साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा जिस प्रकार चंद्रमा में उज्वलता, मोरपंख में सुंदरता, कमल में सौरभ, दूध में स्निग्धता, मिश्री में मधुरता, सूर्य में तेजस्विता और जल में निर्मलता सहज रूप से ही होती है, उसी तरह उत्तम कुल में उत्पन्न होने वाले पुरुष में भी विनय गुण स्वाभाविक रूप से ही रहता है।
विनय गुण स्वाभाविक आभूषण है जो स्वर्णाभूषण से भी कीमती है। मनुष्य की जितनी शोभा विनय रूपी आभूषण को धारण करने से बढ़ती है उतनी शोभा तो स्वर्णाभूषण व दिव्य वस्त्र धारण करने से और हाथी पर बैठने से भी नहीं बढ़ती। एक मात्र विनय रूप आभूषण को ही यदि हमने अंगीकृत किया है, तो फिर अन्य गुण रूप आभूषणों की मनुष्य को कोई आवश्यकता नहीं रहती। विनय ही हमें विशिष्ट पद की ओर ले जाकर विजय दिलाता है। विनय से विद्या आती है तो अहं से चली जाती है। राजेन्द्र भवन में 1 सितंबर से मासखमण, सिद्धि तप, भक्तामर तप, अ_ाई तपश्चर्याओं के लिए तीन दिवसीय महोत्सव शुरू होगा।
शनिवार को प्रात: 8 बजे वासुपूज्य जिनालय में अ_ारह अभिषेक का आयोजन होगा।