चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा यदि संसार में रहकर सुख पाना है तो जिनवाणी को जीवन में उतार कर पुरुषार्थ करना होगा। सुख की प्राप्ति के लिए गुरु के सानिध्य में जाना, जिनवाणी श्रवण कर उसे जीवन में उतार कर उसके अनुरूप चलने की जरुरूरत है।
इसके लिए मनुष्य को बहुत तपस्या करनी होगी। सुख का असली आनंद तपने के बाद ही आता है। अगर मनुष्य गुरु के बताए मार्ग का अनुसरण करे तो उसे अपने आप ही सुख की अनुभूति होने लगे। संसार में रहते हुए सुख का एकमात्र साधन धर्म है। उन्होंने कहा कि मनुष्य का भव मिलना बहुत ही दुर्लभ है।
अगर यह भव मिला है तो इसे बेहतर मार्ग पर पहुंचा लेना चाहिए। मानव भव पाने के बाद इसको कितना सार्थक कर रहे है पर विचार और चिंतन करने की आवश्यकता है। धर्म ध्यान करने के लिए मनुष्य इस संसार में आया है। इसके माध्यम से आत्मा का कल्याण किया जा सकता है। लेकिन मनुष्य मोह माया में फंस कर गलत कार्यो में आगे बढ़ रहा है।
धर्म के कार्य कर आत्मा की कमाई करने के बजाय संसार की कमाई में फंसा है। याद रहे संसार की कमाई से ज्यादा आत्मा की कमाई जरूरी होती है। दुनिया का सबसे श्रेष्ठ भव पाकर उसके लक्ष्य को भूल कर इधर उधर भटकने से कुछ हासिल नहीं होगा। जिस प्रकार से बंजर जमीन पर बीज नहीं बोया जा सकता उसी प्रकार से मानव भव के बिना धर्म का बिज बोना संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि लोग इंसान तो बन गए हैं लेकिन इंसानियत भूल चुके हैं। गलत रास्ते से धन कमा कर पाप की पूंजी भर रहे हैं। मनुष्य को गलत मार्गो को छोडक़र पुरुषार्थ करना चाहिए। मनुष्य जितना पुरुषार्थ करेगा उतनी ही धर्म की कमाई होगी। आत्मा की कमाई तप, धर्म और ध्यान है इसलिए इसे ज्यादा कर जीवन सुखमय बना लेना चाहिए।