चैन्नई के राजेन्द्र भवन में युगप्रभावकाचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के 83 वें जन्मोत्सव एवं मुनिराज श्री अमृत विजयजी के पुण्य स्मृति निमित्त चल रहे पंचाह्निका महोत्सव के दौरान मुनि श्री संयमरत्न विजयजी,श्री भुवनरत्न विजयजी ने कहा कि इस संसार में यदि कोई छोड़ने जैसा है,तो वह दुःसंग है और ग्रहण करने जैसा यदि कोई है,तो वह है सत्संग।सत् याने सज्जन पुरुष,साधु भगवंत।
मनुष्य को अपने जीवन में अधिक से अधिक समय संत पुरुष की छाया में व्यतीत करना चाहिए।संत भगवंत की छत्र छाया में रहने से जिनवाणी का श्रवण, पाप-पुण्य की परख,धर्म-अधर्म की जानकारी के साथ ही ज्ञान और वैराग्य में अभिवृद्धि होती है।जिनपूजा से भी अधिक महत्व जिनवाणी श्रवण का है।जिनपूजा यदि परमात्मा की पूजा है,तो जिनवाणी का श्रवण, परमात्मा की भावपूजा है।एक क्षण का भी सत्संग जीव के लिए संसार सागर को पार करने हेतु नौका के समान होता है।
आज तक जितनी भी आत्माएं मोक्ष में गयी,वह सब सत्संग का ही प्रभाव है।तराजू के एक पलड़े में स्वर्ग व अपवर्ग का सुख रखें और दूसरे पलड़े में अल्पमात्र सत्संग का सुख रखें, तो दोनों पलड़ों में सत्संग का पलड़ा ही भारी रहेगा।सत्संग से सद्गुणों की प्राप्ति तो बुरे संग से अवगुणों की प्राप्ति होती है।जैसा संग होता है,वैसा ही जीवन जीने का रंग व ढंग बदलता है।
महोत्सव के दौरान मंगलवार को श्री राजेन्द्रसूरि गुरुपद महापूजन राजेन्द्र भवन में पढ़ाई गयी।इस अवसर पर श्रीमती लसुबाई जुठमलजी मगाजी सालेचा परिवार ने तीर्थ यात्रा संघ की पत्रिका मुनि श्री एवं श्री संघ को प्रदान की।बुधवार को आचार्य जयन्तसेनसूरिजी का 83 वाँ जन्मोत्सव मनाया जाएगा।