कोण्डीतोप स्थित समता भवन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने शिविर समापन अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भावी पीढ़ी के निर्माण हेतु शिविरों का आयोजन नितांत आवश्यक है । धार्मिक शिविरों के माध्यम से प्राप्त संस्कारों से ही बच्चों के व्यक्तित्व एवं जीवन का निर्माण होता है। बालक उस कच्ची मिट्टी के समान होता है जिसको जैसा चाहे वैसा रूप दिया जा सकता है।
शिविर के द्वारा प्राप्त ज्ञान से ही जीवन का एवं बुद्धि का विकास होता है। अज्ञानता के कारण ही जीव पाप कर्म करता है। अज्ञानता सबसे बड़ा अभिशाप है ज्ञान के बिना मनुष्य का जीवन पशु के समान होता है।
मुनि ने कहा जीवन में मुख्य तीन अवस्था होती है बाल्यावस्था यौवन अवस्था प्रौढ़ावस्था। बाल्यावस्था से ही धर्म से जुड़ जाने वाला मनुष्य का यौवन एवं बुढ़ापा भी सुधर जाता है। मनुष्य का जीवन उस बिंदु के समान क्षणिक एवं क्षणभंगुर है। अतः हर पल हर्षण का सदुपयोग करते हुए जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
व्यक्ति सोचता तो बहुत खुश है कि मैं यह करूंगा ऐसा करूंगा लेकिन समय बीत जाने पर कुछ भी नहीं कर पाता। समय रहते अवसर का लाभ उठाने वाला ही जीवन में सफल होता है। एक बार मौका चूकने के बाद वह वापस नहीं आता। अतः मनुष्य जीवन का दुर्लभ अवसर जो प्राप्त हुआ है उसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।
धर्म सभा का संचालन सुरेंद्र कोठारी ने किया। दक्षिण भारत स्वाध्याय संघ की मंत्री कमला मेहता , साधुमार्गी संघ के मंत्री दिलीप वया, जेपी ललवानी ने अपने विचार व्यक्त किए। बालिकाओं ने राजुल रथनेमि के जीवन चरित्र पर नाटिका प्रस्तुत की ।
इसके अलावा अनेक शिविर आढ़तियों ने 8 कर्म, 6 काय, गुरु भक्ति आदि पर गीतिका एवं मनमोहक प्रस्तुतियां दी। शिविर में अध्यापन सेवा देने वाले अध्यापक एवं लाभार्थी परिवारों का सम्मान किया गया । शिविर परीक्षा में प्रथम द्वितीय तृतीय श्रेणी प्राप्त करने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया गया।
मुनि वृंद सोमवार को यहां से विहार कर एमजी रोड जैन स्थानक पधारेंगे।