चेन्नई. किलपॉक में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर कहा धर्म के मूल में अहिंसा है। यद्यपि सब धर्मों ने अहिंसा को प्रधानता दी है लेकिन जैन धर्म में अहिंसा का सूक्ष्म रूप दिखाया है। उन्होंने कहा यदि हमें हमारी आत्मा से लगाव है तो अपनी आत्मा से एक वादा करो कि उसे कभी दुर्गति में नहीं जाने देंगे। यदि स्वदया आपकी आत्मा में विद्यमान है तो परदया अपने आप आ जाएगी।
आचार्य ने कहा सकारात्मक अहिंसा की प्रमुख बात है जगत के जीवों को प्रेम का दान देना। सच्चा प्रेम वही है जो आप अपने लिए करते हो, वही भावना सबके लिए हो। आपको जो चीज मिले वही सबमें बांटो।
उन्होंने कहा शाश्वत सुख की भावना जीव मात्र के प्रति प्रेम है। आपकी भावना हमेशा यही रहेगी कि आपका परिवार सुखी रहे क्योंकि परिवार के प्रति प्रेम है। जहां प्रेम है वहां यह भावना प्रकट होती है। परमात्मा प्रेम के अवतार हैं। परमात्मा का जगत के प्रति प्रेम है। वह प्रेम का सागर है।
उन्होंने कहा भक्तिसूत्र में बताया गया है कि जब परमात्मा के प्रति प्रेम जागेगा तब हमारे हृदय में भक्ति जागेगी। सब जीवों के प्रति प्रेम होगा तो ही परमात्मा के प्रति प्रेम होगा। यदि परमात्मा के प्रति प्रेम है तो जगत के प्रति प्रेम स्वत: हो जाता है। यह जगत परमात्मा का परिवार है। यदि आप परमात्मा से प्रेम करते हैं, जीव मात्र से नहीं तो आपको परमात्मा नहीं मिल पाएंगे।
उन्होंने कबीर के दोहे का अर्थ समझाते हुए बताया कि जीवन में प्रेम का द्वार वहीं खुलेगा जहां अहंकार विद्यमान नहीं है। प्राणी मात्र के प्रति प्रेम, सबके सुख और कल्याण की भावना हमेशा हमारे दिल में होनी चाहिए, यही सकारात्मक अहिंसा है। वैभव, प्रेम, सफलता और शान्ति सबको आप घर में ले जाना चाहते हो लेकिन इनमें केवल प्रेम को चुनेंगे तो उसके पीछे बाकी तीनों स्वत: ही मिल जाएंगे।