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किसी को मारकर ही नहीं, बल्कि उसे दुखी कर भी आप हिंसा कर सकते हैं : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

किसी को मारकर ही नहीं, बल्कि उसे दुखी कर भी आप हिंसा कर सकते हैं : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

साध्वी जी ने बताया कि जो सत्य बोलता है उसकी वाणी सिद्ध होती है

Sagevaani.com @शिवपुरी। जैन दर्शन में जिन 18 पापों की चर्चा है उनमें सबसे पहला पाप हिंसा है। हिंसा का अर्थ किसी को मारना या किसी की जान लेना ही नहीं, बल्कि शब्दों से भी किसी को घायल और मारा जा सकता है। किसी के मन को शब्दों, अपने व्यवहार और आचरण द्वारा दुखी करना भी हिंसा है। उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने स्थानीय कमला भवन में आयोजित एक विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में साध्वी वंदनाश्री जी ने जीवन की 4 गतियों में से मनुष्य गति को सर्वश्रेष्ठ बताया और कहा कि मनुष्य जन्म लेकर ही इंसान नर से नारायण बन सकता है। आत्मा परमात्मा बन सकती है। साध्वी जयश्री जी ने मौत जब तुझे आवाज देगी, घर से बाहर निकलना होगा…भजन का गायन कर माहौल को आध्यात्मिकता से परिपूर्ण कर दिया। धर्मसभा में कोटा से जैन समाज का प्रतिनिधि मंडल जैन साध्वियों के दर्शन और वंदन करने के लिए आया जिसका स्थानीय जैन समाज ने सम्मान किया।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने प्रवचन में हिंसा के बाद दूसरे पाप झूठ की व्याख्या करते हुए कहा कि सच्चाई के रास्ते पर चलने के कारण आज भी सत्यवादी राजा हरीशचंद्र याद किए जाते हैं। उन्होंने धर्मसभा में पूछा कि आपका जीवन सत्य से चलता है या झूठ से। उन्होंने कहा कि आज के जमाने में झूठ के 10 गवाह बन जाते हैं और सत्य अकेला खड़ा रह जाता है, लेकिन हमें घबराना नहीं चाहिए। उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति सत्य बोलता है उसकी वाणी सिद्ध हो जाती है। साथ ही उन्होंने जोड़ा कि यदि किसी की जान बचाने के लिए झूठ बोलने की आवश्यकता हो तो वह बोला जा सकता है। उन्होंने कहा कि कम बोलने से भी वचन सिद्धि होती है। तीसरे पाप चोरी की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ किसी की वस्तु चुराना ही चोरी नहीं है, बल्कि यदि किसी व्यक्ति की वस्तु बिना उससे पूछे यदि हम हाथ भी लगाएं तो वह चोरी है। उन्होंने कहा कि व्यापार में यदि हम अपना प्रोफिट निश्चित कर लें तो चोरी से बच सकते हैं।

श्रद्धा और विवेक के साथ कर्म करना श्रावक की पहचान

साध्वी वंदनाश्री जी ने बताया कि भगवान महावीर ने चतुर्विघ संघ की स्थापना की जिसमें साधु साध्वियों के अलावा श्रावक और श्राविकाओं को भी शामिल किया गया। इससे स्पष्ट है कि श्रावक और श्राविका का महत्व किसी साधु और साध्वी से कम नहीं है। श्रावक वह होता है जो 12 व्रत का पालन करता है। श्रावक का पहला अक्षर श्र श्रद्धा को व्यक्त करता है और दूसरा अक्षर व विवेक को व्यक्त करता है अर्थात् ्रविवेक और श्रद्धा के साथ कर्म करना श्रावक की पहचान है।

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