किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने कहा पर्युषण का उत्तम पर्व मंगलवार को शुरू हो रहा है। पर्युषण पर्व प्रेरणा देने का स्रोत है। आप पहले दिन से ही पर्युषण की साधना में जुड़ जाओ। पर्युषण पर्व सर्व जीवों के प्रति मैत्री के भाव का पर्व है। पर्युषण पर्व संकल्पों का पर्व है।
उन्होंने कहा संकल्प में इतनी शक्ति होती है कि वह अंतराय को तोड़ देता है। पर्युषण पर्व के इस अवसर पर ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की नीति अपनानी चाहिए। पर्युषण पर्व में साधना करते हुए साधर्मिक की भक्ति करने के शुभ विचार लाना है। उन्होंने कहा श्रावक-श्राविका के कर्तव्यों में ग्यारह वार्षिक, पांच संवत्सरिक और पूरे जीवन के सात कर्तव्य बताए गए हैं।
आचार्यश्री ने कहा जिस तरह त्रिवेणी संगम का एक स्थान पर मिलना मुश्किल है, उसी तरह संयम जीवन की सामग्री, गुरु का सान्निध्य और संयम पालन करने की शक्ति, इस त्रिवेणी का समन्वय भी मिलना मुश्किल है। सान्निध्य की प्राप्ति पुण्य और पुरुषार्थ से मिलती है।
लेकिन जो मिली हुई सामग्री, सान्निध्य का शक्ति, सामर्थ्य होने के बाद भी कोई दुरुपयोग करता है, तो वह धर्म के क्षेत्र में गुनाहगार होता है। इसका पहला कारण यह है कि उसमें कहीं न कहीं मिथ्यात्व यानी गुरु की वाणी पर अश्रद्धा रही होगी। उन्होंने कहा परमात्मा का सत्य समष्टिगण है और गुरु का सत्य व्यक्तिगत है। दूसरा कारण है यह सोच कि इस भव में मोक्ष मिलने वाला नहीं है। तीसरा कारण है यह सोच कि धर्म देरी से करेंगे लेकिन दुरस्त करेंगे।
उन्होंने कहा वर्तमानकाल का सही उपयोग भविष्यकाल का निर्माण करता है और भूतकाल को सुधारता है। प्रमाद करना मिथ्यात्व नहीं है लेकिन मिथ्या बुद्धि से प्रमाद करना मिथ्यात्व है। हमें जिस चीज से लगाव होता है, उसके दुर्गुण हमारे दिल दिमाग में चले जाते हैं, इसलिए संसार में कितने भी दुःखों का सामना करते हुए भी हम संसार में जुड़े हुए ही रहते हैं।
उन्होंने कहा धर्म के क्षेत्र में हमेशा ऊंचाई को देखना चाहिए। आपकी की हुई साधना मोक्ष तक ले जाने वाली होती है। मोक्ष कब मिलेगा, वह सोचे बिना मोक्ष मार्ग की साधना आज से ही शुरू करने का निर्धार करना चाहिए। कौनसा क्षण मृत्यु लेने आने वाला है, यह पता नहीं चलता। मृत्यु किसी के साथ लगाव नहीं रखती, वह सबके साथ समान रहती है।
आचार्यश्री ने कहा तप करने के बाद तप की प्रशंसा से दूर रहना चाहिए। कभी कभी स्थिति यह बन जाती है कि प्रशंसा करने वाला तिर जाता है और प्रशंसा लेने वाला डूब जाता है। प्रवचन में सामायिक लेने से तीन सामायिक सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक और देशविरति सामायिक का लाभ मिलता है।
सामायिक करने से छःकाय जीवों की विराधना से बचते हैं, मन-वचन-काया की स्थिरता रहती है। एक बार आपको सामायिक में देखकर दूसरा व्यक्ति प्रेरणा पाता है। सामायिक करने से आपको गुरु भगवंत के करीब रहने का अवसर मिलता है, उनसे करीबी बढ़ती है। आपकी प्रवचन सुनने की क्षमता और योग्यता बढ़ती है। इन आठ दिनों में आपको सत्रह प्रतिक्रमण करने है, अनुशासन के साथ सब क्रियाएं करनी है। उन्होंने कहा औरों के दोषों को और स्वयं के गुणों को छुपाना गंभीरता का काम है।