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अपने आत्म स्वरूप को पहचानें, यही रूप चतुर्दशी का संदेश: डॉ. वरुण मुनि

अपने आत्म स्वरूप को पहचानें, यही रूप चतुर्दशी का संदेश: डॉ. वरुण मुनि

चेन्नई. एक रूप होता है और एक स्वरूप होता है। रूप बदलता रहता है पर स्वरूप नहीं बदलता। शरीर रूप है और आत्मा स्वरूप है। अपने आत्म स्वरूप को हम पहचानें यही रूप चौदस का संदेश है। यह विचार -ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन साहुकारपेट में आयोजित प्रवचन सभा में उपस्थित श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा जैसे किसी व्यक्ति के पास चैन है सोने की, उसने गला कर कड़ा बनवा लिया। कुछ वर्ष बीते फैशन पुराना हुआ। तो कड़े को गला कर उसने अंगूठी बना लिया। अब पहले जिसे चैन या कड़ा कह रहे थे वो अब अंगूठी कहलाने लगी। रूप बदला तो नाम बदलते गए पर थोड़ा चिंतन करें- क्या सोना भी बदला? सोना स्वरूप है। इसे अध्यात्म की दृष्टि से यूं समझें कि मनुष्य का शरीर मिला तो मनुष्य कहलाने लगे। पशु गति में गए तो कुत्ता, बिल्ली, गधा, घोड़ा, शेर चिता, कबूतर, कौआ, मछली-मेंढक़ नाम हो गया।

देवलोक में देवी देवता बने, कभी ये जीवात्मा नरक में गया, अपने पाप कर्मों के कारण तो नारकीय कहलाने लगा। शरीर बदला, नाम भी बदल गए। शरीर तो रूप है पर जो आत्मा है क्या वो भी बदला।

गुरुदेव ने कहा हो सकता है आप स्वर्ग नरक को न मानते हों। बचपन, जवानी, बुढ़ापा तो देखते हैं अपनी आंखों से। तो शरीर के रूप बदले परन्तु भीतर रहने वाला क्या आत्म स्वरूप भी बदला। वह तो सदा काल वही रहता है। तभी तो वह शाश्वत तत्व है। रूप चतुर्दशी का यह पर्व हमें यही संदेश दे रहा कि हम भी अपने आत्म स्वरूप को जानने और पहचानने का प्रयास करें तभी असल में जीवन में दिवाली होगी।

प्रभु महावीर कथा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा भगवान महावीर ने 27 भवों की जो लंबी यात्रा की, वर्धमान के भव में भी लगभग साढ़े बारह वर्ष के साधना काल में उन्होंने ध्यान, मौन, कायोत्सर्ग, तितिक्षा भाव, क्षमा, मैत्री, करुणा जैसे सद् गुणों की आराधना के द्वारा अपने भीतर के आत्म तत्व का साक्षात्कार किया। आत्म तत्व को जब साधक जान लेता है पूर्ण रूप से, तो परमात्म तत्त्व से उसका साक्षात्कार हो जाता है। जैन दर्शन की भाषा में कहें तो अप्पा सो परमप्पा वह आत्मा, फिर स्वयं ही परमात्मा बन जाती है। बिंदु और सिंधु में परिमाण का (क्वांटिटि) का ही अंतर है, गुणात्मक (क्वॉलिटी) की अपेक्षा से दोनों एक ही हैं।

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