चेन्नई. गोपालपुरम स्थित भगवान महावीर वाटिका में विराजित कपिल मुनिने कहा जीवन असंस्कृत है एक बार इसकी डोर टूट जाए तो किसी भी कीमत पर इस फिर नहीं जोड़ा जा सकता, अत: जीवन के बेशकीमती पलों को प्रमाद में व्यतीत नहीं करना चाहिए।
प्रमाद यानी गफलत, भूल और असावधानी। आत्म विस्मृति जीवन की गंभीर भूल है। आत्मा को विस्मृत और उपेक्षित करके जीना अपने आपके साथ घोर अन्याय है। प्रमाद में ही जीवन को गुजारने वाले को जीवन के अंत में करुणता का शिकार होना पड़ता है। निरंतर इंद्रिय विषय सुखों के पीछे पागल बनकर दौडऩे वाले को कहीं भी शरण नहीं मिलती।
उन्होंने कहा जो कुबुद्धि के वशीभूत होकर पापकर्म और अन्याय अनीति से धन का अर्जन करते हैं वे यहाँ प्राणियों के साथ वैर का अनुबंध करके परलोक में नरक गति का मेहमान बनते हैं। धन जीवन की आवश्यकता पूर्ति का साधन है। इसका अर्जन न्याय नीति से किया जाना चाहिए।
अनीति से कमाये धन से कुछ समय के लिए संपन्न तो बना जा सकता है मगर प्रसन्न जीवन का मालिक नहीं बना जा सकता। जीवन का लक्ष्य सम्पन्नता ही नहीं प्रसन्नता प्राप्त करने का होना चाहिए।
जीवन में प्रसन्नता का सम्बन्ध धन से नहीं बल्कि मन से होता है। मन में समता और संतोष होगा तभी व्यक्ति सुख शांति का अनुभव कर सकेगा। अन्याय अनीति से प्राप्त धन जीवन में अशांति और क्लेश की वृद्धि करता है और एक दिन वह पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
यदि हर व्यक्ति ज्ञानियों की इस बात पर गौर करने लगे और यह भलीभांति समझने लगे कि मेरा अन्याय से संचित किया हुआ धन नष्ट होने पर मुझे जैसा दुख हो रहा है वैसे ही जिसके धन को मैंने अनाधिकार से ग्रहण किया है उसे भी होता होगा तो वह अन्याय-अनीति करने को तत्पर नहीं हो सकता। जब तक मनुष्य में इस प्रकार के आत्म भाव और सह अस्तित्व भावना की कमी रहेगी वह कमी भी वास्तविक सफलता के शिखर पर नहीं चढ़ सकता।
बेशुमार संपत्ति का मालिक होने के बावजूद भी कोई सुख ओर शाँति नहीं प्राप्त कर सकता। अनाचार और अत्याचार से एकत्रित धन से आज तक कोई सुखी नहीं बन पाया।
मुनि श्री ने कहा जो लोग धर्म नीति को प्रधानता देते हुए जीवन यापन करते हैं जिनके कृत्य शुभ और जिनका लक्ष्य वीतरागता को प्राप्त करके शाश्वत सुख को प्राप्त करना है। जिनका नजरिया सकारात्मक और विचार उत्तम है वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति का त्याग कर देने पर भी दुखी नहीं होते। संचालन संघ मंत्री राजकुमार कोठारी ने किया। संरक्षक सुभाषचंद रांका ने सत्कार किया।