कोडम्बाकम वडपलनी श्री जैन संघ के जैन भवन के प्रांगण में साध्वी सुधा कंवर ने श्रध्दालुओ को संबोधित करते हुए कहा कि स्वाध्याय हृदय की ज्योति है, प्राणों का स्पंदन है, जीवन का सार है, समय की सार्थकता है और सद्गुणों का नंदनवन है। स्वाध्यायशील साधक के लिए चार बातें आवश्यक है! एकाग्रता ,निरंतरता,लक्ष्य की प्राप्ति और निर्विकारता।
साध्वी सुयशाश्री ने अपने प्रवचन में फ़रमाया कि परमात्मा की ओर से, प्रकृति की ओर से, पुण्य की ओर से हमें सामग्री तो मिल सकती है लेकिन उन सामग्रियों से जीवन हमें बनाना पड़ता है,जीवन जीने के लिए चीजें तो हमें मिल जाती हैं लेकिन उन चीजों से हमें जीवन को कैसा रूप देना है यह हमारी जिम्मेदारी होती है। पुण्य से हमें सामग्रियां मिलती है तो हमारा कर्तव्य है कि उन सामग्रियों से हमें एक सुंदर जीवन का निर्माण करें। और इसके लिए आवश्यक है कि हम सात्विक लोगों की सोहबत में रहे। दुर्योधन के जीवन को बिगाड़ने का श्रेय मामा शकुनि के सानिध्य को जाता है और वहीं पर अर्जुन के जीवन को सुंदर बनाने का श्रेय श्री कृष्ण को जाता है।
तो हमारे लिए भी आवश्यक है कि हम अपने जीवन में मामा शकुनी या मंथरा जैसे लोगों को प्रवेश ना दें बल्कि श्री कृष्ण जैसे लोगों का स्वागत करें। और साथ ही हम भी जब किसी के जीवन में प्रवेश करें तो श्री कृष्ण बनकर करें ना कि शकुनी बनकर! धर्म सभा का संचालन संघ के मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया!