विल्लुपुरम. यहां स्थित सरस्वती मैट्रिकुलेशन हायर सेकण्डरी स्कूल में आचार्य ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में मित्र भी होते हैं और शत्रु भी। व्यवहार जगत में आदमी की कई मित्र मण्डली भी हो सकती है तो उसी आदमी से शत्रुता का भाव रखने वाले लोग भी हो सकते हैं।
मित्रों से आदमी को सहयोग मिलता है तो शत्रु नुकसान पहुंचाने वाले भी होते हैं। इसी प्रकार आदमी के आत्मा के भी दस शत्रु बताए गए हैं। आदमी को अपनी आत्मा के शत्रुओं को जीतने का प्रयास करना चाहिए। कोई आदमी समरांगण में दस लाख शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ले और कोई आदमी अपनी आत्मा के शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ले तो आत्मा के शत्रुओं का जीतने वाला उस दस लाख को मारने वाले से बड़ा विजेता माना जा सकता है।
कई बार आदमी लड़ते हुए शहीद भी हो जाता है तो भी गौरव की बात होती है, उसके शौर्यता की बात हो जाती है। लड़ाई से डर कर भाग जाना दुर्बलता, कमजोरी होती है। अपनी साधना से आदमी को आत्मा के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी आत्मा के शत्रुओं के साथ युद्ध करके यदि विजय प्राप्त कर ले तो कहना ही क्या और यदि आजीवन संघर्ष करते मृत्यु को भी प्राप्त कर ले तो भी गौरव की बात हो जाती है। आत्मयुद्ध के लिए आदमी में पराक्रम और साहस की आवश्यकता होती है। परिसहों को सहने की क्षमता हो तो आदमी आत्मा के शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। आदमी अपने मन को जीते तो आत्मा के शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। गुस्सा, अहंकार, लोभ आदि कषायों पर विजय की प्राप्ति से आत्मा का परम कल्याण हो सकता है।
इस प्रकार आदमी को अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए। इस अवसर पर विल्लुपुरमवासियों ने आचार्य के समक्ष अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार किए।
आचार्य ने विल्लुपुरम निवासित तेरापंथी परिवारों को सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) भी प्रदान की। तेरापंथी सभा-विल्लुपुरम के अध्यक्ष जबरलाल सुराणा, पूर्व अध्यक्ष इंदरचंद सुराणा, मंत्री राजेश सुराणा, पंकज सुराणा, एस.एस. जैन संघ के अध्यक्ष किशनलाल दुगड़ और मूर्तिपूजक समाज के अध्यक्ष राजेन्द्र नाहर, भीखमचंद गहलोत ने भी संबोधित किया। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष धरमचंद लूंकड़ ने अन्य पदाधिकारियों के साथ विल्लीपुरम पहुंच कर आचार्य के दर्शन किए एवं अहिंसा यात्रा की आध्यात्मिक मंगल कामना की।