चेन्नई.
ईदापेट जैन स्थानक में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा हिंसा अधर्म का मार्ग है, यह दुखों की खान है, नरक का द्वार है इसलिए ङ्क्षहसा से हमेशा बचें और दया धारण करें। हिंसा अशांति एवं दुख-दुर्गति देती है। यही कारण है पहले लोग जीवन जीने में भी ज्यादा हिंसा से बचते थे। समय बदल गया, आज पग-पग पर हिंसा के साधन हो गए हैं। पुराने जमाने के लोग बड़े दयालु होते थे। कमजोर, अमुक जानवरों व गरीबों की बहुत सहायता करते थे और वह भी चुपचाप बिना किसी प्रकार के प्रचार के। मुनि ने कहा व्यक्ति चार बातों से चतुर बनता है- मित्रता ज्ञानी से, पंडित के पास बैठने से, राजाओं की सभाओं में जाने से। दया धर्म का मूल है। जहां दया होगी वहां परमात्मा का वास होगा। सारे ज्ञान, शास्त्र एवं जिनवाणी आदि का सार यही है कि जीवों पर दया करो, उनकी रक्षा करो औ हिंसा का त्याग करो। संचालन राजेंद्र लूंकड़ ने किया।