चन्नई. अयनावरम में विराजित साध्वी नेहाश्री ने कहा जीवों पर दया नहीं करने से असाता वेदनीय कर्म का बंध होता है। हम हरी लिलोटी पर पैर रख आराम से चलते हैं जबकि सम्यक दृष्टि आत्मा उन पर पैर रखने से डरती है।
जब तक अंतर में जिन आज्ञा के प्रति श्रद्धा नहीं है तब तक मोक्ष नहीं मिल सकता। अठारह पापों से डरेंगे तो हम सुलभ बोधि नहीं तो दुर्लभ बोधि बन जाएंगे। अगर हम सम्यक नहीं बने तो धर्म प्राप्त नहीं होगा और धर्म कर रहे हैं तो अकाम निर्जरा कर रहे हैं, सकाम नहीं कर सकते। हिंसा की प्रवृत्ति वाला जीव सम्यक नहीं हो सकता।
सम्यकत्व के अभाव में संयम नहीं आता। अहिंसा के गुण वाला जीव जिन शासन में आगे बढ़ता है। पापभीरु व्यक्ति दूसरे जीवों को साता पहुंचाता है। वह जमीकंद का सेवन नहीं कर सकता।
घर में गृहिणी जब खाना बना रही हो तब वो ऐसी भावना रखे कि जो यह खाना खाएंगे उन जीवों को साता पहुंचे तथा उनके द्वारा दूसरे जीवों को साता पहुंचे। आठ प्रवचन माता अपनी आत्मा का ध्यान रखती है ज्ञान बढ़ाने के लिए, समकित की शुद्धि के लिए, चरित्र की रक्षा के लिए, इन तीनों कारणों से साधु को चलना पड़ता है।