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ज्ञान वाणी

धर्माचरण करने वाली होती है आत्मा स्वयं की मित्र: आचार्य महाश्रमण

धर्माचरण करने वाली होती है आत्मा स्वयं की मित्र: आचार्य महाश्रमण

विल्लुपुरम. वल्लवनूर के गवर्नमेंट बॉय्ज हायर सेकंडरी स्कूल में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा जो नुकसान कंठ काटने वाला दुश्मन नहीं करता, उससे बड़ा नुकसान पापाचार करने वाला आदमी खुद का कर देता है और जब मृत्यु निकट आती है तो पछतावा करने लगता है।

पाप करने वाली आत्मा न जाने कितने-कितने जन्मों तक अपने कृत कर्मों का फल भोगती है। आदमी को चोरी से बचने का प्रयास करना चाहिए। चोरी का परिणाम कभी बुरा भी हो सकता है। चोरी कभी पकड़ी जा सकती है और उसका दंड भी मिल सकता है। पापाचार का प्रभाव इस जन्म के साथ ही आगे भी प्रभाव डाल सकता है, इसलिए चोरी से बचने का प्रयास करना चाहिए।

संतों के उपदेश से लोगों का हृदय परिवर्तन एवं धर्म से आत्मा का कल्याण और पापाचार से आत्मा का नुकसान हो सकता है। इसलिए आदमी को धर्म के मार्ग पर चलकर अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करें। चोरी करने वाली आत्मा आदमी की शत्रु और धर्माचरण करने वाली आत्मा मित्र होती है।

आदमी को धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करें। इसके बाद स्थानीय सभा के अध्यक्ष दिनेश आंचलिया और रेखा आंचलिया ने भी संबोधित किया।

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