15वें कन्या मण्डल अधिवेशन में संभागी कन्याओं ने अपने आराध्य के समक्ष दी भावाभिव्यक्ति
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जन-जन को मानवता का संदेश देने वाले, लोगों को सत्पथ की प्रेरणा प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को ‘सम्बोधि’ के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में किसी वस्तु, पदार्थ आदि का उत्पाद होता है तो उसके साथ ही उसके विनाश की बात भी जुड़ी होती है।
उत्पाद और विनाश एक धु्रव पर होता रहता है। उस पदार्थ अथवा वस्तु के निर्माण के प्रयुक्त परमाणु स्थाई होते हैं और उनका पर्याय परिवर्तित होता रहता है। जब किसी चीज के संग्रह की बात होती है तो उसका व्यय भी होता है। जैसे धन का आदमी अर्जन करता है, उसका संग्रह करता है तो उसका व्यय भी होता है। आदमी विषयासक्त होकर किसी विषय को प्राप्त कर लेता है। वह उसका उपभोग करता है और एक समय के बाद वह पदार्थ नष्ट हो जाता है तो आदमी दुःखी भी बन जाता है।
इसका मूल कारण होता है कि आदमी उस विषय के प्रति इतना आसक्त हो जाता है कि वह उसके उपभोग से अतृप्त ही रहता है और अपनी अतृप्ति के भाव के कारण वह दुःखी बन जाता है। आदमी उस विषय को पदार्थ को प्राप्त करने का प्रयास करता रहता है। उसके प्रयत्न के बाद भी उसे वह वस्तु प्राप्त नहीं होती तो वह अपराध की ओर भी जा सकता है। ऐसे अपराधों में एक अपराध है चोरी।
दुनिया में चोरी अपराध है और आध्यात्मिक जगत में पाप है। आदमी अतृप्त अवस्था में चोरी में लग सकता है। चोरी भी अनेक रूपों में होती है। कहीं वस्तुओं की चोरी, कहीं धन की चोरी तो कहीं कर की चोरी तो कई अन्य प्रकार की चोरियां होती हैं। जहां चोरी होती है, वहां ईमानदारी का लोप हो जाता है। चोरी करने वाला आदमी कभी पकड़ा भी जाता है और उसके बाद उसे कुछ यातनाएं और कष्ट भी सहने पड़ सकते हैं। चोरी करने वाले के लिए दंड का विधान है तो वह कष्ट को भी प्राप्त हो सकता है। आदमी को ‘सम्बोधि’ जैैसे ग्रन्थों अथवा साधुओं की उपासना और उनके प्रवचन के माध्यम से चोरी से बचने की प्रेरणा प्राप्त हो सकती है। आदमी प्रेरणा प्राप्त कर चोरी से बचने का प्रयास करे तो उसका जीवन अच्छा हो सकता है।
एक चोर को भी ईमानदारी की प्रेरणा प्रदान कर उसे सन्मार्ग पर लाने वाले साधु कितने महान होते हैं। किसी साधुओं की प्रेरणा से यदि चोर का हृदय परिवर्तित हो जाए तो उसका कल्याण हो सकता है। आदमी को चोरी से बचने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने स्वरचित ग्रन्थ ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ के माध्यम से बालक नथमल के दीक्षा से पूर्व और दीक्षा के समय की घटना प्रसंगों का वर्णन किया।
अखिल भारतीय महिला मण्डल के तत्त्वावधान में अखिल भारतीय कन्या मण्डल के त्रिदिवसीय 15वें राष्ट्रीय अधिवेशन में लगभग 70 क्षेत्रों से 550 कन्याएं संभागी बनीं। ‘सम्बोध’ थीम पर आधारित इस अधिवेशन के समापन अवसर पर संभागी कन्याएं पूज्य सन्निधि में उपस्थित थीं। आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि कन्याओं में व्यवहार कुशलता, विवेकशीलता और संयमशीलता हो तो वे विकास के आकाश में उड़ान भर सकती हैं।
आचार्यश्री ने समुपस्थित कन्याओं को स्थूल चोरी का त्याग कराते हुए कहा कि संकल्प एक सुरक्षा कवच के समान होता है। कन्याओं में ईमानदारी की भावना पुष्ट रहे तो जीवन अच्छा हो सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने भी इस मौके पर कन्याओं को उत्प्रेरित करते हुए प्रतिकूलताओं में भी विवेक और धैर्य धारण की सीख प्रदान की। स्मार्ट के कैरेक्टर की व्याख्या से उन्हें जीवन के सूत्रों समझाया।
इस दौरान कन्या मण्डल-बेंगलुरु की कन्याओं ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती कुमुद कच्छारा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अखिल भारतीय कन्या मण्डल की संयोजिका श्रीमती मधु देरासरिया ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए इस आयोजन के संदर्भ मंे जानकारी भी प्रदान की। अंत में संभागी कन्याओं को आचार्यश्री के श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा