चेन्नई शहर के अन्तिम पड़ाव, वानागरम स्थित वेलामाल विद्यालय में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि त्राता, अभयदाता होते हैं| साधु तन से, मन से, वचन से, किसी को दुःख नहीं देते| ऐसे साधु के मुंह देखने से भी पाप जड़ता हैं| साधु किसी को मारते नहीं, पीटते नहीं, वे अहिंसा के पुजारी होते हैं और साधु होकर अगर किसी को पीटता है, धोखा देता है, वह साधु के वेश में सामान्य व्यक्ति के समान होता हैं| जिसके प्रति जनता का विश्वास होता है, वे कभी किसी को पीटते नहीं, धोखा नहीं देते| तो साधु का धर्म है अभयदान देना| गृहस्थ भी सभी प्राणियों को अभयदान दे, किसी को मारे नहीं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि भय एक कमजोरी होती हैं| आदमी ना डरे, न दूसरों को डराए| भयभीत आदमी से दो पाप और हो सकते हैं, वह हिंसा में जा सकता है और झूठ भी बोल सकता हैं| हम अभय की साधना का जितना विकास कर सके, हमें करना चाहिए| प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति में अभय की अनुप्रेक्षा का प्रयोग भी आता है| अभय का भाव पुष्ट हो रहा है, भय का भाव क्षीण हो रहा है| तो इस प्रकार ध्यान साधना से अभय की ओर बढ़ सकते हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि आदमी दुर्बलता से कई बार रात में, अंधेरे में, भयभीत हो जाता है| ऐसी स्थिति में मंत्र का आलंबन भी लिया जा सकता हैं| रात, विरात, एकला, दोकला, कभी भी भय लगे, तो ओम भिक्षु का जाप करना चाहिए, नमस्कार महामंत्र का जाप करना चाहिए| तो जप भी एक सहारा बन जाता हैं| जो आदमी पूर्णतया अभय बन जाता है, न मौत का भय, न रोग का, न बुढ़ापा या न अपमान का भय होता है, वह आदमी परम सुखी महान सुखी बन जाता है| शास्त्रों में भी कहा गया है, कि उन जिनेश्वरों को नमन है, जिन्होंने भय को जीत लिया, भय के विजेता बन गए हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा की हमारे भीतर में मैत्री का भाव पुष्ट होने से अभय की चेतना का विकास हो सकता हैं| हम स्वयं अभय रहे, दूसरों को अभयदान दे, यह एक अध्यात्म का उन्मेष होता हैं|
आचार्य श्री ने स्थानीय लोगों को अहिंसा यात्रा के त्रिसूत्रीय संकल्पों को समझा कर, संकल्प ग्रहण करवाए| स्थानीय नेरकुण्ड्रम, मदुरवॉयल, वानागरम, वेल्लपनचावड़ी, के श्रद्धालु श्रावकों को सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई, सभी ने गुरु धारणा स्वीकार कर, तीन बार वन्दना कर, आराध्य की अभिवंदना की|
मुनि श्री दिनेश कुमार ने तीर्थंकरों के बारह गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि केवलज्ञानी लोक – अलोक, रूपी – अरूपी, सबको जान सकते हैं| श्रावक के जितना – जितना त्याग, प्रत्याख्यान होता है, वह उसका देशविरती चारित्र हैं, वे साधना के द्वारा केवली के चारित्र, यथाख्यात चारित्र की ओर बढ़ने का प्रयास करें| मुनि श्री ने कहा कि गृहस्थ मन में भावना जरूर रखे, लेकिन गुरु के घर पर नहीं पधारने पर मन में यह चिन्तन रखे कि “मेरे घर में नहीं, गुरु मेरे घट में विराजे हुए हैं|
स्थानीय महिला मंडल ने सामूहिक स्वागत गीत प्रस्तुत किया| श्री महावीर बाफणा, जैन कान्फ्रेंस युवा शाखा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अभिषेक दुगड़, ऐश्वर्य बाफणा, श्री किशनलाल संचेती ने विचार व्यक्त किये| युवक मण्डल ने गीत की प्रस्तुति दी| ज्ञानशाला के ज्ञानार्थीयों ने जैन फेक्ट्री के तीन प्रोडेक्ट नशामुक्ति, सदभावना, नैतिकता के बारे में मनभावन प्रस्तुति देकर सबका दिल जीत लिया| सभी बच्चों ने नशामुक्ति के संकल्प स्वीकार किये|
इससे पूर्व अम्बतुर से 12.50 किलोमीटर का विहार कर, ससंघ मदुरवॉयल पधारने पर क्षेत्र वासियों के साथ, विद्यालय से जुड़े संचालकों, शिक्षकों, विद्यार्थीयों ने आचार्य श्री का भावभिना स्वागत किया| अहिंसा यात्रा संयोजक श्री ज्ञानचन्द आंचलिया ने विद्यालय परिवार को आचार्य श्री महाश्रमण का तमिल भाषा में अनुवादित साहित्य भेट किया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति