बेंगलुरु। श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ अक्कीपेट दारा संचालित श्री वासुपूज्यस्वामी जैन पाठशाला का पंचदिवसीय रजोतत्सव बुधवार को आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी एवं साध्वीवर्याश्री मोक्षज्योतिश्रीजी म.सा. की शुभ निश्रा में प्रारम्भ हुआ । महोत्सव स्नात्रपूजा से प्रारम्भ हुआ जिसमें सकल संघ ने उत्साह के साथ भाग लिया।
मुंबई से आए हुए जैन शास्त्रीय संगीतकार हेमेंद्रभाई द्वारा 45 आगम की पूजा पढ़ाई गई। आगम पूजा के अंतर्गत आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को आगमो के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि जैन-साहित्य का प्राचीनतम भाग आगम के नाम से कहा जाता है। आगम ग्रन्थ काफी प्राचीन है तथा जो स्थान वैदिक साहित्य क्षेत्र में वेद का तथा बौद्ध साहित्य में त्रिपिटक का है, वही स्थान जैन साहित्य में आगमों का है।
आगम ग्रन्थों में महावीर के उपदेशों तथा जैन संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली अनेक कथा-कहानियों का संकलन है। उन्होंने कहा कि आगम शब्द का प्रयोग जैन धर्म के मूल ग्रंथों के लिए किया जाता है। केवल ज्ञान, मनपर्यव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, चतुर्दशपूर्व के धारक तथा दशपूर्व के धारक मुनियों को आगम कहा जाता है।
पाठशाला के गुरूजी मीठालालजी जो विगत अनेक वर्षों से पाठशाला की सेवा कर रहे हैं, ने बताया कि पंचान्हिका महोत्सव के अन्तर्गत प्रारम्भ के तीन दिन 45 आगमो की पूजा होगी।
चौथे दिन 56 दीग्कुमारीयों द्वारा भव्य परमात्मा का जन्म महोत्सव मनाया जाएगा और अंतिम दिन पाठशाला के विद्यार्थियों द्वारा नाटिका प्रस्तुत की जाएगी ।