चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा पर्व के पावन दिवस जीव को उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर, राग से विराग, स्वार्थ से परमार्थ, भोग से त्याग, अंधकार से प्रकाश, वासना से साधना, कृष्ण से शुक्ल पक्ष की ओर ले जाते हैं।
जिनवाणी श्रवण करने से साधक में परिवर्तन आता है। महापुरुषों के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर उनके समान गुणधारी बनने का प्रयास करना चाहिए। चाहे कोई साधु हो या संत, राजा हो या रंक, गरीब हो या अमीर, पुरुष हो या स्त्री या चाहे तीर्थंकर भी क्यों न हो सभी को अपने किए हुए कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है।
पाप करने के बाद भयभीत होने से उसके फल से बचा नहीं जा सकता। अत: पाप करने से पूर्व ही सावधान रहना चाहिए। संसार में कभी खुशियों का मेला लगता है तो कभी गम के कारण आंखों में आंसू भी आ जाते हैं ।
आशावादी बनते हुए हर परिस्थिति में वर्तमान में जीना चाहिए । भविष्य की चिंता नहीं करनी चाहिए। कायोत्सर्ग के द्वारा मन, वचन और काया को स्थिर किया जा सकता है। मन को स्थिर करने के लिए काया को स्थिर करना भी नितांत आवश्यक है।
जयपुरंदर मुनि ने कहा त्याग से जीव की प्रगति एवं आत्मा का उत्थान होता है। जिस प्रकार भोजन को पकाने के लिए आग चाहिए, गाना गाने के लिए राग चाहिए, रोटी खाने के लिए साग चाहिए, उसी प्रकार आत्मा के उत्थान के लिए त्याग चाहिए। इससे पूर्व जय कलश मुनि ने अंतगड सूत्र का मूल वाचन किया।
आचार्य शुभचंद्र का प्रथम स्मृति दिवस तीन सामयिक तप आराधना के साथ मनाया गया। इस उपलक्ष में जयधुरंधर मुनि ने कहा महापुरुषों का मरण दूसरों के लिए स्मरण का अवसर बन जाता है। जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु होनी ही है लेकिन महापुरुष ऐसे मरण का वरण करते है जिसके द्वारा वो हमेशा अमर बन जाते हैं ।
आचार्य शुभचन्द्र का रायपुर मारवाड़ में 14 घंटे के संथारे के साथ समाधि मरण हुआ। संघ पदाधिकारियों ने भी आचार्य शुभचंद्र के प्रति गुणस्मरण करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। रविवार को युवक-युवती संस्कार शिविर एवं सामूहिक दया का आयोजन होगा।