चेन्नई. हमारा यह भारत देश पर्वों और त्यौहारों का देश है। पर्व किसी भी देश की संस्कृति व सभ्यता के प्रतीक होते है। दीपावली का पर्व अपने साथ अनेक त्यौहारों को लेकर आता है। यूं तो हर पर्व का अपना अलग स्थान होता है पर आज हम ‘धनतेरस के महत्व को थोड़ा प्राचीन और आधुनिक परिभाषा को समझने का प्रयत्न करें। यह विचार प्रवचन दिवाकर डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन साहुकारपेट में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा वैसे तो देखा जाए जितने पर्व आठ महीने में मनाते हैं, उससे अधिक चातुर्मास चार महीनों में त्यौहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा से प्रारंभ होकर ये पर्वों की श्रृंखला गुरु पर्व तक गतिमान रहती है। स्वतंत्रता दिवस रक्षा बंधन, कृष्णजन्माष्टमी महापर्व पर्युषण पर्वाधिराज संवत्सरी, क्षमापना पर्व, नवरात्र, दशहरा, करवा चौथ, अहोई अष्टमी आदि अनेक लौकिक, सामाजिक, धार्मिक व राष्ट्रीय पर्व अपने- अपने ढंग से सब मनाते हैं।
दीपावली पर्व के साथ धनतेरस, रूप चतुर्दशी भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक श्री राम आगमन, गोवर्धन पूजा, गौतम प्रतिपदा ( वीर निर्वाण संवत नव वर्ष) विश्वकर्मा जयंति, भाई दूज, लाभ पंचमी (ज्ञान पंचमी), आदि पर्व विशेष रूप से जुड़े हुए हैं। जहां तक ‘धनतेरस’ की बात है तो कुछ लोग इसे देव वैद्य धनवंतरी जयंति के रूप में मनाते हैं। और कुछ लोग इस दिन धन की पूजा करते हैं। सोना, चांदी एवं नए बर्तन आदि खरीदना शुभ मानते हैं। परंतु थोड़ा विचार करें- रुपया पैसा, सोना-चांदी क्या केवल यही धन है?
यह तो धन का बाह्य रूप है ही इसके साथ- साथ नीतिकार कहते हैं लक्ष्मी के अनेक रूप हैं जैसे- वरलक्ष्मी माता – पिता साक्षात वरदान रूप भगवान हैं। गृह लक्ष्मी यानि आप अगर शादीशुदा हैं तो पत्नी की इच्छाओं का ध्यान व सम्मान भी करें। संतान लक्ष्मी- अपने बच्चों को प्यार करें, समय दें। उन्हें अच्छे संस्कार दें। आप धन लक्ष्मी को तो भली प्रकार जानते हैं पर तन लक्ष्मी पर कभी आपने ध्यान दिया है? स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी दौलत है। अपने खानपान व शरीर का पूरा-पूरा ध्यान रखें। क्योंकि शरीर ही स्वयं का ठीक न हो तो आप सोने-चांदी का भी क्या उपयोग कर पाएंगे? इसी के साथ ज्ञान लक्ष्मी – मोक्ष लक्ष्मी का भी थोड़ा सा ध्यान दें। जो अगले जन्म में आपके काम आएगी।