चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा मन के अनुरूप चलने वालों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे आत्मा का मार्ग छूटने लगता है। संसार के रास्ते को छोडऩे के लिए जीवन में परमात्मा के प्रवचन को समझने की जरूरत है।
खुद के व्यवहार को धर्म के अनुरूप ही जीने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को ऐसा कोई भी व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को तकलीफ पहुंचे। खुद की बात से अगर दूसरों को तकलीफ पहुंचती हो तो चुप रहना ही बेहतर होता है। ज्ञानी कहते हंै दूसर को तकलीफ पहुंचाना ही अधर्म कहलाता है।
जो इस बात को अ’छे से समझ लेते हैं वे सबके साथ अ’छा व्यवहार करते हैं। मनुष्य को हर क्षेत्र में दूसरों को प्रभावित करने वाला व्यवहार करना चाहिए। सबसे पहले अपने घर के लोगों के साथ अ’छा व्यवहार करना सीखना चाहिए।
अगर घर वालों के साथ अ’छा व्यवहार करना सीख गए तो दूसरों के साथ गलत व्यवहार करने का अवसर ही नहीं बनेगा। उन्होंने कहा मनुष्य को अपनी मेहनत में यकीन करना चाहिए क्योंकि मेहनत से किया हुआ हर काम सफलता की ओर बढ़ाता है।
जीवन में आगे जाने के लिए खुद की क्रिया पर भरोसा रखने की जरूरत है। बोलने के बजाय करने की जरूरत होती है। जो करता है वही आगे बढ़ता है। मनुष्य को उसका अ’छा आचरण ही ऊंचाई तक ले जाने का कार्य करता है। जीवन में सब कुछ होने के बाद भी अगर आचरण नहीं है तो सब व्यर्थ है।
चार महीने के चातुर्मास के बाद भी जीवन में बदलाव करने का प्रयास नहीं किया तो कभी भी बदला नहीं जा सकता। इससे पहले पूरे वर्ष में अभूतपूर्व सेवाएं देने के लिए पदमचंद सिंघवी को संघ द्वारा सेवा रत्न से सम्मानित किया गया।
उपप्रवर्तक विनयमुनि और गौतममुनि का आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक चातुर्मास का विदाई एवं वीर लोकाशाह जयंती समारोह गुरुवार सुबह नौ बजे से जैन भवन में होगा।