माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि एक शब्द है – प्रसाद| प्रसाद यानि प्रसन्नता| हमें गुरु के प्रसाद की इच्छा रखनी चाहिए| गुरू की प्रसन्नता शिष्यों पर बनी रहे, ऐसी शिष्य कामना करें|* प्रसाद के तीन प्रकार बताए गए हैं – देह प्रसाद, मन: प्रसाद और दृष्टि प्रसाद|
भोजन के संयम से, शरीर रहता निर्मल*आचार्य श्री ने आगे कहा कि देह यानि शरीर की प्रसन्नता| प्रसन्नता का एक अर्थ है – निर्मलता| *जो अच्छा है, स्वच्छ है, निर्मल है, वह है प्रसन्न|*हमारे शरीर की स्वस्थता बनी रहे| हम अपने साबुन से शरीर की उपरी गंदगी दूर करते हैं, यह उपरी निर्मलता हैं| पर इससे ज्यादा मूल्य अन्दर की निर्मलता का हैं|
पेट के भीतरी अवयव ठीक हो, पेट साफ रहे, स्वस्थ रहे, तो चित्त निर्मल रहता हैं| मल-मूत्र का समय पर विसर्जन होना चाहिए| पेट की निर्मलता के लिए भोजन समय पर हो| खाना रसना का स्वाद के लिए न खायें| रसना को जीतने से, भोजन का संयम करने से, शरीर निर्मल रहता हैं, देह में प्रसन्नता रह सकती हैं|*
मानसिक शांति के लिए अतिक्रमण से बचे*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि दुसरा प्रसाद हैं, मन का प्रसाद| जीवन में शारीरिक स्वस्थता का महत्व हैं ही, चित्त समाधि में रहे, प्रसन्नता में रहे, तो जरूरी हैं मन की प्रसन्नता बनी रहे| जब गुस्सा ज्यादा आता हैं, तो मन अशांत हो जाता हैं| व्यक्ति को गुस्सा नहीं करना चाहिए| जीवन में शांति रखे, धैर्य रखें, आवेश में न आये| *गुस्सा आदमी की कमजोरी हैं, गुस्से से वह अपने आप में हार जाता हैं|* मन: प्रसाद के लिए अपेक्षित हैं कि गुस्सा न करें, अपराध न करें, दोषों से बचे| चोरी से भी तनाव आ जाता हैं| गलती करके छिपायेंगे तो मन अशांत रहेगा| मन: प्रसाद के लिए निरपराध रहे, मानसिक शांति के लिए अतिक्रमण से बचना चाहिए| मंत्र जप का पाठ करे, दूसरों का हित करेंगे तो स्वयं का मंगल हो जायेगा| *जीवन में समता आती हैं, तो मन की प्रसन्नता बढ़ सकती हैं|*
आत्म सापेक्ष सुख की ओर हो अग्रसर*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि तीसरा प्रसाद हैं – दृष्टिकोण सम रहे| आग्रहशील, दुराग्रहशील न हो| यथार्थ का आकाश हैं तो उड़ने के लिए अनाग्रह का पंख चाहिए| आग्रहमुक्त दृष्टिकोण से यथार्थ का साक्षात्कार हो सकता हैं|* एक खुशी, स्थिति सापेक्ष हैं, इच्छित वस्तु मिल गई, खुशी हो गई, दूसरी हैं आत्म सापेक्ष| जैसे कुंड का पानी नल से, नाले से आता है, तो मिलेगा| पर कुए का पानी भीतर से आने वाला हैं, वह आत्मोथ प्रसन्नता होती हैं| हम आत्मोथ प्रसन्न रहने का प्रयास करें| बाह्य समस्या अलग है, मानसिक दु:ख अलग|
आदमी समस्या होने पर भी मानसिक दु:खी न हो| निर्जरा से मिलने वाला सुख अलग है, वह भीतरी सुख हैं| *पदार्थ सापेक्ष सुख अलग है, उसमें प्रतिबंध नहीं है, पर हम आत्म सापेक्ष सुख की ओर अग्रसर हो|* “हमारी प्रसन्नता के मालिक हम खुद बने, पदार्थ या दुसरों के सहयोग में ही प्रसन्न न रहे, उनके भरोसे न रहे|” तो जीवन की उपलब्धि है, प्रसाद की प्राप्ति| हम साधना के द्वारा चित्त समाधि, प्रसन्नता को प्राप्त करने का प्रयास करें|
एक मासिक समणी प्रशिक्षण* सत्र के उद्घाटन पर समणी समुदाय को विशेष प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि यह उपासना का अवसर हैं, खुराक का समय है, अच्छा प्रशिक्षण चले| अगर कोई बात है तो साध्वीवर्या सम्बुद्ध यशा को बताई जा सकती हैं| मुमुक्षु बहनें भी साथ में प्रशिक्षण ले रही हैं| आचार्य श्री ने विशेष प्रशिक्षण के लिए मंगल पाठ सुनाया|
मन:स्थिति पर हो काबु : साध्वी प्रमुखाश्री*
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने समणी प्रशिक्षण के उद्घाटन पर कहा कि एक दीया सौ दीयों को जलादे, तो भी उसकी रौशनी कम नहीं होती| *उपासना का मतलब हैं – गुरू उपासना, आत्मबोध, अच्छाई बुराई का बोध|* जीवन में अच्छाई बढ़ाने का संकल्प करें, बुराईयों को कम करें| गुणों का विकास हो, वृतियों का परिष्कार होता रहे, चित्त समाधि हो| परिस्थितियां कैसी भी हो, मन:स्थिति पर काबु हो|
गुरु होते कुबोध का नाश कराने वाले : साध्वीवर्या*
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा ने कहा कि हमें विलक्षण तेरापंथ धर्मसंघ मिला हैं| प्रशिक्षण से जीवन में विकास होगा| साध्वीवर्या ने कहा कि *गुरु कुबोध का नाश कराने वाले, आगम पढ़ाने वाले, भवसागर से पार कराने वाले होते हैं|
समणी नियोजिका चारित्रप्रज्ञा ने कहा कि शारीरिक आहार तो श्रावक समाज से मिल जाता हैं, पर *मानसिक और भावनात्मक आहार तो गुरू से ही प्राप्त होता हैं|* गुरु ही प्राण हैं, त्राण है, सब कुछ हैं| समणीवृन्द ने सामूहिक गीतिका की प्रस्तुति दी| समणी प्रशिक्षण सत्र का संचालन समणी ॠजुप्रज्ञा ने किया|
चेन्नई चातुर्मास में अभी तक के *56वें मासखमण* के रूप में *श्रीमती रेखा बम्ब* ने आचार्य श्री के श्रीमुख से *29 की तपस्या* का प्रत्याख्यान किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|
✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति