आध्यात्म जगत के महासूर्य श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-अहिंसा यात्रा के प्रणेता-महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने धर्मसभा में संबोधि ग्रंथ के आधार पर प्रवचन करते हुए कहा कि साधु को ज्यादा सुख सुविधा की कामना नहीं कर समता में रहना चाहिए। समता से मोहनीय कर्म का क्षय होता है।
साधु की भांति श्रावक को भी कुछ अंशों में भीतर में समता रखनी चाहिए। केवल्य ज्ञान गृहस्थ के वेश में भी हो सकता है परंतु उसके लिए भीतर में साधुता आनी जरूरी है। वेश मुख्य नहीं होता भाव धारा मुख्य होती है। आचार्य प्रवर ने भरत चक्रवर्ती का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें भी सामान्य जीवन में ही कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई परंतु उनके भीतर साधुता आ गई थी।
आदमी को जीवन में श्रम करना चाहिए जिससे ना केवल शारीरिक बल्कि मानसिक एवं आध्यात्मिक जीवन भी सुफल बनता है। जो व्यक्ति केवल सुख सुविधा की ताक में रहता है उनके लिए मोक्ष का मार्ग असंभव होता है। मोक्ष के लिए कठोर साधना की अपेक्षा रहती है भगवान महावीर ने अनेक जन्मों में साधना की तब उन्हें केवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
जीवन में साधना सलक्ष्य करनी चाहिए और निरंतर साधनारत रहना चाहिए। संसारी व्यक्तियों को भी जीवन में साधुपन की भावना निरंतर रखनी चाहिए और उन्हें ऐसा महसूस करना चाहिए कि वह भी साधु बनकर अपने जीवन को कभी न कभी धन्य बनाएं।
साधु बनना संभव नहीं हो तो व्यक्ति को एक अवस्था के बाद सुमंगल साधना की ओर आगे बढ़ना चाहिए। कई बार साधु से ज्यादा संयम गृहस्थ पालन करता है और वह व्यक्ति साधना के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ जाता है। साधु भी अपने जीवन में साधना करते रहें और गृहस्थ भी अपने ढंग से जीवन में साधना की दृष्टि में आगे बढ़े।
जै.वि.भा. द्वारा पुरस्कार सम्मान समारोह जैन विश्व भारती लाडनूँ द्वारा चौथमल कन्हैयालाल सेठिया चेरिटेबल ट्रस्ट के प्रयोजकत्व में दिल्ली के सेठ सुमेरमल पब्लिक स्कूल को जय तुलसी विद्या पुरस्कार प्रदान किया गया। इस अवसर पर एम.जी. सरावगी फाउंडेशन, कोलकाता के प्रयोजकत्व में गंगादेबी सरावगी पुरस्कार श्रीमती पुष्पा बेंगाणी को दिया गया।
आचार्य प्रवर ने जैन विश्व भारती द्वारा पुरस्कार के विषय में फरमाते हुए कहा कि जय तुलसी विद्या पुरस्कार आचार्य जयाचार्य और तुलसी के नाम से जुड़ा हुआ है जो अपने जीवन में अच्छे शिष्य और अच्छे गुरु दोनों के रूप में रहे। आज विद्या संस्थाएं बच्चों के जीवन संवारने का काम कर रही है और लोगों में शिक्षा के प्रति आकर्षण भी है।
सरकारें भी इस ओर में अच्छा प्रयास कर रही है। भौतिक शिक्षा जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती है। इस विद्या के साथ आत्म कल्याण करने की विद्या जीवन को सद् संस्कारी बनाने वाली होती है। प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान आदि पाठ्यक्रम अनेक व्यक्तियों के लिए लाभकारी हो सकते हैं। जैन विश्व भारती एक गरिमामय संस्था है जो भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में विशेष स्थान रखती है।
आज के कार्यक्रम में आठ दिवसीय प्रेक्षा ध्यान शिविर का शुभारंभ हुआ। प्रवचन में श्रावक-श्राविकाओं ने अनेक तपस्याओं के प्रत्याख्यान किए।