चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा भाव की नाव में बैठकर साधक भवसागर से पार होता है। यात्री अपनी मंजिल प्राप्त करता है। भावनाओं से ही भव का नाश होता है। विरोधक भाव आत्मा को संसार में भटका देता है। आराधना भाव संसार सागर के पार उतार देता है। दानशील तप के साथ भावों का महत्व है। जैसी भावना हो वैसी सिद्धि मिल जाती है।
दानवी, मानवी, देवी और ब्रह्म भावना क्रमश: दुर्योधन, पांडव, रामचंद्र और महावीर ने अपने जीवन में व्यक्त की। भाव मनुष्य के स्वभाव के इर्दगिर्द परिक्रमा करता है पर हमें अपने स्वभाव पर विभाव का प्रभाव नहीं होने देना है। भाव के प्रवाह में बहकर मनुष्य अपने अंतर में बसे परमात्मा को भी दूर कर देता है।
ब्रह्म भावना सबसे श्रेष्ठ है। न तेरा न मेरा यह जग झूठा झमेला और इंसान अकेला। मार्केट के भावों को जानने के साथ-साथ मन के भावों को जानकर जीवन को उच्च बनाएं। साध्वी अपूर्वा ने कहा क्रोध एक और नुकसान अनेक। क्रोध में आदमी दो तरह से हिंसक हो जाता है। वह कभी दूसरों को नुकसान पहुंचाता है तो कभी खुद को। बाहर मुस्कान तो घर में क्रोध क्यों ? पेट्रोल नहीं पानी बनो। संभव है सामने वाला व्यक्ति आग बबूला होकर आया हो। यह आप पर निर्भर है कि आप किस रूप में हैं। हमारे दोनों हाथों में दो पात्र हैं। एक में पानी है दूसरे में पेट्रोल। सामने वाला व्यक्ति हाथ में दियासलाई जलाकर आता है अगर आपने उसके सामने पानी का पात्र कर दिया तो उसकी दियासलाई बुझ जाएगी और पेट्रोल का पात्र कर दिया तो आग का रूप ले लगी।