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चार गति में दुर्गति में भटकती आत्मा को सद्‌गति की ओर ले जाती है: जयतिलक जी मरासा

चार गति में दुर्गति में भटकती आत्मा को सद्‌गति की ओर ले जाती है: जयतिलक जी मरासा

रायपुरम जैन भवन में जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में फ़रमाया कि भगवान महावीर ने भव्य जीवों को संसार सागर से तिरने का उपदेश दिया और धर्म मार्ग का प्रर्वतन किया। चार गति में दुर्गति में भटकती आत्मा को सद्‌गति की ओर ले जाती है। आगार, अंणगार दो धर्म है? अणगार धर्म में किंचित भी छुट नहीं! आवश्यकतानुसार छुट के साथ व्रत धारण करना, आगार धर्म है! संसार में जीव को कर्म करना पड़ता, निर्वाह करना पड़ता है अतः भगवान ने छुट दी है थोडी सी।

जीवन निर्वाह के साथ आत्मा का कल्याण करना आवश्यक है! जो गृहस्थ अपनी समझ विवेक, बुद्धि, पुरुषार्थ ओर धर्म आराधना करता है जैसे, भोजन, मंजन स्नान आदि करना आवश्यक है वैसे ही आत्मा का कार्य भी आवश्यक है। यदि धर्म आराधना न करे तो वह प्रमाद है! सिद्धांत कहता है धर्म कार्य में पाप प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए। किंतु सांसारिक प्रवृत्ति में विवेक बुद्धि से पाप को कम कर धर्म आचरण कर सकते है जिससे कर्म बंध की संभावना अल्प हो जाती है। अल्प कर्मों को क्षय करना साधक के लिए सुगम हो जाता है।

प्रमादाचरण :- घर में पाप कार्य करते हुए भी विवेक रखना। घी, दूध, पानी आदि सब कुछ ढक कर रखें! झूठे बर्तन खुले रहे तो जीव की उत्पत्ति बढ़ जाती है। घर में रोग भी आता है पाप भी बढ़ता है। अत ऐसे कार्यों में प्रमाद नहीं करना चाहिए । भोजन करते ही थाली धोकर रखो! बचपन में बच्चों को आदत डाल देनी चाहिए। झूठे बर्तनों को संग्रह करके मत रखो। जैसे भोजन शाला में हाथ धोना जरूरी है वैसे थाली धोना भी जरूरी है।

जीवों की विराधना से बचने में पुरुषार्थ रखो। घर के हर कार्य, रसोई के कार्य सब्जी, फल आदि को संस्कारित करने में अपना विवेक रखे । नौकर आदि के भरोसे काम न छोड़े। घर में पानी कही जमा न हो ! इसका ध्यान रखे! काई आदि न जमने दो। पानी को जल्दी सुखा दो। प्रमादाचरण के अंतर्गत ऐसे प्रमाद नहीं करना, जैसे जीवों की उत्पति होती हो और विराधना होती हो।

घर में खाद्य सामग्री आदि में जीव पड़ने की पूर्व संभावना रहती है अतः उन चीजों की सार-सम्भाल का विवेक रखें। चीजों को धुप में सुखाकर रखे ! पुराने जमाने में घर एसे बनते थे जिसमें धूप हवा आदि आती रहती है।

संचालन ज्ञानचंद कोठारी ने किया।

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