मदुरांतकम. यहां विराजित साध्वी मयंकमणि ने कहा अंत:करण की पवित्रता ही है धर्म। मानव के जीवन में सुख और दुख के आने-जाने का क्रम जारी ही रहता है। जब जीवन इस चक्र से छूट जाता है अपना वास्तविक स्वरूप प्राप्त कर उसके गुणों के आधार पर परमात्मा के नाम जाना-पहचाना जाता है।
सुख यानी धर्म और दुख यानी अधर्म का फल मानव में गुणों का प्रवेश धर्म के माध्यम से बढ़ता है। धर्म से ही सुख और दुख की पहचान होती है। जनमानस सुखी होता है तो उसे धर्म का फल कहा जाता है।
मानव का स्वभाव अच्छा हो या बुरा, उसकी श्रद्धा धर्म पर ही रहता है। स्पष्ट है मानव अपनी सफलता के पीछे किसी शक्ति का आधार अवश्य मानता है यानी उसे धर्म पर ही विश्वास है।
संचालन संघ के महामंत्री प्रफुल्लकुमार कोटेचा ने किया। साध्वीवृंद बुधवार सवेरे यहां से प्रस्थान कर कारुगुणी और वहां से उत्तरमेरुर जाएंगी।