भव्य, विशाल, सुव्यवस्थित जुलूस के साथ बेंगलुरुवासियों ने किया अपने आराध्य का अभिनन्दन
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): भारती की सिलिकाॅन वैली, प्रौद्योगिकी क्षेत्र का अग्रणी शहर, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में अध्यात्म की गंगा को प्रवाहित करने और प्रौद्योगिकी में अग्रणी इस महानगरी को आध्यात्मिक क्षेत्र में भी अग्रणी बनाने को अध्यात्म जगत के देदीप्यमान नक्षत्र, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ शुक्रवार को दक्षिण भारत के दूसरे चतुर्मास के लिए कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु महानगर के कुम्बलगोडु में निर्मित आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में लगभग 8.31 बजे महामंगल प्रवेश किया तो इस चेतना सेवा केन्द्र में मानों नवीन चेतना का जागरण हो गया।
लगभग 177 साधु-साध्वियों के साथ अहिंसा यात्रा का कुशल नेतृत्व करते हुए आचार्यश्री चेतना सेवा केन्द्र पधारे तो उल्लसित कर्नाटकवासियों तथा इस ऐतिहासिक दृश्य को अपने नेत्रों से निहारने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से पधारे श्रद्धालुओें ने अपने आराध्य का भावभीना भव्य अभिनन्दन किया। विशाल, विराट, भव्य और सुन्दर और सुव्यवस्थित जुलूस, जयकारों से जयकारों से गुंजायमान होते वातावरण के बीच महातपस्वी का मंगल पदार्पण बेंगलुरुवासियों को हर्षविभोर बनाए हुए था।
शुभ मुहूर्त से पूर्व ही चतुर्मास स्थल पहुंचे शांतिदूत
शुक्रवार को प्रातः से ही मैसूर रोड पर विभिन्न क्षेत्रों से लोगों के पहुंचने का क्रम जारी था। सात बजते-बजते तो पूरे का पूरा मैसूर रोड ही जनाकीर्ण बन गया था। चतुर्मास प्रवास स्थल से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर से आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ मंगल प्रस्थान किया। साधु-साध्वियां पंक्तिबद्ध होकर अपने आराध्य के श्रीचरणों का अनुगमन करते हुए गतिमान हुए।
अपने आराध्य के अभिनन्दन में उमड़ा विशाल जनसमूह विशाल जुलूस के रूप में परिवर्तित हो गया था। बुलंद जयघोषों से गूंजते वातावरण के बीच आचार्यश्री आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ सेवा केन्द्र परिसर में जैसे ही प्रवेश किया तो मानों श्रद्धालुओं की वर्षों की संजोए हुए सपने साकार हो गए। हालांकि दूरी कम होने के कारण आचार्यश्री शुभ मुहूर्त से पूर्व ही चतुर्मास प्रवास स्थल पर पहुंच गए तो आचार्यश्री चतुर्मास करने वाले भवन के बाहर ही विराजमान हो गए। असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी सहित साध्वियां आचार्यश्री की सन्निधि में उपस्थित होकर आचार्यश्री को वर्धापित किया।
जुलूस में विभिन्न राज्यों की दिखी झलक
आचार्यश्री महाश्रमणजी के स्वागत में विशाल जुलूस लोगों को आकर्षित करने वाला था। बिहार, झारखंड, असम, मेघालय, सिक्किम, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल व भारत के विभिन्न राज्यों के परिधानों सजे लोग आचार्यश्री का स्वागत कर रहे थे, जो लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए थे। अनेक थीमों पर आधारित झाकियां भी लोगों का मन मोह रही थीं।
प्रवास स्थल के बाहर साधक की साधना
शुभ मुहूर्त से पूर्व पधारे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रवास स्थल के बाहर विराजे तो उन्होंने वहां ध्यान आदि साधना का क्रम भी आरम्भ कर दिया। आचार्यश्री के समय के ऐसे सदुपयोग को देख और आचार्यश्री की साधना को देख श्रद्धालु भावविभोर थे। ऐसे साधक की एक झलक पाने को हर नेत्र लालायित था।
चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों से आचार्यश्री ने ली अनुमति
आचार्यश्री के आसपास हर्षाभिभूत बने खड़े बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों से आचार्यश्री ने चतुर्मास के लिए स्थान में रहने की अनुमति मांगी तो एक बड़ा ही मनोरम दृश्य उत्पन्न हो गया। प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर आदि पदाधिकारियों से अनुमति लेकर आचार्यश्री ने 8.31 बजे चतुर्मास प्रवास के भवन में मंगल प्रवेश किया तो पूरा वातावरण एक बार पुनः जयकारों से गुंजायमान हो उठा।
लगभग 2700 किलोमीटर की यात्रा कर चाह माह के लिए टिके महातपस्वी के ज्योतिचरण
चेन्नई चतुर्मास के उपरान्त 24 नवम्बर 2018 को मानवता का संदेश देने के लिए गतिमान हुए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण ने दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल, आंशिक रूप में आंध्रप्रदेश व कर्नाटक की धरती पर लगभग 2700 किलोमीटर का विहार कर दक्षिण भारत के दूसरे चतुर्मास के लिए इस चतुर्मास प्रवास स्थल में पावन प्रवेश किया। चेन्नई से बेंगलुरु की दूरी तो कुल चार सौ किलोमीटर के आसपास ही है, किन्तु महातपस्वी ने जन-जन तक सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देने के लिए मौसम की अनुकूलता-प्रतिकूलता, मार्ग की विकटता को दरकिनार कर यहां पधारे हैं।
मंगल महामंत्रोच्चार से हुआ कार्यक्रम का शुभारम्भ
चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने विशाल और भव्य महाश्रमण समवसरण आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व ही जनाकीर्ण बन चुका था। श्रद्धालुओं की अपार उपस्थिति उनकी उत्सुकता, उनकी उत्कंठा को दर्शा रही थी। सभी आचार्यश्री के इस मंगल प्रवेश के अवसर पर प्रथम अमृतवाणी का रसपान करने का लालायित नजर आ रहे रहे थे। आचार्यश्री के प्रवचन पंडाल में पधारते ही जयकारों की गूंज पुनः पूरे वातावरण को आप्लावित कर दिया।
आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। इसके उपरान्त तेरापंथ महिला मंडल-बेंगलुरु की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को इस चतुर्मास का पूर्ण लाभ उठाने को उत्प्रेरित किया।
महाश्रमण समवसरण से महातपस्वी महाश्रमण की प्रथम मंगलवाणी
आचार्यश्री महाश्रमणी ने महाश्रमण समवसरण से अपनी प्रथम पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के मन में मंगल की कामना होती है। लोग अपने लिए भी मंगल की कामना करते हैं और दूसरों को भी मंगलकामनाएं देते हैं। दुनिया में धर्म से बड़ा कोई मंगल नहीं होता। उत्कृष्ट मंगल धर्म होता है। अहिंसा, संयम और तप धर्म है। संप्रदाय एक शरीर है और धर्म उसकी आत्मा है। संप्रदाय और धर्म में धर्म मूल चीज है। आदमी को अपने जीवन में धर्म के अवतरण का प्रयास करना चाहिए।
आदमी के जीवन में धर्म है तो मानना चाहिए के उसके जीवन में मंगल है। जिस आदमी का मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। आदमी के जीवन में अहिंसा हो, आदमी का जीवन संयमित हो और उसके जीवन तप भी हो तो वह देवता के लिए नमस्करणीय होता है। आदमी यदि मंगल चाहता है तो उसे अहिंसा की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपना जीवन संयमित बनाने का प्रयास करना चाहिए तथा आदमी अपने जीवन में तप भी करे तो उसका जीवन मंगलमय हो सकता है।
अपने मंगलवाणी से लोगों को मंगल का मार्ग दिखाने के उपरान्त आचार्यश्री ने बेंगलुरुवासियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अपने मन में शांति और सौहार्द रखने का प्रयास करें। चतुर्मास का यह अवसर है, इसमें शांति रखने का प्रयास करें, एक-दूसरे के प्रति सौहार्द की भावना तो यह बहुत अच्छा हो सकता है। व्यस्त रहें, मस्त रहें और प्रशस्त रहें का पावन पाथेय आचार्यश्री ने प्रदान किया।
आरम्भ हुआ श्रद्धालुओं केे हर्षाभिव्यक्ति का क्रम
बेंगलुरुवासियों के वर्षों के संजोए सपने साकार हुए तो मन प्रफुल्लित, तन उत्साहित और नेत्र चमक उठे थे। मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करने के क्रम में बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, स्वागताध्यक्ष श्री नरपतसिंह चोरड़िया, महामंत्री श्री दीपचंद नाहर, उपाध्यक्ष श्री सुरपत चोरड़िया, श्री अमित नाहटा, आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ सेवा केन्द्र ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री सोहनलाल माण्डोत, महासभा के उपाध्यक्ष श्री कन्हैयालाल गिड़िया, भिक्षु धाम के अध्यक्ष श्री धर्मीचंद धोका, अणुव्रत समिति-बेंगलुरु के अध्यक्ष श्री कन्हैयालाल चिप्पड़, महासभा के पूर्व अध्यक्ष श्री हीरालाल मालू, तुलसी महाप्रज्ञ सेवा केन्द्र के मंत्री श्री मदनलाल बरमेचा, श्री अमृतलाल भंसाली, अभातेयुप के संगठन मंत्री श्री पवन माण्डोत, श्री बहादुर सेठिया ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं, सिवांची मालाणी महिला मण्डल ने गीत का संगान किया।
गणमान्यों ने भी आचार्यश्री के चतुर्मास को बताया मानवता के लिए महत्त्वपूर्ण
वहीं इस अवसर पर उपस्थित उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री संतोष हेगड़े ने कन्नड़ भाषा में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। कर्नाटक के एडीजीपी श्री एन.एस. मेघरिक ने कहा कि उनका मन बचपन से साधु-संतों के प्रवचन को सुनने के लिए लालायित रहता था।
आज आचार्यश्री महाश्रमणजी का प्रवचन सुनकर मन प्रसन्न हो गया और मेरा जीवन कृतार्थ हो गया। केपीसीसी के उपाध्यक्ष प्रोफेसर के.ई. राधाकृष्णा ने आचार्यश्री के चतुर्मास काल को बेंगलुरु के लिए महत्त्वपूर्ण बताते हुए लोगों को इस लाभ उठाने को कहा। आचार्यश्री के अभिनन्दन में कई श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी धारणाओं के अनुसार अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान भी किया।
चार महीने में आयोजित होंगे विभिन्न कार्यक्रम
दक्षिण भारत के दूसरे चतुर्मास के दौरान बेंगलुरु की धरती पर कई कार्यक्रम आयोजित होंगे। इनमें 260वां तेरापंथ स्थापना दिवस, श्रीमज्जयाचार्य निर्वाण दिवस, जैन दीक्षा समारोह, संस्कार निर्माण शिविर, अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर, संवत्सरी महापर्व, आचार्य भिक्षु चरमोत्सव कई बृहत् कार्यक्रम होंगे। जिसमें देश और विदेशों के हजारों-हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति होगी।
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जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा