गोपालपुरम स्थित छाजेड़ भवन में विराजित कपिल मुनि ने स्वधर्मी वात्सल्य सम्यग् दर्शन का आचार है जिससे व्यक्ति का सम्यग् दर्शन परिपुष्ट होता है। अपनी स्वार्थपूर्ति और अहम् पुष्टि में संपत्ति का उपयोग दुरुपयोग मात्र है। सजगता और सेवा भावना से ओतप्रोत जीवन ही सही मायने में जीवन है जिसके चारों तरफ शांति और समता का निवास होता है।
पर्यूषण के चौथे दिन कहा जीवन तो एक समझौते का नाम है इसलिए सामंजस्य करके ही जीवन यात्रा तय करने में भलाई है। सबके प्रति प्रेम और मैत्री का व्यवहार और परस्पर सहयोग की भावना से जीना ही सफल और सार्थक जीवन की निशानी है। अपनी अर्जित सम्पदा का सम्यक उपयोग तभी होगा जब विपन्न व्यक्ति को संपन्न बनाने की दिशा में कुछ उपक्रम किया जाएगा।
इस संसार में प्रत्येक आदमी के साथ समस्याएं हैं। व्यक्ति का पुण्य कमजोर व कर्म भारी है। उग्र पुरुषार्थ और व्यवस्थित आयोजन करने के बावजूद जीवन प्रतिकूलताओं से घिरा रहने वाला है। आदमी दुखी इसलिए है कि यह संसार उसके लिए अनुकूल नहीं है। हम सब कुछ अपने अनुकूल चाहते हैं और वैसा नहीं होने पर दुखी हो जाते हैं। हमें याद रहना चाहिए कि हम इस संसार के मालिक नहीं कुछ समय के मेहमान बनकर आए हैं।
उन्होंने कहा वृत्ति का परिष्कार ही धर्म साधना का मुख्य उद्देश्य है। वृत्ति और भावना की निर्मलता ही साधना का आधार है । इंसान की भावना ही भव का निर्माण करती है इसलिए भावना को कलुषित और दूषित बनाने वाले निमित्त, व्यक्तिओं और वातावरण से परहेज करना ही समझदारी की निशानी है। कर्म बंधन भी व्यक्ति की वृत्ति पर निर्भर करता है।
जब व्यक्ति का पुण्य क्षीण हो जाता है और पापों का अनुभाग बढ़ जाता है तब जीव की दशा बेहद खतरनाक हो जाती है । प्रवचन से पूर्व मुनि ने अन्तगड़सूत्र वाचन किया। मंत्री राजकुमार कोठारी ने संचालन किया।