*श्रीफल की तरह भीतर से कोमल व बाहर से कठोर होते हैं संत*चैन्नई के साहुकार पेठ स्थित श्री राजेन्द्र भवन में आचार्य श्रीजयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि संयमरत्न विजयजी,श्री भुवनरत्न विजयजी ने “कस्तूरी प्रकरण” के ‘माया-प्रक्रम’ का विवेचन करते हुए कहा कि हमारे जीवन रूपी दूध को माया रूपी विष दूषित कर देती है। पैर में काँटा लगने पर बहुत पीड़ा होती है, किंतु माया तो काँटे से भी अधिक भयंकर होती है, माया जीव को एक-दो नहीं, अपितु सैंकड़ों कष्ट देती है। माया से यह भव तो बिगड़ता है, साथ ही अगला भव भी बिगड़ जाता है।जिस प्रकार विभिन्न फलों के समूह से झुके हुए वृक्ष तो बहुत मिलेंगे, किंतु अपने उत्तम फलों से त्रिजगत को खुश करने वाले कल्पवृक्ष सर्वत्र नहीं मिलते, इसी तरह कपटकला में कुशल प्राणी तो पृथ्वी पर अनेक मिलेंगे, किंतु सुंदरतम सरलता को धारण करने वाले प्राणी बहुत कम ही मिलते हैं।दुर्जन के मन में कुछ और तो वचन में कुछ और होता है तथा कार्य कुछ और ही करता है।लेकिन सज्जन जैसा सोचते हैं, वैसा ही बोलते हैं और जैसा बोलते हैं वैसा ही करते हैं। जिस तरह मिट्टी का मटका आसानी से फूट जाता है, परंतु फिर से जुड़ता नहीं और सोने का घड़ा सरलता से नहीं फूटता, किंतु फूट जाने पर बहुत सरलता से जुड़ जाता है।उसी प्रकार दुष्ट की मित्रता मिट्टी के घड़े के समान और सज्जन की मित्रता सोने के घड़े के समान होती है। दुर्जन बेर की तरह बाहर से सुंदर और कोमल होते हैं, परंतु भीतर से कठोर,क्रूर होते हैं। श्री फल बाहर से खुरदरा और कठोर होता है, किंतु भीतर से अत्यंत कोमल,मधुर और सरस होता है।संत सज्जन भी इसी प्रकार बाहर से कठोर दिखाई देते हैं, किंतु दिल उनका कोमल, निर्मल और उदार होता है। धूर्त,कपटी का मुँह कमल के पत्ते के समान सुंदर, कोमल व मुस्कान से भरा होता है, उसकी वाणी चंदन के समान शीतल होती है और उसका हृदय क्रोध से भरा होता है। आज बुधवार को प्रातः 9 बजे श्री राजेन्द्र भवन में स्वतंत्रता दिवस के साथ ही श्री नेमिनाथ जन्म कल्याणक महोत्सव व संयम उपकरण भाव यात्रा का आयोजन होगा।
जीवन रूपी दूध को माया रूपी विष दूषित कर देती है: मुनि संयमरत्न विजयजी
