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500 लोगों को अन्नदान श्री SS जैन ट्रस्ट, रायपुरम द्वारा

500 लोगों को अन्नदान श्री SS जैन ट्रस्ट, रायपुरम द्वारा

रायपुरम में 500 लोगों को अन्नदान श्री SS जैन ट्रस्ट, रायपुरम द्वारा पुज्य जयतिलक जी म.सा के पावन सान्निध्य में ज्ञान युवक मण्डल रायपुरम के सहयोग से मंगलवार को जैन भवन रायपुरम के बाहर जरूरतमंदो को करिब 500 लोगों को अन्नदान दिया गया।

जयतिलक मुनि जी ने प्रवचन में बताया कि जिनेश्वर देव ने कलेक्शन के स्थान सेलेक्शन करने का आदेश दिया। जीव आसक्ति वश बिना प्रयोजन कलेक्शन करता है। उसके सार सम्भाल में पैसा समय व्यर्थ होता है! परिग्रह जमा होता है आस्क्ति बढ़ती है। बिना प्रयोजन की चर्चा होती है। अत: भगवान कहते है कलेक्शन तो बहुत किया अब

सेलेक्शन कर लो! आदि काल के सिक्कों का, साडियों का, अपनी रुचि अनुसार कलेक्शन करता है। लेकिन भगवान कहते है यह निरर्थक है! कर्मबंध है, यदि चार गति संसार को जान कर के आप को कहाँ जाना है उसका सेलेक्शन करो शेष सब व्यर्थ है। आप अपना लक्ष्य निर्धारित करो! इतने दिनो तक गुणने के बाद भी मनन नहीं करते कि इससे मुझे क्या लाभ है? विचार करो की मैं यहाँ क्या बैठा हूँ, क्यो इस संसार में खल रहा हूँ! यह संसार दुःखमय है। आपने कई बार छः आरो का वर्णण सुना, पढ़ा तो क्या आपका चिन्तन चला कि उसमें सुख है।

इन छह आरो में सामान्य, शक्तिशाली, वैभवशाली सब का वर्णण आता है ! सबको एक दिन सब कुछ छोड़कर जाना ही पड़ता है। आत्मा नये रूप नये स्थान को धारण कर लेती है। भगवान ने तो आपको वह सब भी वर्णण कर दिया जहाँ आप गये नहीं देखा नहीं जैसे पुत्र पिता की बात पर विश्वास करता है वैसे ही सर्वज्ञ सर्वदर्शी पर विश्वास करे! जैसे नरक का वर्णन, प्रभु ने अपने ज्ञान से किया भगवान तो एक जीव के अनन्त पर्याय को जानने वाले है। सत्य कथन का सामर्थ्य तो प्रभु के पास है! इसलिए उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया जो उनकी बात पर श्रद्धा करता है वह तीन काल में सुखी बनता है!

नरक एक ऐसा स्थान है जहाँ महा वेदना महा दुःख होता है किंतु नाम मात्र की ही निर्जरा होती है। वहाँ जीव के भोगने योग्य पदार्थ नहीं होते है। जबकि वहाँ महा सुधा होती है महा तृष्णा होती है! नारकी में भी जीव रुदन मचाते हैं। परमाधामी देव उन जीवो को उनका दुराचार याद दिलाता है और प्रताडित करते है। दुःख अर्थात दु:- दुराचार! सेवन करने – ख- खगोल। दुराचार का सेवन करने वाला दु.ख की प्राप्त होती है। चार गति में ऐसी दुराचारी आत्मा भरी पड़ी है जिससे जीव भयभीत होते हैं। सुख शब्दों में सु- सु आचार विचार वाला जीव सुसंस्कारी यहाँ भी सुख पाता है पर भव में भी सुख पाता है। कितना भी सुसंस्कारी व्यक्ती हो वह शरीर को चलाने के लिए थोडा बहुत पाप करता है इसकी उसे संसारी सुख में बाधा पड़ती है।

शाश्वत सुख की प्राप्ती नहीं होती जो तीन काल में सु प्रवृत्ति करता है वह शाश्वत सुख को प्राप्ति करता है। धन में सुख नहीं है धन में भ्रांति है! संसार के किसी भी पुदगल में ऐस शक्ति नहीं जो जीव को सुख दे। सुख तो मात्र सुप्रवृति करने वाली आत्मा में है! शुभ योग में रमन करो! दुःख देने वाला जीव हर जह क्लेश को पाता है! यदि आपने आचार विचार का सेलेकशन कर लिया है तो गति को भी सेलेक्ट कर लो ।

मनुष्य को रोटी के लिए कितना दुःख देखना पड़ता है। आप इस दुःख के आदि हो चुके हो कि आपको दुःख नहीं लगता । आप सुख की चाह में कितना पाप कार्य करते है! यहाँ तक कि एक कचरा छीलने का दण्ड इतना बड़ा भोगना पड़ा !‌ आपने दुःख दिया है। तो दुःख भोगना ही पड़ेगा! सुख की प्रवृत्त करो।

संचालन मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी नमिता संचेती ने दी।

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