चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम मेमोरियल सेन्टर में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में साध्वी हेमप्रभा’ ने कहा व्यापार में बिक्री और नफा दोनों अलग-अलग होती हैं। यदि मेहनत से कम लाभ मिले तो हम चिंतन और सुधार करते हैं। उसी प्रकार धर्मक्रियाओं से आप धर्ममार्ग पर कितने आगे बढ़े हैं, कितनी निर्जरा की है, इसका चिंतन करें और स्वयं में सुधार लाएं।
धर्मस्थल भी एक प्रकार से धर्म करने की दुकान जैसे है, जहां पर यदि आपके कर्मों की निर्जरा नहीं हो रही है तो कहीं न कहीं कमी आपमें है जिसे सुधारना होगा। जीवन में यदि धर्म नहीं है तो मात्र धर्मक्रियाओं से निर्जरा नहीं होगी। उन्होंने आचरण योग्य दो धर्म आगार और अणगार के बारे में बताया कि अगार धर्म श्रावक या गृहस्थी के लिए है और अणगार संतों के लिए है।
कांच कटोरा नैन जल मोती अरू मन, एका फाटा ना मिले पहले करो जतन। आगार धर्म के नियम खंडित होने पर पुन: गुरु के पास आलोचना और स्वयं में बदलाव किया जा सकता है लेकिन संत जीवन के महाव्रत खंडित होने पर कुछ भी शेष नहीं बचता। अगले भव में ही सुधार हो सकता है। इंसान अभिमान में अमूल्य समय गंवाता जाता है जबकि उसे अगले क्षण क्या होगा इसका पता नहीं रहता।
साध्वी इमितप्रभा ने कहा भारतीय दर्शन में चार प्रकार के पुरुषार्थ बताए गए हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मनुष्य जीवन निर्वाह के लिए इन चारों की आवश्यकता है। धर्म क्या है? वस्तु का स्वभाव ही उसका धर्म है।
जीवन में अर्थ की सीमितता होनी चाहिए। धन को अपनाओगे तो उसकी रक्षा करनी पड़ेगी, कषाय और अहंकार आएंगे, लेकिन धर्म को
अपनाओगे तो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा, चार गतियों से मुक्त करेगा।
धर्म पर आस्था शांति, सद्गति और मोक्ष देता है जबकि पद, प्रतिष्ठा, परिवार पर अधिक आस्था धोखा देती है। धर्म का कभी वियोग नहीं होता। हम धर्म क्रियाएं तो जन्म-जन्म से करते आ रहे हैं लेकिन अब तो धर्म ध्यान करो तो मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो जाए। सभी क्रिया, आराधना, उपासना स्वयं की आत्मसाक्षी में करें क्योंकि अपनी आत्मा से महात्मा और परमात्मा बनना है। दोपहर बच्चों का संस्कार शिविर का कार्यक्रम हुआ। धर्मसभा में चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों सहित अनेकों श्रद्धालु धर्मसभा में उपस्थित रहे।