ब नहीं जलता तो उसका मूल कारण बल्ब की खराबी होती है। अगर बल्ब में खराबी होगी तो बिलजी होने के बाद भी प्रकाश नहीं हो सकता है। उसी प्रकार अगर मनुष्य में गुरु के प्रति विनय और विवेक की भावना ना हो तो अंधकारमय जीवन का प्रकाशित होना संभव नहीं है।
साध्वीश्री ने कहा मनुष्य को उसके संस्कारों से ही पहचान मिलती है। कुछ लोग संस्कारों को भूलकर अपने वृद्धावस्था में माता-पिता को भटकने के लिए छोड़ देते हैं। लेकिन याद रहे मनुष्य जैसा देता है उसे भी आने वाले समय में वैसा ही मिलला है। मनुष्य का जीवन बनाने में माता पिता का बहुत बड़ा योगदान होता है ऐसे में उनकी सेवा करना ही परम कर्तव्य होना चाहिए।