कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): पांच शब्द बताए गए हैं-दुःख, मोह, तृष्णा, लोभ और किंचन। इनमें एक शृंखलाबद्ध जुड़ाव है। इस दुनिया में दुःख का अस्तित्व है, लेकिन कुछ आत्माएं ऐसी भी होती हैं, जिन्हें दुःख होता ही नहीं। वैसी आत्माओं के लिए सम्बोधि में बताया गया है कि जिनके मोह नहीं होता, उन्हें दुःख होता ही नहीं अर्थात् जिसका मोह समाप्त हो गया हो, वह दुःखी नहीं होता।
मोहमुक्त आत्मा के दुःख समाप्त हो जाते हैं। जिसके भीतर तृष्णा नहीं होती, उसे भी दुःख नहीं होता। जिसका लोभ समाप्त हो गया हो, उसे दुःख नहीं हो सकता। जिसमें किंचित भी कषाय न रहे, उसे भी दुःख नहीं होता।
मोह, लोभ, तृष्णा सभी दुःख के कारण होते हैं। यदि आदमी के भीतर से लोभ और मोह पूर्ण रूप से समाप्त हो जाए तो दुःख का किला ढह भी सकता है। दुःखों का जनक लोभ को कहा गया है। लोभ के वशीभूत होकर आदमी कितने पाप कर्म आदि का बंध कर लेता है। पदार्थों की लालसा में आदमी जघन्य अपराध भी कर सकता है।
संतोष की साधना के द्वारा लोभ को जितने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में परिग्रह और धन की आवश्यकता हो सकती है, किन्तु उसमें भी आदमी को संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को धनार्जन में नैतिक मूल्यों का ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए।
लोभ-मोह को अलोभ की साधना के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन पाथेय सोमवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदान की।
आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य महाप्रज्ञजी के जीवन के बालपन के घटना प्रसंगों का रोचकशैली में वर्णन करते हुए बचपन में उनके गुस्सैल स्वभाव को बताया और जब उन्होंने मुनि दीक्षा ली तब से लेकर 75 वर्षों तक के पर्याय में गिनती मात्र ही गुस्से आए होंगे। आचार्यश्री ने उपासक शिविर में भाग लेने आए उपासक श्रेणी को पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कियह बहुत अच्छा कार्यकारी श्रेणी है।
तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में अच्छा प्रभाव छोड़ने वाली है। उपासक-उपासिकाओं का स्वाध्याय शिविर आदि के बाद भी लगातार चलते रहना चाहिए। आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त कर उपासक-उपासिकाएं हर्षविभोर थे। उपासक श्रेणी के सह संयोजक श्री सूर्यकुमार श्यामसुखा, उपासक डाॅ. मुकेश छाजेड़ व उपासिका श्रीमती स्मृति कोठारी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
महासभा के अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा इस वर्ष के मनोहरी देवी डागा समाज सेवा पुरस्कार के लिए श्री सूरजमल सूर्या (धुलिया) को प्रदान किए जाने की घोषणा की। यह पुरस्कार बेंगलुरु में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित होने वाले प्रतिनिधि सम्मेलन के दौरान प्रदान की जाएगाी। नित्य की भांति आज भी अनेकों महिला और पुरुषों ने अपनी धारणा के अनुसार आचार्यश्री से त्याग स्वीकार किया।