करूर. आचार्य महाश्रमण अपनी अहिंसा यात्रा के तहत गुरुवार को करूर जिले के मायानूर स्थित गवर्नमेंट हायर सेकंडरी स्कूल पहुंचे। स्कूल परिसर में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य ने कहा कि मनुष्य के भीतर अनेक प्रकार के भाव उभरते हैं जिनमें सद्भाव और दुर्भाव भी होते हैं। मनुष्य विभिन्न चित्त और भावों वाले होते हैं।
व्यक्ति दुर्भाव में जाता है तो हिंसा में भी प्रवृत्त हो सकता है। सद्भाव से चेतना भावित रहती है तो आदमी संयमित रहता है। कभी अहिंसा का भाव रहता है तो कभी हिंसा का भाव भी आ जाता है। कभी गुस्से का भाव उभरता है तो कभी सहिष्णुता का भाव भी उभर आता है। कभी अहंकार का भाव आता है तो कभी नम्रता का भाव भी आ जाता है। कभी लोभ के भाव उभरते हैं तो कभी संतोष की चेतना भी उभर जाती है।
उन्होंने कहा, दया और करुणा का भाव भी आदमी के भीतर उभर सकता है। दया, अनुकंपा एक ऐसा भाव है जो आदमी को हिंसा से बचाने वाला होता है। दया एक रक्षा कवच के समान है, जो आदमी को हिंसा के पाप से बचा सकता है और परोपकार भी कराने वाला हो जाता है। आदमी में करुणा है तो वह अपनी ओर से दूसरों को कष्ट नहीं होने देता है।
दयालु आदमी दूसरों को भी चित्त समाधि पहुंचाने का प्रयास करता है। दया एक ऐसी नौका है जो आदमी को भावसागर के पार उतारने वाली हो सकती है। संत का हृदय तो दया ओर अनुकंपा के भावों से भावित होना ही चाहिए, गृहस्थ के हृदय में भी दया और अनुकंपा की चेतना पुष्ट हो तो आदमी हिंसा से अपना बचाव कर सकता है। गृहस्थ ध्यान देकर हिंसा से अपना बचाव कर सकता है।