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चिन्तामणि रत्न के समान अनमोल हैं उत्तराध्ययन की शिक्षा: कपिल मुनि

चिन्तामणि रत्न के समान अनमोल हैं उत्तराध्ययन की शिक्षा: कपिल मुनि

चेन्नई : यहाँ विरुगमबाक्कम  स्थित एमएपी भवन में चातुर्मासार्थ विराजित क्रांतिकारी संत प्रखर वक्ता पूज्य  श्री कपिल मुनि जी म.सा. के सानिध्य व श्री एस. एस. जैन संघ विरुगमबाक्कम के तत्वावधान में भगवान महावीर के 2545 वें निर्वाण कल्याणक के प्रसंग पर आयोजित  21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव का शुभारम्भ मंगलवार को भगवान महावीर की अंतिम वाणी श्री उत्तराध्ययन सूत्र के प्रथम अध्ययन विनय श्रुत के पारायण और वीर स्तुति के सामूहिक संगान से हुआ ।

मुनि श्री ने इस शास्त्र की महिमा बताते हुए कहा कि इस सूत्र में भगवान् महावीर की उन शिक्षाओं का संकलन है जिनको आत्मसात करने से जीवन की दशा और दिशा बदल जाती है ।उत्तराध्ययन सूत्र का एक एक वचन चिन्तामणि के समान अनमोल है जिनसे जन्म जन्मान्तर की आतंरिक दरिद्रता को मिटाया जा सकता है ।

मुनि श्री ने प्रथम अध्ययन का विवेचन करते हुए कहा कि प्रभु महावीर ने अपनी अंतिम देशना में विनय का प्रशिक्षण दिया । क्योंकि विनय ही धर्म का मूल है । विनय गुण से ही जीवन में योग्यता आती है । विद्या से विनय और विनय से पात्रता आती है । योग्य व्यक्ति को ही सम्मान और यश मिलता है ।

अहंकारी व्यक्ति तो सर्वत्र अपमान और तिरस्कार के योग्य होता है ।विनय के बगैर मोक्ष मार्ग की सभी साधना अधूरी और व्यर्थ है । इसलिए व्यक्ति को सर्व प्रथम विनय सम्पन बनना चाहिए । मुनि श्री ने कहा कि अहंकार से बढ़कर जीवन में कोई अन्धकार नहीं है । अहंकारी के जीवन में सूर्योदय कभी नहीं नहीं होता ।

अहंकार पुष्टि की भावना से प्रेरित होकर किये गए धार्मिक क्रियाकलाप भी व्यर्थ और निष्फल हो जाते हैं । मुनि श्री ने कहा कि तीर्थकर के अभाव में गुरु का स्थान सर्वोपरि होता है । जीवन विकास में गुरु कृपा ही मूलाधार है । अतः गुरुजनों के प्रति विनय का आचरण करना चाहिए । उनका अविनय ,अवज्ञा और आशातना का पाप हर्गिज भी नहीं करना चाहिए ।

मुनि श्री ने आगे कहा कि विनय का तात्पर्य सिर्फ झुकना ही नहीं होता बल्कि विनय शब्द इतना व्यापक है कि इसमें शिष्टाचार से लेकर जीवन के सम्पूर्ण सदाचार का समावेश है ।

इसीलिए भगवान महावीर ने अपनी देशना का श्रीगणेश विनय व्यवहार की शिक्षा से किया । जीवन चाहे गृहस्थ का हो या साधु का । सभी के लिए जीवन व्यवहार का विज्ञान समझना बेहद जरुरी है । इसके अभाव में शिक्षित लोग भी अव्यवहारिक सिद्ध हो जाते हैं ।

इस मौके पर पन्नालाल धोका, मीठालाल पगारिया, नेमीचंद लोढा, पन्नालाल बैद, प्रकाशचंद गोलेछा , भागचंद चुत्तर, राजकुमार कोठारी, किशोर धोका, शांतिलाल पगारिया, गणपतराज गुगलिया, आलोक गोलेछा आदि गणमान्य व्यक्ति सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे । प्रतिदिन सवेरे  8.30 बजे से 10 बजे तक श्री उत्तराध्ययन सूत्र का वांचन और प्रवचन नियमित रूप से होगा । कार्यक्रम का सञ्चालन संघमंत्री  महावीरचंद पगारिया ने किया ।

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